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एक कविता रोज़: मां पर मुनव्वर राना के 30 शेर

पढ़िए, मां के मुक़द्दस रिश्ते पर सबसे अज़ीम शेर, मुनव्वर राना की कलम से.

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कुलदीप
12 मई 2019 (Updated: 12 मई 2019, 07:53 AM IST) कॉमेंट्स
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'मदर्स डे' है आज, ऐसा लोग कहते हैं. पर कोई क्या खाकर मां के लिए कोई दिन मुक़र्रर करेगा. वह सब दिन की है. सब घंटों की है. उसने तब से हमारी परवरिश की है, जब इस आसमान के नीचे हमने आंख भी नहीं खोली थी. डॉ. कुमार विश्वास की एक बात याद आती है. वह कहते हैं कि कभी सड़क पर जा रहे हों और सामने से आता हुआ एक ट्रक बेहद करीब दिखाई दे जाए तो सारी चेतना सिमटकर नाभि पर आ जाती है. वह दिल पर भी नहीं आती, छाती पर भी नहीं आती. नाभि पर आ जाती है. क्योंकि मां ने 9 महीने जहां से प्राण पिलाए हैं, वह चेतना वहीं से वापस जाएगी. मां पर किसने क्या नहीं लिखा. दुनिया लिख डाली. उर्दू ग़ज़ल में मां पर सबसे ज़्यादा मुनव्वर राना ने लिखा है. उनसे पहले ग़ज़ल में सब कुछ था. माशूक़, महबूब, हुस्न, साक़ी सब. तरक़्क़ीपसंद अदब और बग़ावत भी. पर मां नहीं थी. इसलिए उन्होंने कहा भी है कि, मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए तो पढ़िए, मां के मुक़द्दस रिश्ते पर सबसे अज़ीम शेर, मुनव्वर राना की कलम से.

1

दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा

2

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

3

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

4

मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है

5

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा

6

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

7

ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया

8

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

9

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ

10

हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे

11

ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे

12

जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई

13

यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा

14

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

15

कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी

16

दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है

17

दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा

18

बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था

19

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है

20

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही

21

मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है

22

मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया

23

माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

24

मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है

25

बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता

26

मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है

27

आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ

28

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता, मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है

29

चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

30

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

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