कौन है 'पाताल लोक' का एंकर संजीव मेहरा जिसे मारने की प्लानिंग पर पूरी सीरीज़ बनी?
एक्टर नीरज कबी की कहानी, जिनकी पहली और दूसरी फिल्म के बीच 16 साल का फासला था.
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'पाताल' लोक में प्राइम टाइम जर्नलिस्ट संजीव मेहरा के रोल में नीरज कबी. बताया जाता है कि ये किरदार पत्रकार तरुण तेजपाल से प्रेरित है.
अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर कुछ ही दिन पहले एक वेब सीरीज़ आई है. 'पाताल लोक'. इसकी कहानी शुरू होती है प्राइम टाइम जर्नलिस्ट संजीव मेहरा पर होने वाले हमले की खबर से. और इसी केस की छानबीन के इर्द-गिर्द ये पूरी सीरीज़ घूमती है. जर्नलिस्ट संजीव मेहरा का रोल किया है नीरज कबी ने. जिस तरह का कॉन्टेंट इन दिनों बन रहा है, ये नीरज कबी होने का सबसे सही समय है. जैसे आप 'पाताल लोक' को ही ले लीजिए. संजीव मेहरा के किरदार का एक आर्क है. जब कहानी शुरू होती है, तब आपके मन में इस किरदार के प्रति सहानुभूति रहती है. लेकिन सीरीज़ के आखिरी सीन में अटेम्प्ट टु मर्डर केस का इन्वेस्टिगेटिव ऑफिसर और कहानी का नायक हाथीराम चौधरी, संजीव को ये कहकर जाता है-
''आपसे जब पहली बार मिला था ना, तो मुझे लगा कि कितने बड़े आदमी हो आप और मैं कितना छोटा. इस केस में मेरी चाहे कितनी भी वाट लगी हो, कम से कम ये ग़लतफ़हमी दूर हो गई.''गलतफहमी सिर्फ हाथीराम की ही नहीं, उस सीरीज़ को देख रहे तमाम लोगों की दूर हो गई. लेकिन कौन है ये शख्स, जिसे नीरज कबी के नाम से बुलाया जाता है? क्या कहानी है इसकी? शॉर्ट में बस इतना जानिए कि ये वो आदमी है, जिसकी पहली और दूसरी फिल्म की रिलीज़ के बीच 16 साल का फासला था. गालियां खाया, दुत्कारा गया, हर छोटा-बड़ा काम किया. सिर्फ इसलिए कि वो जो चाहता है, वो काम कर सके. एक्टिंग. अपनी तरह की एक्टिंग.
हिंदी फिल्में देखकर शर्म आती थी
नीरज खुद को आधा ओड़िया-आधा पारसी बताते हैं, जो झारखंड (तब बिहार) के जमशेदपुर में बड़ा हुआ. डॉक्टरों का परिवार था. बचपन में जब अतरंगी कपड़े पहनकर पेड़ के पास नाचते हीरो-हीरोइनों को देखते, तो बड़ी शर्मिंदगी होती. सोचते थे क्या कर रहे हैं ये लोग. कट टु 90 के दशक की शुरुआत. नीरज पुणे के सिम्बायोसिस कॉलेज में पढ़ रहे थे. सपना था कि अमेरिका से एमबीए करेंगे. लेकिन इसी बीच उनका कॉलेज थिएटर कॉम्पटीशन मूड इंडिगो में हिस्सा लेने आईआईटी बॉम्बे गया. यहां नीरज ने एक ओरिजिनल हिंदी नाटक 'एक रिफ्यूज़ी कैंप में' हिस्सा लिया. इसमें उनकी परफॉरमेंस के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला. एक्टिंग ने कुछ ऐसा महसूस कराया जैसे उसके लिए सबकुछ छोड़ा जा सकता है. सबसे पहले एमबीए का सपना छोड़ा और मुंबई चले आए. एक्टर बनने.

वेब सीरीज़ 'पाताल लोक' के कैरेक्टर पोस्टर में नीरज कबी.
लंबे स्ट्रगल के बाद पहली फिल्म मिली लेकिन काम नहीं!
बकौल नीरज, जब वो मुंबई आए, तब न उनके पास पैसे थे. न एक्टिंग का कोई खास अनुभव. न कोई जानने वाला. गलती सुधारने के लिए उन्होंने FTII (Film and Television Institute Of India) और NSD (National School Of Drama) दोनों जगह अप्लाई कर दिया. लेकिन एडमिशन नहीं मिला. ऑडिशन पर ऑडिशन देते रहे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. नीरज के मुताबिक उन्हें उस दौर में बड़े बुरे रोल मिल रहे थे, जिन्हें उन्होंने न करना ही मुनासिब समझा. बड़ी मेहनत से 1995-96 में एक फिल्म मिली. ओड़िया भाषा के मशहूर फिल्ममेकर ए.के. बीर की 'शेष दृष्टि' (The Last Vision). इस फिल्म को NFDC (National Film Development Corporation of India) ने प्रोड्यूस किया था. फिल्म को इंटरनेशनल लेवल पर काफी सराहना मिली. दिल्ली, कैरो और सिंगापोर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स के कंपटीशन में इस फिल्म ने हिस्सा लिया. 1998 में नेशनल अवॉर्ड भी जीती. नीरज को लगा उनका बेड़ा पार. लेकिन नहीं. पिक्चर अभी बाकी थी मेरे दोस्त.

फिल्म 'शेष दृष्टि' में संग्राम नाम के किरदार में नीरज कबी.
इतने सालों तक किया क्या?
'शेष दृष्टि' के बाद नीरज को लगा कि उन्हें ब्रेक मिल गया है. लेकिन वैसे कुछ नहीं हुआ था. वो अब भी लगातार ऑडिशन दे देकर रिजेक्शन की लत लगा बैठे थे. लेकिन इस 14-15 सालों में किया क्या? इस सवाल के जवाब में नीरज फिलोसॉफिकल हो जाते हैं. कहते- ''किए तो बहुत सारे काम. पर उस बारे में बात नहीं करना चाहता. वो विकास का समय था. बहुत ग्रोथ हुआ.'' जो काम नीरज बताना नहीं चाहते, उसमें फिल्म सेट पर स्पॉटबॉय, असिस्टेंट डायरेक्टर, प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में छोटे-बड़े काम से लेकर घर-घर घूमकर किताबें तक बेचना तक शामिल था. लोग गालियां देकर भगा देते. मुंह पर दरवाज़ा बंद कर देते. नीरज इसे ग्रोथ का समय इसलिए मानते हैं क्योंकि इस दौरान उनकी ईगो मर गई. वो हंबल हो गए. वो शहर भर में घूमकर अंग्रेज़ी, मैथ, स्पीच और एलोक्यूशन जैसे विषयों पर होम ट्यूशन पढ़ाने लगे. लेकिन जब मुंबई आने का मक़सद याद आया, तो उठ खड़े हुए. खुद को ट्रेन करने लगे. धीरे-धीरे दूसरे लोगों को भी एक्टिंग की ट्रेनिंग देने लगे. बीतते समय के साथ अपना खुद का थिएटर ग्रुप शुरू किया, जिसका नाम रखा गया 'प्रवाह'. भले यहां वो दुनियाभर के प्ले डायरेक्ट करने लगे. लेकिन फिल्मों में काम उन्हें अब भी नहीं मिल रहा था.

अपने एक थिएटर वर्कशॉप के दौरान बच्चों के साथ नीरज कबी.
इतने सबके बाद जब फिल्म मिली, तो मना कर दिया
नीरज को फिल्म इंडस्ट्री से बड़ी नाराज़गी थी. बड़ी बेकद्री हुई थी उनकी. ऐसे में 2010 में आनंद गांधी ने नीरज को फोन किया. वो एक फिल्म ऑफर कर रहे थे लेकिन कुछ सुनने से पहले ही नीरज ने वो फिल्म करने से मना कर दिया. आनंद ने कहा कि भई कम से कम एक बार मिल तो लो. जब दोनों मिले, तो नीरज वो स्क्रिप्ट पढ़कर हिल गए. उसी स्क्रिप्ट पर 'शिप ऑफ थिसियस' नाम की फिल्म बनी. ये बड़ी इंडी टाइप फिल्म थी. आनंद को भी पता था कि ये बहुत देखी जाने वाली फिल्म नहीं है लेकिन ये खालिस पीस ऑफ आर्ट है. इसलिए बननी चाहिए. कोई प्रोड्यूसर इस प्रोजेक्ट पर पैसा लगाने को तैयार नहीं था. फिर इससे जुड़े एक्टर सोहम साह, जिन्होंने इसमें एक्टिंग करने के साथ-साथ फिल्म को प्रोड्यूस भी किया. इसके बाद नीरज को थोड़ा-बहुत काम मिलना शुरू हुआ. 'मॉन्सून शूटआउट', 'गांधी ऑफ द मंथ' और 'डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी' जैसी फिल्में मिलीं. 'शिप ऑफ शिसियस' का ट्रेलर आप यहां देख सकते हैं:
रानी मुखर्जी के साथ काम करने को शाहरुख बन गए
नीरज कबी को मेनस्ट्रीम में लेकर आने वाली फिल्में रहीं मेघना गुलज़ार की विशाल भारद्वाज प्रोड्यूस्ड 'तलवार' और यशराज फिल्म्स की रानी मुखर्जी स्टारर 'हिचकी'. 'तलवार' वाला रोल काफी इंटेंस था. क्योंकि वो एक पिता का किरदार था, जिसके सिर पर उसकी बेटी के कत्ल का इल्ज़ाम था. ये फिल्म उन्हें मेघना ने ऑफर की और फिल्म से जुड़े लोगों को देखते हुए नीरज ने ये फिल्म साइन कर ली. असली मज़ा 'हिचकी' की कास्टिंग में आया. नीरज, फिल्ममेकर सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा के साथ एक रेस्टोरेंट में बैठे इसी फिल्म के बारे में बात कर रहे थे. वो यशराज के साथ 'ब्योमकेश बख्शी' कर चुके थे दूसरी फिल्म पर बात चल रही थी. जैसे ही उन्हें पता चला कि इसमें वो रानी मुखर्जी के साथ काम करने वाले हैं, नीरज रेस्टोरेंट में अपनी कुर्सी पर चढ़कर खड़े हुए और दोनों हाथ फैलाकर शाहरुख का सिग्नेचर पोज़ करने लगे.
ये थोड़ा मज़ाकिया, तंजनुमा और शायद ये बताने के लिए था कि वो भी ये सब कर सकते हैं. 'हिचकी' असल मायनों में नीरज के लिए ब्रेकथ्रू फिल्म साबित हुई. इसके बाद से लेकर अब तक वो 'द फील्ड', 'लाल कप्तान' जैसी फिल्में और 'सेक्रेड गेम्स', 'ताज महल 1989' और अब 'पाताल लोक' जैसी वेब सीरीज़ में काम कर चुके हैं.

फिल्म 'हिचकी' के एक सीन में रानी मुखर्जी के साथ नीरज कबी. ये फिल्म उनका करियर बदलने वाली साबित हुई थी.
वीडियो देखें: 'पाताल लोक' में हाथीराम का किरदार निभाने वाले एक्टर जयदीप अहलावत की कहानी