The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • What Is Kisaan Dhara 288 Which...

वो धारा 288 क्या है, जिसका ऐलान करके किसानों ने पुलिस को हद में रहने की चेतावनी दे दी है

पहली बार इसका ऐलान महेंद्र सिंह टिकैत ने 1988 की बोट क्लब रैली में किया था

Advertisement
Img The Lallantop
1988 में महेंद्र सिंह टिकैत ने पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच सीमा रेखा खींचते हुए धारा 288 का ऐलान किया था.
pic
मयंक
30 नवंबर 2020 (Updated: 30 नवंबर 2020, 05:37 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसान आंदोलन दिन-प्रतिदिन बड़ा होता जा रहा है. जहां सरकार इस आंदोलन को ख़त्म कराने के तरीके ढूंढने में जुटी है, वहीं किसान राशन-पानी लेकर सड़कों पर डटे हुए हैं. कह रहे हैं कि जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, तब तक नहीं उठेंगे. इस बीच, सोमवार को यूपी-दिल्ली के गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों ने तंबू गाड़ दिया. एक बैनर भी टांग दिया, जिस पर लिखा है-
यहां भारतीय किसान यूनियन की धारा 288 लागू है. यहां किसानों के अलावा सभी का प्रवेश वर्जित है.
आखिर क्या है ये धारा 288, और किसान क्यों इसकी चेतावनी दे रहे हैं, आइये जानते हैं इस रिपोर्ट में.

क्या है ये धारा 288?

ये धारा 288 न तो आईपीसी और न ही सीआरपीसी जैसे किसी कानून की धारा है. किसानों का कहना है कि ये धारा 288 दरअसल पुलिस की धारा 144 का जवाब है. जिस तरह से धारा 144 यानी निषेधाज्ञा लगाने के बाद पुलिस एक जगह पर 5 या उससे अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा देती है. उस  एरिया में लोगों के आने-जाने पर पाबंदियां लगा देती है. कुछ वैसा ही किसान अपनी धारा 288 लगाकर ऐलान कर देते हैं. वो बताते हैं कि इसके बाद न तो किसानों के इलाके में पुलिस आ सकती है, और न ही किसान पुलिस के इलाके में जाएंगे. गाज़ीपुर बैरिकेडिंग के उस तरफ जहां पुलिस का पहरा है, तो इस तरफ किसानों ने धारा 288 लिखकर ये ऐलान कर दिया है कि कोई भी पुलिसकर्मी, प्रशासनिक अधिकारी या सरकारी आदमी इस तरफ न आये.

कब से हुई इसकी शुरुआत?

किसान धारा 288 के इतिहास की बात करें तो पहली बार इसे 1988 के किसान आंदोलन में भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने इस्तेमाल किया था. आज से 32 साल पहले 25 अक्टूबर 1988 को किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के हजारों लोग अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब पर रैली करने उमड़ पड़े थे. बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली आए थे. कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे. किसानों को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस को लोनी बॉर्डर पर फायरिंग भी करनी पड़ी थी. इसमें 2 किसानों की जान चली गयी थी. इसके बाद आंदोलन और भी उग्र हो गया था. इसके बाद तो देशभर के 14 राज्यों से करीब 5 लाख किसान प्रदर्शन करने दिल्ली आ गए थे. इसे देखते हुए पूरे शहर में धारा 144 लगा दी गयी थी.
इसी के बाद, किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच सीमा रेखा खींचते हुए धारा 288 का ऐलान किया था. उन्होंने कहा था कि 144 की वजह से अगर हम उनके इलाके में नहीं जा सकते, तो धारा 288 की वजह से पुलिस वाले भी हमारे इलाके में नहीं आ सकते. अंत में हारकर राजीव गांधी की सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा था और सारी मांगें माननी पड़ीं थी.

अब फिर से किया गया है ऐलान

किसानों के मौजूदा आंदोलन के मद्देनजर यूपी से भी किसान दिल्ली आना चाहते हैं. लेकिन पुलिस ने उन्हें सीमा पर ही रोक दिया है. किसानों ने यहां पुल के नीचे ही अपने तंबू लगा दिए हैं. सोमवार 30 नवंबर को भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने गाज़ीपुर बॉर्डर पर एक बार फिर से धारा 288 का ऐलान कर दिया है.
Kisaan Dhaara 288
किसानों का कहना है कि इस बार वो पूरी तैयारी के साथ आये हैं, लंबी लड़ाई के लिए.

आंदोलन के बारे में राकेश टिकैत ने कहा है कि हम दिल्ली को जोड़ने वाले हर हाइवे को जाम कर देंगे. सीमा पर ही झोपड़ियां बनाएंगे ताकि 26 जनवरी तक रुक सकें. उन्होंने ये भी साफ किया है कि हमारे किसान बुराड़ी नहीं जाएंगे.


Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement