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काका धरती पकड़ः एेसे कैंडिडेट जिनसे चुनाव आयोग परेशान हो गया

द लल्लनटॉप के पाठक की कलम से पढ़िए इस शख्स का किस्सा.

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नागरमल बाजौरिया ( कानपुर के धरती पकड़)
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लल्लनटॉप
1 फ़रवरी 2017 (Updated: 1 फ़रवरी 2017, 07:48 AM IST) कॉमेंट्स
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अभिनव द्विवेदी
अभिनव द्विवेदी

द लल्लनटॉप के पाठक अभिनव द्विवेदी जिला हरदोई में दैनिक आज 
के संवाददाता हैं. कविता और फोटोग्राफी के साथ-साथ राजनीति में रुचि रखते हैं. इन्होंने एक किस्सा लिख भेजा है. पढ़ें. ऐसा कोई खास किस्सा आपके पास हो तो लिख भेजें
lallantopmail@gmail.com
पर.

 

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जीतने के लिए चुनाव सभी लड़ते हैं लेकिन कोई हारने के लिए भी लड़ता हो और अपनी जमानत ज़ब्त करा देना ही जिसका उद्देश्य हो ताकि ज़मानत राशि से वो देश को राजस्व प्राप्ति करा सके, एेसा बिरला और कोई नहीं बस अपने काका 'धरती पकड़' ही थे. कोई भी चुनाव हो महज हारने के लिए मैदान में उतरने का रिकॉर्ड बनाने वाले काका जोगिन्दर सिंह उर्फ धरती पकड़ की चुनावी बेला में बरबस याद आ जाती है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गुजरावालां शहर में 1918 में जन्मे काका आज़ादी के बाद बरेली के कानून गोयान (शामतगंज) में बस गए थे. बड़ा बाजार में उनकी कपड़ों की दुकान थी. बरेली के सुरमे ने न जाने कितनी नाज़नीनों के नैनों की कोरें सुरमई कीं. वहां के बाज़ार में गिरे झुमके की खोज अभी तलक हो रही है. मांझे की धार ने भी यहां जाने कितने पेंच लड़वाए, मगर इन सबके बीच धरती पकड़ एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने अपने सबसे ज़ुदा चुनावी सफर से पहचान बनाई.

किस-किस सीट से नहीं लड़े

काका ने 1993 में हरदोई की तत्कालीन सभी नौ सीटों से नामांकन कराया था. उन्हें हरदोई-सुरसा में नाव; अहिरोरी, बेनीगंज, सण्डीला में सिलाई मशीन; बावन-हरियावां में वायुयान; पिहानी में फावड़ा; मल्लावां, बिलग्राम और शाहाबाद में टेलीविज़न चुनाव चिन्ह मिला था. उन्होंने साइकिल से चुनाव प्रचार कर मतदाताओं से खुद को वोट नहीं देने की गुजारिश की थी. बावज़ूद इसके काका को हरदोई-सुरसा में 40, अहिरोरी में 367, बेनीगंज में 775, सण्डीला में 368, बावन-हरियावां में 77, पिहानी में 139, मल्लावां में 64, बिलग्राम में 308 और शाहाबाद में 114 मत मिले थे.
ये सुनने में अटपटा लगेगा लेकिन चुनाव हारने पर काका सूखे मेवों और मिश्री की डली से मुंह मीठा कराते थे.
हर चुनाव के मैदान में निर्दलीय उम्मीदवार बतौर डटे रहने की फितरत के चलते जोगिंदर सिंह लोगों के बीच धरती पकड़ के नाम से मशहूर हो गए. समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त काका के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 36 सालों में 300 से ज़्यादा चुनावों में दावेदारी ठोंकी. लगभग सभी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में खड़े हुए. ज़्यादातर बार उनका पर्चा चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया. 1992 में काका का राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के खिलाफ चुनाव सबसे सफल था जब वो 1135 वोट पाकर 10वें नंबर पर रहे थे. 14 से ज़्यादा राज्यों से लोकसभा, विधानसभा और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए मैदान में  भी उतरे.

तिकड़ी है धरती पकड़ों की

वैसे आपको बता दें कि काका को मिलाकर कुल 3 लोगों को धरती पकड़ नाम से जाना जाता है. भोपाल के कपड़ा व्यापारी मोहनलाल और कानपुर के नागरमल बाजोरिया को भी धरतीपकड़ कहा जाता है. बाजोरिया कई सालों से कुल 184 चुनावों में गदहों के साथ प्रचार करते हुए चुनाव लड़ने के कारण चर्चा में रह चुके हैं.

नेहरू खुद टिकट देना चाहते थे, मना कर दिया

उत्तर प्रदेश में तीसरी विधानसभा के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बरेली से सिख उम्मीदवार उतारना चाहते थे और इस दौरान काका का नाम सामने आया. नेहरू की मंशा के अनुरूप काका जोगिन्दर सिंह को चुनाव में उतरने की पेशकश की गई, जिसे उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि वह किसी पार्टी से चुनाव नहीं लड़ सकते. 1962 में काका पहली मर्तबा निर्दलीय बरेली शहर सीट से राज्य विधानसभा के अध्यक्ष रहे जगदीश शरण अग्रवाल के मुकाबले मैदान में उतरे. इस चुनाव में काका को 747 वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई.
UP Election: सहारनपुर से 'द लल्लनटॉप' की रिपोर्ट

चुनाव आयोग ने इनसे परेशान हो नियम बदले

अजीब-ओ-गरीब फलसफे पर चलने वाले काका चुनाव की जमानत राशि को हमेशा राष्ट्रीय कोष में अपना विनम्र योगदान मानते थे, जो चुनाव दर चुनाव ज़ब्त हुई. काका कहा करते थे कि चुनाव में समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने कभी पैसा खर्च नहीं किया और न ही कभी प्रचार अभियान चलाया. काका आमतौर पर साइकिल या पैदल प्रचार के लिए निकल पड़ते, जिससे उनकी सुरक्षा डयूटी में तैनात पुलिसकर्मी हलकान रहते थे. काका और उन जैसे दूसरे धरती पकड़ उम्मीदवारों के मद्देनजर ही निर्वाचन आयोग ने अगंभीर प्रत्याशियों की संख्या कम करने के लिए एक उम्मीदवार के दो से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने पर रोक लगाई थी. काका धरती पकड़ का 1998 निधन हो गया और इस तरह से इस अनोखे प्रत्याशी का अनूठा सियासी सफर खत्म हुआ.
UP Election: देवबंद से 'द लल्लनटॉप' की रिपोर्ट
https://www.youtube.com/watch?v=Rr1k_5TR1Q8


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