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मलिंगा - वो बॉलर जो विकेट्स के लिए उतना ही ख़तरनाक था जितना पैर के अंगूठे के लिए

आख़िरी वन-डे इंटरनेशनल मैच की अपनी आख़िरी गेंद पर विकेट लिया. आज बड्डे है.

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मलिंगा ने वनडे क्रिकेट को अलविदा कह दिया है.(फोटो: ट्विटर)
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अभिषेक
28 अगस्त 2020 (Updated: 28 अगस्त 2020, 07:10 AM IST) कॉमेंट्स
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लसिथ मलिंगा ने वन-डे क्रिकेट को टाटा कह दिया था. ठीक सालभर पहले. वो टेस्ट क्रिकेट को नौ साल पहले ही अलविदा कह चुके हैं. मलिंगा ने अभी मैदान नहीं छोड़ा है. टी-20 खेलते रहेंगे. लेकिन आज उनकी बात क्यूं? इसलिए क्यूंकि आज उनका बड्डे है.
इस खिलाड़ी ने बार-बार साबित किया है कि हौसले के दम पर ऊंची उड़ान भरना मुमकिन है. आईपीएल 2019 का फ़ाइनल मुकाबला याद कीजिए. आखिरी ओवर में 9 रन बचाने थे. मलिंगा के शुरुआती 3 ओवर बेहद खर्चीले थे. लेकिन आखिरी ओवर में वो मैच निकाल कर ले आए. यही उनकी पहचान भी है. अनिश्चितता उनके खेल का हिस्सा है.
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मलिंगा अपनी फैमिली के साथ.(फोटो: ट्विटर)

शुरुआती दिन
श्रीलंका की राजधानी है कोलंबो. 126 किलोमीटर दूर एक शहर गाले. यहीं के रथगामा गांव में 28 अगस्त 1983 को मलिंगा पैदा हुए. पिता बस के पुर्जे ठीक करने का काम करते थे. खूब कोशिश की कि मलिंगा पढ़ाई में मन लगाएं. लेकिन मलिंगा की नजर कहीं और थी. समंदर किनारे बालू पर गेंद फेंकते-फेंकते उनकी रफ्तार लगातार तेज होती गई.
16 साल की उम्र में उनपर नजर पड़ी चंपक रामानायके की. रामानायके श्रीलंका के लिए 18 टेस्ट और 62 वनडे मैच खेल चुके हैं. वे मलिंगा को गाले क्रिकेट क्लब लेकर गए. इस खेल की बारीकियां सिखाने. कच्चे टैलेंट को आधार मिल गया था. जब मलिंगा अपना आखिरी वनडे खेलकर लौट रहे थे, तब रामानायके भी मैैदान पर आए. मलिंगा जब अपने कोच से गले लगे, पुराने दिनों की सारी मेहनत एक तस्वीर में दिख रही थी. मलिंगा ने अपने कोच को ताउम्र मुस्कुराने की तमाम वजहें दी.
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कोच रामानायके के साथ मलिंगा (फोटो: ट्विटर)

एक्स्ट्रा में दिए 66 रन
एक बार गांव लेवल के एक टूर्नामेंट में खेलने गए. यहां उनकी गेंदबाजी का अलग ही नजारा दिखा. बल्लेबाज के होने का कोई मतलब नहीं रह गया था. विकेटकीपर जब तक हाथ उठाते, गेंद सिर के ऊपर से निकल जाती थी. और जब तक वे घूमकर देखते, गेंद बाउंड्री को चूम चुकी होती. मलिंगा ने उस मैच में 66 रन एक्स्ट्रा में दिए. अलहदा बॉलिंग एक्शन और असाधारण तेजी. मलिंगा एक सवाल की तरह उभर रहे थे जिसका जवाब किसी के पास नहीं था.
इंटरनेशनल करियर
2004 का साल. लसिथ मलिंगा को नई जिम्मेदारियां मिलीं. उन्हें श्रीलंका की टीम में शामिल किया गया था. 1 जुलाई 2004 को पहली बार श्रीलंका की कैप पहनी. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट में. पहला विकेट मिला डेरेन लेहमन का. 60वें ओवर की पहली गेंद. लेहमन बल्ला सामने लेकर आए गेंद रोकने के लिए. लेकिन गेंद ने रास्ता बदलकर पैड को छूना बेहतर समझा. बिली बोडेन की ऊंगली उठी. ट्रेडमार्क टेढ़ी ऊंगली. विकेट निकालना बड़ा टेढ़ा काम था. मलिंगा ने आसान बना दिया. उसी ओवर की चौथी गेंद पर गिलक्रिस्ट की बत्ती गुल हो गई. मलिंगा की पटकी गेंद गिलक्रिस्ट की समझ से बाहर थी. वे बचने की कोशिश में विकेट के पीछे खड़े संगकारा को कैच थमाकर मुंह लटकाए वापस लौट रहे थे. बिना खाता खोले. बस तीन गेंद झेल पाए. मलिंगा ने मैच में 6 विकेट झटके. श्रीलंका के तरकश में एक और तीर शामिल हो चुका था. चमिंडा वास और मुरलीधरन के बाद मलिंगा की एंट्री ने श्रीलंका के बॉलिंग अटैक को कातिलाना बना दिया.
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फोटो: रॉयटर्स

पहला वनडे. 17 जुलाई 2004 को. दांबुला में यूएई के खिलाफ. मैच में एक विकेट मिला. यूएई के कप्तान खुर्रम खान का. एकदम सीधी यॉर्कर गेंद खुर्रम के पैरों पर गिरी. बिलकुल समझ से बाहर. गेंद ने वही किया जो उसे करना था. मिडिल स्टंप को झुका दिया. यह यॉर्कर मलिंगा का हथियार बनने वाली थी. जिसने आने वाले समय में बल्लेबाजों में खौफ भर दिया. पैर बचाएं कि विकेट, बल्लेबाज हमेशा मुश्किल में रहे. टी-20 में लसिथ मलिंगा 15 जून 2006 को आए. इंग्लैंड के खिलाफ साउथैम्पटन में. पहले मैच में उनको कोई विकेट नहीं मिला. बाद में टी-20 क्रिकेट उनकी पहचान बन गया. टी-20 ने उनको दुनिया भर में शोहरत दिलाई. पैसे भी. यही पैसे उनको अपने ही देश में विलेन बना गए. श्रीलंका की मीडिया ने उनको धनलोलुप तक बताया. मलिंगा स्पोर्ट्स कारों के शौकीन हैं. उनपर ये भी आरोप लगाए गए कि वे देश से ज्यादा पैसों को तरजीह देते हैं. मलिंगा इन आरोपों को खारिज करते रहे हैं.
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2011 फाइनल में पारी की दूसरी ही गेंद पर सहवाग एलबीडबल्यू हो गए थे. (फोटो: रॉयटर्स)

जान हलक में डाल दी थी
2 अप्रैल 2011. वर्ल्ड कप का फाइनल मुकाबला. इंडिया को जीतने के लिए 275 रन बनाने थे. सचिन तेंडुलकर के साथ वीरेंद्र सहवाग ओपनिंग करने आए. मलिंगा ने बॉलिंग की शुरुआत की. पहले ओवर की दूसरी गेंद. सहवाग के बल्ले को लगभग मुंह चिढाती हुई पैड पर जा लगी. अपील हुई और अंपायर ने ऊंगली उठा दी. करोड़ों हिंदुस्तानियों का दिल बैठ गया. सहवाग ने तुरंत बैट उठाकर कलाई से सटा दी. ये रिव्यू लिए जाने का इशारा था. डीआरएस में गेंद मिडिल स्टंप उड़ाती हुई दिखी. इंडिया ने सहवाग के साथ-साथ डीआरएस भी गंवा दिया था. फिर सचिन और गंभीर ने बैटिंग की कमान संभाली. सातवें ओवर की पहली गेंद पर मलिंगा ने सचिन को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया. इंडिया की उम्मीदों का खून सूख गया था. यह लसिथ मलिंगा के खौफ का परचम था. इंडिया ने मैच तो जीत लिया. लेकिन मलिंगा को फूंक-फूंककर खेला. लेकिन मलिंगा के इस खौफ़ के किले पर अपना झंडा लहराया उसी विराट कोहली ने जिसने 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में छोटी मगर बेहद ज़िम्मेदारी भरी पारी खेली थी. वो विराट कोहली जो भारतीय क्रिकेट का नया सूरज बनकर उगने वाला था. उस वर्ल्ड कप फाइनल के साल भर बाद
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मलिंगा ने अपना आखिरी वर्ल्ड कप मैच इंडिया के खिलाफ खेला. (फोटो: ट्विटर)

28 फरवरी 2012. ऑस्ट्रेलिया का होबार्ट शहर. कॉमनवेल्थ सीरीज. 40 ओवर में इंडिया को कुछ 322 रन बनाने थे. मलिंगा के सामने थे विराट कोहली. मलिंगा बार-बार यॉर्कर मारने की कोशिश कर रहे थे. कोहली हर बार गेंद को बाउंड्री के पार भेज दे रहे थे. ओवर में 24 रन बने. 2,6,4,4,4. कहा गया कि मलिंगा को खेलना आसान हो चुका है. उनकी गेंदों में अब कोई दम नहीं रहा. मलिंगा की पहेली सुलझा ली गई है. लेकिन मलिंगा को सुलझाना इतना भी आसान काम नहीं था. उनके बालों की तरह. मलिंगा अपनी गेंदों में लगातार विविधता लेकर आए. स्लो यॉर्कर. बल्लेबाजों को बेबस कर देने वाली गेंदें. जिसे बाद में दुनिया भर के गेंदबाजों ने अपनी म्यान में शामिल किया.
इंडिया से लिया बदला
2014 में वर्ल्ड टी-20 हुआ. इंडिया और श्रीलंका एक बार फिर फाइनल में एक-दूसरे के सामने थे. ढाका में. वो मैच जिसने युवराज सिंह के करियर पर सबसे बड़ा सवालिया निशान लगा दिया था. इस बार मलिंगा टीम की कमान संभाल रहे थे. इंडिया पहले बैटिंग करने आई. मलिंगा ने अपने बॉलर्स को सिखाया कि विकेट लेना ज्यादा जरूरी नहीं, रन रोककर भी मैच अपने नाम किया जा सकता है. युवराज सिंह जैसा बल्लेबाज 21 गेंद खेलकर सिर्फ 11 रन बना पाया. टीम 131 रन ही बना सकी, जिसे श्रीलंका ने बहुत आसानी से पार पा लिया. उस पारी ने युवराज को इंडिया में विलेन बना दिया. उनके करियर का ग्राफ लगातार गिरता चला गया. युवराज सिंह उस पारी के साये से कभी उबर नहीं पाए.
तोहफा-ए-बुमराह
जसप्रीत बुमराह आज इंडियन बॉलिंग अटैक की जान हैं. वन-डे क्रिकेट के नंबर एक बॉलर को सजाने-संवारने का काम मलिंगा ने ही किया है. आईपीएल में खेलने के दौरान मलिंगा ने बुमराह की गेंदों को धार दी. मलिंगा थोड़े शर्मीले स्वभाव के हैं. बहुत कम बोलते हैं. पर बुमराह के लिए उन्होंने खुद पहल की. बुमराह ने कई मौकों पर मलिंगा से मिलने वाली मदद का ज़िक्र किया है.
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मलिंगा लगातार अपनी गेंदों में विविधता लेकर आए.(फोटो: ट्विटर)

चोटों से खूब परेशान रहे
लसिथ मलिंगा ने अपना क्रिकेट करियर टेस्ट क्रिकेट से शुरू किया था. 2004 में. 2011 में टेस्ट क्रिकेट को अपने करियर से बाहर का रास्ता दिखा दिया. 7 सालों में सिर्फ 30 मैच खेले. 101 विकेट अपने नाम किये. उनका शरीर टेस्ट को झेलने की गवाही नहीं दे रहा था. मलिंगा खुद इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. उनका कहना है कि उन्हें बार-बार नजरअंदाज किया गया. 2019 में मलिंगा ने एक 4-दिवसीय लिस्ट ए मैच खेला. यह उनके अंदर उपजी खीझ का नतीजा था. वे यह बताना चाहते थे कि वे टेस्ट खेलने के काबिल थे लेकिन उन्हें समझा नहीं गया.

मलिंगा क्रिकेट के एक हिस्से से रिटायर हो चुके हैं. दुनिया उनके पीछे आई. किसी ने मलिंगा के बाल की नकल करने की कोशिश की, तो किसी ने उनका बॉलिंग एक्शन कॉपी करना चाहा. सबने मुंह की खाई. मलिंगा सबसे अलग बनना चाहते थे. वे कामयाब रहे. उनकी गेंदों की सटीकता और बार-बार वापसी करने की मलिंगा की चाहत यकीनन उन्हें सबसे अलग बनाती है.




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