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नॉर्मल चीज़ें, फ़ोन नंबर भूल जाते हैं? गलती आपके फ़ोन की है

आज की डेट में डिजिटल डिमेंशिया इंटरनेट जैसे उपकरणों के ज़्यादा इस्तेमाल से होता है.

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दिमाग की एक्सरसाइज करने से डिजिटल डिमेंशिया के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है
दिमाग की एक्सरसाइज करने से डिजिटल डिमेंशिया के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है
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सरवत
22 जुलाई 2022 (Updated: 22 जुलाई 2022, 11:57 PM IST)
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(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

एक समय था जब बच्चों से लेकर बड़ों के हाथ में मोबाइल फ़ोन नहीं हुआ करता था. इंटरनेट नहीं था. सोशल मीडिया नहीं था. ये कोई सदियों पुरानी बात नहीं है. इन फैक्ट जब मैं पैदा हुई थी तब तक देश में इंटरनेट नहीं आया था. न ही लोगों के पास मोबाइल फ़ोन थे. मुझे याद है तब अगर किसी दोस्त या रिश्तेदार को फ़ोन मिलाना होता था, तो हमारे मम्मी पापा को वो नंबर याद रहता था. किसी डायरी या डायरेक्टरी की भी ज़रुरत नहीं पड़ती थी. 

पर अगर अब मैं बोलूं कि अपने पड़ोसी या कोई बहुत ख़ास दोस्त का नंबर मिलाइए तो गारंटी है आपको वो नंबर याद नहीं होगा. आजकल अगर आपको कोई भी फ़ोन नंबर मिलाना तो आप उसे अपने फ़ोन के कॉन्टैक्ट्स में ढूंढते हैं. गिन के आपको 2-4 लोगों के नंबर याद होंगे. इस बात पर मेरा ध्यान तब गया जब मुझे एहसास हुआ कि न तो मेरी मम्मी, न ही मेरे बेस्ट फ्रेंड को मेरा नंबर याद है. बल्कि फ़ोन पर मेरी सबसे ज़्यादा बात इन्हीं दोनों से होती है.

और बात सिर्फ़ फ़ोन नंबर की नहीं है. फर्ज कीजिए आपको कुछ याद करना है. मतलब आप किसी गाने के बोल, कोई शब्द या कोई डेट याद करने की कोशिश कर रहे हैं. पर वो आपको याद ही नहीं आ रहा. ऐसे में आप अपने दिमाग पर जोर नहीं डालते, बल्कि दो सेकंड के अंदर वो चीज़ गूगल पर सर्च कर लेते हैं. हाथ के हाथ आपको आपका जवाब मिल जाता है. अब आप बोलेंगे इसमें बुराई क्या है? टेक्नोलॉजी ने इतनी तरक्की कर ली है, तो उसका फ़ायदा उठाया जाए. सही बात है. अच्छे दिन तो आए हैं, लेकिन केवल टेक्नोलॉजी के. आपको एहसास भी नहीं है पर आपका ब्रेन कमज़ोर पड़ रहा है. 

ऐसा हम नहीं, ख़ुद डॉक्टर्स कहते हैं. आपने डिमेंशिया बीमारी के बारे में तो सुना ही होगा. इसमें लोग चीज़ें भूलने लगते हैं. पर आजकल टेक्नोलॉजी के ज़्यादा इस्तेमाल से लोगों को डिजिटल डिमेंशिया हो गया है. ये एक वाजिब परेशानी है. डिजिटल डिमेंशिया के चलते इंसान की चीज़ों को याद रख पाने की क्षमता एकदम कम हो गई है. यकीन नहीं आता, सुनिए डॉक्टर्स इसके बारे में क्या कह रहे हैं.

डिजिटल डिमेंशिया क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर ज्योति कपूर ने.

Dr. Jyoti Kapoor – India's Top Psychiatrists | Mental Wellness
डॉक्टर ज्योति कपूर, सीनियर मनोचिकित्सक एंड फाउंडर, मनस्थली

-डिमेंशिया एक ऐसी मानसिक स्थिति है जो इंसान की कॉग्निटिव एबिलिटी (सोचने-समझने और याद रखने की क्षमता) कम हो जाने की वजह से होती है.

-कॉग्निटिव एबिलिटी यानी ज्ञान संबंधी कौशल जिसमें याद्दाश्त, समझ-बूझ, भाषा जैसी चीज़ों का ज्ञान शामिल होता है.

-ये मस्तिष्क की कोशिकाओं की हालत बिगड़ने या कमज़ोरी की वजह से पैदा होने वाली बीमारी है.

-ऐसा अल्ज़ाइमर जैसी तकलीफ़ों में देखा गया है.

-वैस्क्युलर डिमेंशिया भी होते हैं.

-आज की डेट में डिजिटल डिमेंशिया इंटरनेट जैसे उपकरणों के ज़्यादा इस्तेमाल से होता है.

कारण

-मैनफ्रेड स्पिट्ज़र वो इंसान है जिन्होंने डिजिटल डिमेंशिया शब्द बनाया.

-अब ये शब्द क्लिनिकल उपयोग में आने लगा है.

-क्योंकि आजकल हम अपने दिमाग के काम उपकरणों से करवाते हैं.

-हमें अगर कुछ याद करना होता है तो हम फ़ोन में देखते या स्टोर करते हैं.

-अगर कुछ ढूंढना होता है तो गूगल पर सर्च करते हैं.

-जो चीज़ें हमें पता भी हैं अगर वो हमें तुरंत याद नहीं आतीं तो हम उन्हें इंटरनेट पर सर्च करने लगते हैं.

-माना गया है कि ऐसा करने से हमारे दिमाग की उपयोगिता कम होती चली जा रही है.

-जब किसी चीज़ का इस्तेमाल कम होता है तब वो चीज़ कमज़ोर होने लगती है.

-मैनफ्रेड स्पिट्ज़र का कहना है कि टेक्नोलॉजी के ज़्यादा इस्तेमाल से शॉर्ट टर्म मेमोरी के पाथवेज़ कम इस्तेमाल होते हैं.

-इन पाथवेज़ के कम इस्तेमाल होने की वजह से असंतुलित प्रभाव पड़ रहा है दिमाग के डेवलपमेंट पर.

-ख़ासकर बच्चों और यंग अडल्ट्स में जिनके दिमाग अभी भी ग्रोइंग स्टेज में हैं.

-वहां इम्बैलेंस आने की वजह से ब्रेन के राइट और लेफ्ट साइड की एक्टिविटी में असंतुलन हो जाता है.

लक्षण

-2012 में डिजिटल डिमेंशिया शब्द के इस्तेमाल में आने के बाद बायोसाइको सोशल रिसर्च के माध्यम से इसके लक्षणों को इकट्ठा किया गया है.

-इसके शारीरिक लक्षणों में शामिल है झुका हुआ पॉस्चर.

-चीज़ों पर ध्यान न दे पाना.

-मेमोरी में डिस्टर्बेंस आना.

-छोटी-छोटी चीज़ों को याद न कर पाना.

Kids & Digital Dementia
2012 में डिजिटल डिमेंशिया शब्द के इस्तेमाल में आने के बाद बायोसाइको सोशल रिसर्च के माध्यम से इसके लक्षणों को इकट्ठा किया गया है

-उसके चलते गुस्सा, चिड़चिड़ापन, फ्रस्ट्रेशन, घबराहट, बेचैनी और उदासी महसूस होना.

-इन सबके चलते बॉडी का मूवमेंट भी कम हो रहा है.

-लोग फिजिकल एक्सरसाइज कम कर रहे हैं.

-जिसकी वजह से मांसपेशियों की क्षमता घट रही है.

-उनके घटने की वजह से कई शारीरिक परेशानियां पैदा हो रही हैं.

-ये सब डिजिटल डिमेंशिया के लक्षणों में गिने जाते हैं.

रिस्क फैक्टर

-कम उम्र के बच्चे भी आजकल कैलकुलेशन, चीज़ों को याद करने के लिए मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट से जुड़ी चीज़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

-जिस वजह से ब्रेन के लेफ्ट साइड की एक्टिविटी ज़्यादा होती है.

-जिसमें फैक्ट फाइंडिंग और लिनियर थिंकिंग शामिल है.

-इसलिए ब्रेन का लेफ्ट साइड ज़्यादा इस्तेमाल हो रहा है.

-उसके मुकाबले ब्रेन का राइट साइड जो कल्पनाशील, भावनात्मक, सहज एक्टिविटी को करता है, उसमें एक्टिविटी कम होती है.

-इसके चलते कॉन्सन्ट्रेशन, चीज़ों पर ध्यान देना, रीसेंट मेमोरी फंक्शन यानी वो चीज़ें जिन्हें हम हाथ के हाथ देखकर याद कर लेते हैं, इन सारी एक्टिविटी पर असर पड़ रहा है.

-साथ ही भावनात्मक संतुलन भी जा रहा है.

-जिसकी वजह से गुस्सा, चिड़चिड़ापन और तनाव डिजिटल डिमेंशिया के लक्षण बनते जा रहे हैं.

-बच्चों के दिमाग के डेवलपमेंट की बात करें तो जो एक्टिविटीज़ जैसे चीज़ों को याद करना.

-कैलकुलेशन करना.

-पढ़ाई करना.

-ये प्रोसेस बहुत ज़रूरी होता है दिमाग के डेवलपमेंट के लिए.

-अब क्योंकि इंसान ये प्रोसेस ख़ुद करने की बजाय दूसरी चीज़ों से करवा रहा है.

-जैसे कैलकुलेटर या मोबाइल पर वर्ड सर्च.

-इसकी वजह से बच्चों के ब्रेन के डेवलपमेंट पर काफ़ी असर पड़ रहा है.

-एक तरह का असंतुलन पैदा होता जा रहा है.

-डेवलपमेंट में देरी हो रही है.

Digital Dementia: A Modern Day Health Epidemic
कम उम्र के बच्चे भी आजकल कैलकुलेशन, चीज़ों को याद करने के लिए मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट से जुड़ी चीज़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं

-भाषा सीखने में देरी हो रही है.

इलाज

-डिजिटल डिमेंशिया से बचना है तो उसके कारण पर ध्यान देने की ज़रुरत है.

-कारण है कि हम इंटरनेट से रिलेटेड चीज़ों का ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं.

-जिसकी वजह से हमारे दिमाग की एक्सरसाइज नहीं हो पा रही.

-दिमाग की एक्सरसाइज करने से डिजिटल डिमेंशिया के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है.

-अगर कुछ याद करना चाहते हैं तो फौरन गूगल पर सर्च करने की बजाय ख़ुद को समय दें.

-ताकि वो चीज़ दिमाग की ताकत से वापस याद आ सके.

-कुछ माइंड गेम्स भी दिमाग की एक्टिविटी को बढ़ाते हैं.

-जैसे सुडोकु.

-किताब पढ़ें.

-इंटरनेट पर पढ़ने से ध्यान भंग होता है, क्योंकि उस पर कई हाइपर-टेक्स्ट होते हैं.

-किताब पढ़ना बेहतर है.

-नई भाषा सीखें.

-ये ब्रेन की एक्टिविटी को बढ़ाता है और नई कोशिकाओं को जन्म देता है.

अब समझ में आया. स्कूल में इतने बड़े-बड़े चैप्टर याद हो जाते थे. अब पांच-दस लाइन याद करने में या याद की हुई चीज़ों को रिकॉल करने में नानी क्यों याद आ जाती हैं. टेक्नोलॉजी सही चीज़ है. बड़े काम की भी है. पर अगर हमने अपने दिमाग के हिस्से का सारा काम मशीन या इंटरनेट को दे दिया तो दिमाग क्या करेगा? हमने तो हमेशा यही सुना है, खाली दिमाग शैतान का घर होता है. इसलिए आज से छोटे-छोटे बदलाव करना शुरू करते हैं. जैसे कोई चीज़ तुरंत याद नहीं आ रही तो उसे गूगल करने के बजाय दिमाग को थोड़ा टाइम दें. याद आ जाएगी. सब आखिर है यहीं पर. तो जो टिप्स आपने अभी सुनी हैं, उन्हें ट्राई करिए. 

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