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'सबसे सुंदर स्त्रियां और सबसे सुंदर पुरुष'

एक कविता रोज़ में आज पढ़िए अरुण कमल को

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23 अप्रैल 2018 (Updated: 23 अप्रैल 2018, 01:35 PM IST) कॉमेंट्स
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एक कविता रोज़ में आज पढ़िए अरुण कमल को -


अपनी पीढ़ी के लिए

वे सारे खीरे जिनमें तीतापन है हमारे लिए वे सब केले जो जुड़वां हैं. वे आम जो बाहर से पके पर भीतर खट्टे हैं, चूक और तवे पर सिंकती पिछली रोटी परथन की सब हमारे लिए. ईसा की बीसवीं शाताब्दी की अंतिम पीढ़ी के लिए, वे सारे युद्ध और तबाहियां. मेला उखड़ने के बाद का कचड़ा-महामारियां, समुद्र में डूबता सबसे प्राचीन बंदरगाह, और टूट कर गिरता सर्वोच्च शिखर सब हमारे लिए.
पोलिथिन थैलियों पर जीवित गौवों का दूध हमारे लिए शहद का छत्ता खाली हमारे लिए वो हवा, फेफड़े की अंतिम मस्तकहीन धड़. पूर्वजों के सारे रोग हमारे रक्त में वे तारे भी हमारे लिए जिनका प्रकाश अब तक पहुंचा ही नहीं हमारे पास और वे तेरह सूर्य जो कहीं होंगे आज भी सुबह की प्रतीक्षा में.
सबसे सुंदर स्त्रियां और सबसे सुंदर पुरुष और वो फूल जिसे मना है बदलना फल में हमारी ही थाली में शासकों के दांत छूटे हुए और जरा सी धूप में धधक उठती आदिम हिंसा. जब भी हमारा जिक्र हो कहा जाए हम उस समय जिए जब सबसे आसान था चंद्रमा पर घर, और सबसे मुहाल थी रोटी.
और कहा जाए हर पीढ़ी की तरह हमें भी लगा कि हमारे पहले अच्छा था सब कुछ और आगे सब अच्छा होगा.

कुछ और कविताएं यहां पढ़िए:

‘पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं

‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’

मैं तुम्हारे ध्यान में हूं!'

जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख'

‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’


वीडियो देखें:

एक कविता रोज़ में सुनिए केदारनाथ सिंह की कविता 'तुम आईं' :


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