The Lallantop
Advertisement

हिंदी के जटिलतम कवि की वो कविता जिसे पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट भाषण में पढ़ा

अपने भाषण में 'गलत' पढ़ गए मुक्तिबोध की कविता.

Advertisement
Img The Lallantop
संसद में बजट स्पीच देते वित्त मंत्री पीयूष गोयल.
pic
लल्लनटॉप
16 मई 2018 (Updated: 1 फ़रवरी 2019, 01:30 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अपने अंतरिम बजट भाषण में कविता की एक पंक्ति पढ़ी, 'एक पैर रखता हूं, कि हज़ार राहें फूटतीं.'  ये पंक्तियां हिंदी के सम्मानित कवियों में से एक गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की कविता से ली गई हैं. हालांकि वित्त मंत्री ने कविता पढ़ते वक़्त सौ को हज़ार कह दिया. कविता में हज़ार राहें नहीं सौ राहें है. बहरहाल एक कविता रोज में आज पढ़िए 'मुक्तिबोध' की यही कविता 'मुझे कदम-कदम पर.'muktibodh feature

मुझे कदम कदम पर

मुझे कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं बांहें फैलाए !! एक पैर रखता हूं कि सौ राहें फूटतीं,मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूं बहुत अच्छे लगते हैं उनके तजुर्बे और अपने सपने... सब सच्चे लगते हैं; अजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती है मैं कुछ गहरे मे उतरना चाहता हूं, जाने क्या मिल जाए !! मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है, हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है, प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीड़ा है, पल-भर मैं सबमें से गुजरना चाहता हूं, प्रत्येक उर में से तिर आना चाहता हूं, इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूं , अजीब है जिंदगी !! बेवकूफ बनने की खतिर ही सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूं; और यह देख-देख बड़ा मजा आता है कि मैं ठगा जाता हूं हृदय में मेरे ही, प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है हंस-हंस कर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है कि जगत्... स्वायत्त हुआ जाता है। कहानियां लेकर और मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते जहां जरा खड़े होकर बातें कुछ करता हूं... ...उपन्यास मिल जाते. दुःख की कथाएं, तरह तरह की शिकायतें, अहंकार विश्लेषण, चारित्रिक आख्यान, जमाने के जानदार सूरे व आयतें सुनने को मिलती हैं. कविताएं मुस्कुरा लाग-डांट करती हैं प्यार बात करती हैं मरने और जीने की जलती हुई सीढ़ियां श्रद्धाएं चढ़ती हैं !! घबराए प्रतीक और मुस्काते रूप-चित्र लेकर मैं घर पर जब लौटता... उपमाएं द्वार पर आते ही कहती हैं कि सौ बरस और तुम्हें जीना ही चाहिए। घर पर भी, पग-पग पर चौराहे मिलते हैं, बांहें फैलाए रोज मिलती हैं सौ राहें, शाखाएं-प्रशाखाएं निकलती रहती हैं नव-नवीन रूप-दृश्यवाले सौ-सौ विषय रोज-रोज मिलते हैं... और, मैं सोच रहा कि जीवन में आज के लेखक की कठिनाई यह नहीं कि कमी है विषयों की वरन यह कि आधिक्य उनका ही उसको सताता है और, वह ठीक चुनाव कर नहीं पाता है !!
कुछ और कविताएं यहां पढ़िए:

‘पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं’

‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’

मैं तुम्हारे ध्यान में हूं!'

जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख'

‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’


Video देखें:

एक कविता रोज़: 'प्रेम में बचकानापन बचा रहे'

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement