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'फिर एक दिन मुझे सोते हुए ठंडा लोहा महसूस हुआ अपने गाल पर'

एक कविता रोज़ में आज पढ़िए गौरव सोलंकी को

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26 नवंबर 2018 (Updated: 26 नवंबर 2018, 10:29 AM IST) कॉमेंट्स
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एक कविता रोज़ में आज पढ़िए गौरव सोलंकी की कविता -

अब नहीं लिख पाऊंगा मैं

मैं कोई उल्लेखनीय कवि नहीं था लेकिन कुछ लोगों को तो याद होगा ही कि मैंने पुलिस के सायरनों और खिड़की पर खड़े होकर कूदने का सोचने वाली लड़कियों के बारे में कविताएं लिखीं मैंने केक की दुकान में काम करने वाले उदास लड़कों और साहसी अपराधियों पर काफ़ी कुछ लिखा

और मैं अपना पलंग तोड़ देने और फिर बुनने के बारे में और दिसम्बर के डर के बाद गुलमोहर के फूलों से आने वाली उम्मीद के बारे में सोचता था जब मैंने लिखा कि औरतों के उघड़े कंधों के बारे में कुछ भी अश्लील कहना मुमकिन नहीं है

उसके बाद सब ख़त्म होता गया मार्च में तो मैंने हथेली तक पर कविता लिखी जो मैंने तुमसे अलग होते वक़्त वादा किया था कि नहीं लिखूंगा

फिर एक दिन मुझे सोते हुए ठंडा लोहा महसूस हुआ अपने गाल पर और मैं उठ बैठा फिर तुम्हें फ़ोन भी किया था जो मिला नहीं और फिर मैं नौकरी पर चला गया

अप्रैल तक मैं ज़िंदा था फिर मई में वो एक रेलवे स्टेशन था जहाँ मैं भरभराकर गिर सा गया जब मुझे यक़ीन हुआ कि अब नहीं लिख पाऊंगा मैं कविता

शुरू से पता था यह तो मुझे कि मेरी भी है एक मियाद और हर कवि को एक गरम सांकल जैसे बजते हुए लम्हे के बाद पूर्व कवि होना ही होता है

लेकिन मुझे उम्मीद करना सिखाया गया था

मैंने अपने बिस्तर के ऊपर लगे हुक में, नाइंसाफ़ियों और चूमती हुई लड़कियों में ढूंढ़ी कविताएं मैंने मनुष्यों पर भी भरोसा किया पर वह गई तो लौटी नहीं रोने और गिड़गिड़ाने पर तो बिलकुल नहीं

लफ़्ज़ लगभग सारे बर्बाद होते रहे वैसे ही हर कोई दस तरह से कहने लगा था एक ही बात तंज़ का एक लोकप्रिय फ़ॉर्मूला विकसित हो गया था पिछले साल और नदी और समुद्र और सूरज और चाँद अकेलापन और आग और समुद्र और चाँद और ज़िंदगी और गुलज़ार और हथेली और सिगरेट और कुमार विश्वास इसके बीच में थे नब्बे हज़ार कवि, छत्तीस हज़ार पुरस्कार

और ऐसे समय में तुम मुझसे कविता छीनकर ले गई थी

मैं कोई उल्लेखनीय कवि नहीं था लेकिन मैं इन मुशायरों के शामियाने फाड़ देना चाहता था और लिखना चाहता था कि हर अच्छा आदमी दूसरे अच्छे आदमी को ईंटों के ढेर पर फेंक देता है एक वक़्त के बाद

पर लिख ना सका

मैंने लिखी छुट्टी की एक अर्ज़ी और चला गया शहर से जैसे चले जाते हैं सारे पूर्व कवि और तुम्हें साढ़े चार महीने बाद पता चलता है किसी दोस्त के साथ चाय पीते हुए और फिर तुम खिड़कियों पर लगे जंग की बात करने लगते हो


वीडियो देखें- 

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