कहानी उस महाराजा की जिसने पैसे के दम पर ले ली इंडियन क्रिकेट टीम की कप्तानी
और ये उसकी सबसे बड़ी ग़लती साबित हुई.
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Indian Cricket में Maharaj Of Vizianagram और Bhupinder Singh के बीच की लड़ाई भी खूब फेमस रही थी (गेटी फाइल)
'सच में? मुझे लगा कि तुमने कॉमेंट्री करते वक्त अपना ट्रांजिस्टर रेडियो खुला छोड़ दिया और वो बोर होकर मर गए.'ख़ैर, विज़ी की स्टोरी पर लौटते हैं. विज़ी के क्रिकेट लभ में एक बड़ा मोड़ आया साल 1930 में. MCC की टीम ने राजनैतिक हालात का हवाला देते हुए इंडिया टूर करने से मना कर दिया. और विज़ी ने इसका फायदा उठाते हुए अपनी टीम को भारत और श्रीलंका टूर करा दिया. और इस टूर की सबसे बड़ा हाईलाइट ये था कि विज़ी की टीम में जैक हॉब्स और हरबर्ट सटक्लिफ जैसे दिग्गज थे.
विज़ी ने अपनी अथाह दौलत का इस्तेमाल कर कई बार विदेशी दिग्गजों को अपने पैलेस में क्रिकेट खेलने बुलाया. यहां तक तो ठीक था. लेकिन फिर उनके अंदर का क्रिकेटर और कॉन्फिडेंट हो गया. और वह महाराज ऑफ पटियाला सर भुपिंदर सिंह भुप्पी से टक्कर लेने लगे. भुप्पी पैसे के मामले में विज़ी की टक्कर के थे लेकिन जब बात खेल की हो, तो वह कहीं आगे निकल जाते थे. # Vizzy vs Bhuppi और इस टक्कर में एक बड़ा मोड़ उस वक्त आया, जब भुप्पी की वॉइसरॉय लॉर्ड विलिंगडन से ठन गई. और इसका फायदा उठाते हुए विज़ी ने नेशनल फर्स्ट-क्लास कंपटिशन के चैंपियन को विलिंगडन ट्रॉफी देनी चाही. लेकिन वह चूक गए. भुप्पी ने पहले ही उन्हें रणजी ट्रॉफी पकड़ा दी. फिर आया साल 1932. विज़ी ने इंग्लैंड टूर पर जा रही इंडियन टीम को स्पॉन्सर करने की घोषणा कर दी. और इसके साथ ही उन्हें डेप्यूटी वाइस-कैप्टेंसी भी मिल गई. ये अलग बात है कि स्वास्थ्य कारणों के चलते विज़ी ने इस टूर पर जाने से मना कर दिया. और फिर साल 1936 आते-आते विज़ी बरगद बन चुके थे. इंडियन क्रिकेट पर उनका प्रभाव इतना ज्यादा था कि इस बार वह टीम इंडिया के कप्तान बनकर इंग्लैंड गए. और ये टूर उनके पूरे करियर की सबसे बड़ी भूल साबित हुआ.BCCI Presidents who played first-class cricket: - KS Digvijaysinhji - Anthony de Mello - Maharajkumar Vizianagram+ - Fatehsinghrao Gaekwad - Ramprakash Mehra - Raj Singh Dungarpur - Anurag Thakur - Sourav Ganguly+ +played Test cricket Note: S. Sriraman was a fc umpire
— Mohandas Menon (@mohanstatsman) October 23, 2019
इस टूर पर विज़ी 16.21 के ऐवरेज से सिर्फ 600 रन ही बना पाए. जबकि टूर के तीन टेस्ट मैच में उनके नाम 8.25 के ऐवरेज से 33 रन रहे. लालाजी से झगड़ा हुआ अलग. और बाद में तो यहां तक क़िस्से आए कि विज़ी ने विपक्षी प्लेयर्स को घूस तक दी थी, जिससे उन्हें खराब गेंदें फेंकी जाएं. क्रिकइंफो के मुताबिक विज़ी ने इस टूर पर एक विपक्षी कप्तान को सोने की घड़ी दी थी. इस बारे में उस काउंटी प्लेयर ने कहा था,115th birth anniversary of the Maharaja of Vizianagram, who played 3 tests, all as captain, batted at No 9, did not bowl or move in the field & had a royal batting average of 8.25. If that wasn't enough, he contrived to send the best Indian batsman, Amarnath, back to India. pic.twitter.com/H1oHoQ9OZ0
— Joy Bhattacharjya (@joybhattacharj) December 27, 2020
'मैंने उसे एक फुल टॉस और कुछ खराब गेंदें फेंकी थीं. लेकिन आप इंग्लैंड में पूरे दिन ऐसी बोलिंग नहीं कर सकते.'ख़ैर, इस टूर पर भारत बुरी तरह से हारा और इसके साथ ही विज़ी के इंटरनेशनल करियर का भी अंत हो गया. उन्होंने क्रिकेट से दूरी बना ली और गुमनामी में चले गए. फिर कुछ साल बाद भारत आजाद हो गया. और विज़ी क्रिकेट में लौट आए. इस बार वह एडमिनिस्ट्रेटर और ब्रॉडकास्टर के रोल में लौटे थे. हालांकि इस बार भी वह बहुत लोकप्रिय नहीं हो पाए. लोगों ने उनकी कॉमेंट्री को बेकार, बकवास बताया. यहां तक कि साथी कॉमेंटेटर्स को भी विज़ी का काम पसंद नहीं आता था. बाद में 2 दिसंबर साल 1965 को बनारस में विज़ी का देहांत हो गया. क्रिकेट के जानकार कहते हैं कि अगर विज़ी आजीवन एक क्रिकेट स्पॉन्सर रहते तो पूरी दुनिया में उनका नाम होता. लोग आज भी उनकी तारीफ करते. लेकिन उन्होंने एक महान क्रिकेटर बनने के चक्कर में सब गुड़-गोबर कर लिया.