हिंदी के जटिलतम कवि की वो कविता जिसे पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट भाषण में पढ़ा
अपने भाषण में 'गलत' पढ़ गए मुक्तिबोध की कविता.
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संसद में बजट स्पीच देते वित्त मंत्री पीयूष गोयल.

मुझे कदम कदम पर
मुझे कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं बांहें फैलाए !! एक पैर रखता हूं कि सौ राहें फूटतीं,मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूं बहुत अच्छे लगते हैं उनके तजुर्बे और अपने सपने... सब सच्चे लगते हैं; अजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती है मैं कुछ गहरे मे उतरना चाहता हूं, जाने क्या मिल जाए !! मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है, हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है, प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीड़ा है, पल-भर मैं सबमें से गुजरना चाहता हूं, प्रत्येक उर में से तिर आना चाहता हूं, इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूं , अजीब है जिंदगी !! बेवकूफ बनने की खतिर ही सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूं; और यह देख-देख बड़ा मजा आता है कि मैं ठगा जाता हूं हृदय में मेरे ही, प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है हंस-हंस कर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है कि जगत्... स्वायत्त हुआ जाता है। कहानियां लेकर और मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते जहां जरा खड़े होकर बातें कुछ करता हूं... ...उपन्यास मिल जाते. दुःख की कथाएं, तरह तरह की शिकायतें, अहंकार विश्लेषण, चारित्रिक आख्यान, जमाने के जानदार सूरे व आयतें सुनने को मिलती हैं. कविताएं मुस्कुरा लाग-डांट करती हैं प्यार बात करती हैं मरने और जीने की जलती हुई सीढ़ियां श्रद्धाएं चढ़ती हैं !! घबराए प्रतीक और मुस्काते रूप-चित्र लेकर मैं घर पर जब लौटता... उपमाएं द्वार पर आते ही कहती हैं कि सौ बरस और तुम्हें जीना ही चाहिए। घर पर भी, पग-पग पर चौराहे मिलते हैं, बांहें फैलाए रोज मिलती हैं सौ राहें, शाखाएं-प्रशाखाएं निकलती रहती हैं नव-नवीन रूप-दृश्यवाले सौ-सौ विषय रोज-रोज मिलते हैं... और, मैं सोच रहा कि जीवन में आज के लेखक की कठिनाई यह नहीं कि कमी है विषयों की वरन यह कि आधिक्य उनका ही उसको सताता है और, वह ठीक चुनाव कर नहीं पाता है !!कुछ और कविताएं यहां पढ़िए:
‘पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं’
‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’
‘जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख'
‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’
Video देखें:
एक कविता रोज़: 'प्रेम में बचकानापन बचा रहे'