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भारतीय क्र‍िकेट का वो सितारा, जिसने ऑस्ट्रेलिया को रुलाया, शरीर पर चोट खाई, फिर भी डटा रहा

Cheteshwar Pujara 'टी20 वाली स्पीड' के बैटर नहीं थे, बल्कि 'टेस्ट वाली दीवार' थे. उनकी बैटिंग में न तो Sachin Tendulkar जैसा आक्रामक अंदाज था, न ही Virender Sehwag जैसी तूफानी रफ्तार, फिर भी ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंग्लैंड तक, हर बॉलर उनकी विकेट के लिए तरसता था.

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Cheteshwar Pujara, Sachin Tendulkar, Virender Sehwag
चेतेश्वर पुजारा ने 103 टेस्ट मैचों में 43.60 के औसत से 7195 रन बनाए हैं. (फोटो-PTI)
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सुकांत सौरभ
24 अगस्त 2025 (Published: 06:30 PM IST)
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चेतेश्वर पुजारा (Cheteshwar Pujara), ये नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहले उनकी बैटिंग का वो अंदाज़ आता है. न कोई तेज़-तर्रार शॉट, न हवा में बॉल उड़ाने का जुनून. बस एक ही काम, विकेट बचाना. सामने दुनिया का सबसे ख़तरनाक बॉलर हो या सबसे बेज़ान पिच, पुजारा का तरीका एक ही था. दीवार बन जाओ, और अपनी विकेट की क़ीमत इतनी बढ़ा दो कि दुनिया का हर बॉलर उसके पीछे पागल हो जाए. और पुजारा ने यही किया. ऑस्ट्रेलिया में टीम इंडिया दो बार टेस्ट सीरीज़ जीती. दोनों ही बार इस जीत के पीछे एक ही खिलाड़ी का हाथ था. नाम है चेतेश्वर पुजारा.

क्रिकेट के मैदान में जब चेतेश्वर पुजारा बैटिंग करने आते थे, तो वक्त ठहर सा जाता था. वो 'टी20 वाली स्पीड' के बैटर नहीं थे, बल्कि 'टेस्ट वाली दीवार' थे. उनकी बैटिंग में ना तो सचिन जैसा आक्रामक अंदाज था, ना ही सहवाग जैसी तूफानी रफ्तार, फिर भी ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंग्लैंड तक, हर बॉलर उनकी विकेट के लिए तरसता था. चेतेश्वर पुजारा ने अपने शानदार टेस्ट करियर को अलविदा कह दिया है. दो साल तक टीम इंडिया में वापसी का इंतज़ार करने के बाद अब उन्हें लगा कि समय आ गया है. लेकिन, जब-जब टेस्ट क्र‍िकेट में टीम इंडिया की ऊंचाइयों का जि़क्र होगा, पुजारा का नाम भी उसमें शुमार होगा. 

ऑस्ट्रेलिया के ख‍िलाफ रिकॉर्ड शानदार

2018-19 में जब ऑस्ट्रेलिया में भारत ने पहली बार टेस्ट सीरीज़ जीती, तो पुजारा ने 521 रन बनाए थे. लेकिन, बात सिर्फ़ रनों की नहीं थी. उन्होंने 1258 गेंदें खेली थीं. समझ रहे हैं? सामने वाली टीम का कोई खिलाड़ी 700 गेंद भी नहीं खेल पाया था, और पुजारा ने अकेले 1258 गेंदों का सामना कर लिया था. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई बॉलिंग को मानसिक और शारीरिक रूप से थका दिया था. एडिलेड में 123 रन से सीरीज़ की शुरुआत की, और सिडनी में 193 रन बनाकर उसका अंत किया.

फिर 2020-21 में जब टीम इंडिया फिर ऑस्ट्रेलिया गई, तो पुजारा फिर दीवार बन गए. सिडनी और ब्रिस्बेन में शरीर पर अनगिनत चोटें खाईं. चोट लगीं, लेकिन हटे नहीं. ब्रिस्बेन में तो ऐसी-ऐसी चोटें खाईं कि देखकर सिहरन हो जाए. लेकिन, वो अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए. 271 रन बनाए, 928 गेंदें खेलीं. 29.20 के स्ट्राइक रेट से. और मज़े की बात ये थी कि इस बार रवि शास्त्री ने भी उनके स्ट्राइक रेट पर सवाल नहीं उठाया.

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pujara
मैच के दौरान शॉट लगाते पुजारा.
स्ट्राइक रेट पर उठता रहा सवाल

पुजारा का करियर हमेशा से ऐसा ही रहा. लोग उनके स्ट्राइक रेट पर सवाल उठाते रहे. कोहली और रवि शास्त्री को भी उनके धीरे खेलने से दिक्कत थी. लेकिन, अनिल कुंबले, जो उस समय टीम इंडिया के कोच थे, उन्होंने इस बहस को ख़त्म कर दिया. उन्होंने कहा कि टेस्ट क्रिकेट में स्ट्राइक रेट सिर्फ़ बॉलर के लिए होता है, बैटर के लिए नहीं. ये सही भी था. क्योंकि पुजारा की वो "धीरे" वाली बैटिंग ही तो भारत की ताकत बन गई थी. ऑस्ट्रेलिया जैसे देश के ज़िद्दी प्लेयर भी जब कहते थे कि उन्हें अगर किसी एक खिलाड़ी का विकेट चाहिए तो वो पुजारा का है, तो समझ लीजिए कि बंदे में कुछ तो ख़ास था. उनकी आक्रामकता शब्दों में नहीं, उनके बैट में दिखती थी.

हमेशा शांत प्लेयर की रही छवि

याद है उनका डेब्यू? 2010 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़. महेंद्र सिंह धोनी और गैरी कर्स्टन ने उन्हें नंबर 3 पर भेजा. पुजारा ने 89 गेंदों पर 72 रन की धमाकेदार पारी खेली. उस पारी के बाद लगा था कि ये बंदा तो तूफ़ानी बल्लेबाज़ है. लेकिन फिर वो नदी का बहाव शांत हुआ, और वो पहाड़ बन गए, जिसे हिलाना मुश्किल था. पुजारा ने कभी शिकायत नहीं की. जब उन्हें टीम से बाहर किया गया, तो उन्होंने चुपचाप डोमेस्टिक क्रिकेट में रन बनाए, और जब ज़रूरत पड़ी तो फिर वापस भी आए. वो लाइमलाइट से दूर रहे. शायद यही वजह है कि उनकी वैसी चर्चा नहीं हुई, जैसी होनी चाहिए थी. लेकिन, वो ख़ुश हैं. उन्हें पता है कि उन्होंने अपना सबकुछ दिया है. एक योद्धा की तरह लड़े, और एक भद्रपुरुष की तरह मैदान से बाहर निकले. इतिहास उन्हें हमेशा उसी योद्धा की तरह याद रखेगा, जिसने अपनी विकेट की क़ीमत सबसे ज़्यादा लगाई थी.

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लॉर्ड्स टेस्ट के दौरान घंटी बजाते पुजारा. 

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द्रविड़ की नहीं महसूस होने दी थी कमी

2010 में डेब्यू, 2023 में आखिरी मैच, इन 13 सालों में उन्होंने दिखाया कि कैसे एक बल्लेबाज़ अपनी जिद्द, अनुशासन और धैर्य के दम पर टीम को जीत दिला सकता है. जब राहुल द्रविड़ ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया, तो नंबर तीन की जगह खाली थी. पुजारा ने इस जगह को अपनी काबिलियत से भर दिया. पुजारा ने कभी लाइमलाइट में रहने की कोशिश नहीं की. उनका मकसद सिर्फ रन बनाना था. ड्रेसिंग रूम में भी वो एक शांत और सुलझे हुए प्लेयर थे. शायद इसी वजह से उन्हें वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे. लेकिन पुजारा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वो संतुष्ट हैं, क्योंकि उन्होंने मैदान पर अपना 100% दिया.

37 साल के पुजारा ने 103 टेस्ट मैचों में 43.60 के औसत से 7195 रन बनाए. इसमें 19 सेंचुरी और 35 हाफ सेंचुरी शामिल हैं. आज, जब उन्होंने संन्यास लिया है, तो इतिहास उन्हें हमेशा एक ऐसे योद्धा के रूप में याद रखेगा, जिसने बल्ले से नहीं, बल्कि अपने संयम से जीत दिलाई. वो एक ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्होंने दिखाया कि टेस्ट क्रिकेट में आक्रामकता का मतलब सिर्फ चौके-छक्के नहीं, बल्कि विकेट बचाना भी होता है.

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