संभलो कि सुयोग न जाए चला
आज 3 अगस्त को जन्मदिन है मैथिली शरण गुप्त का. तो आज पढ़िए उनकी ये मोटिवेशनल कविता.

नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करोजग में रह कर कुछ नाम करोयह जन्म हुआ किस अर्थ अहोसमझो जिसमें यह व्यर्थ न होकुछ तो उपयुक्त करो तन कोनर हो, न निराश करो मन को.
संभलो कि सुयोग न जाय चला कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को.
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहांफिर जा सकता वह सत्त्व कहांतुम स्वत्त्व सुधा रस पान करोउठके अमरत्व विधान करोदवरूप रहो भव कानन कोनर हो न निराश करो मन को.
निज गौरव का नित ज्ञान रहे हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे मरणोंत्तर गुंजित गान रहे सब जाय अभी पर मान रहे कुछ हो न तज़ो निज साधन को नर हो, न निराश करो मन को.
प्रभु ने तुमको कर दान किएसब वांछित वस्तु विधान किएतुम प्राप्त करो उनको न अहोफिर है यह किसका दोष कहोसमझो न अलभ्य किसी धन कोनर हो, न निराश करो मन को.
किस गौरव के तुम योग्य नहीं कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं जान हो तुम भी जगदीश्वर के सब है जिसके अपने घर के फिर दुर्लभ क्या उसके जन को नर हो, न निराश करो मन को.
करके विधि वाद न खेद करोनिज लक्ष्य निरन्तर भेद करोबनता बस उद्यम ही विधि हैमिलती जिससे सुख की निधि हैसमझो धिक् निष्क्रिय जीवन कोनर हो, न निराश करो मन कोकुछ काम करो, कुछ काम करो...
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