नरेंद्र मोदी और खड़गे ने अपने भाषण में नेहरू पर क्या कहा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सदन के बाहर बोले और फिर सदन के अंदर. बगल में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बैठे हुए थे. अपने भाषण की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने इस इसरार के साथ की कि संसद भवन का निर्माण भले विदेशियों ने कराया, अंग्रेजों ने कराया. लेकिन इस भवन को बनाने में पसीना भारतवासियों का लगा था, मेहनत भारत के लोगों की थी और पैसा भी भारत के लोगों का था. इसके बाद उन्होंने भारत की दो उपलब्धियों की घोषणा की.

आज मेन टॉपिक पर आने से पहले कुछ जरूरी अपडेट्स...जिस समय हम ये कॉपी लिख रहे हैं, केंद्रीय कैबिनेट की एक मीटिंग चल रही है. संसद के स्पेशल सत्र के दरम्यान ऐसी मीटिंग्स के मायने क्या हैं? कयास हैं कि जो नए बिल संसद में आने वाले हैं, उसी की तैयारी हो रही है. एक अपडेट ये भी है कि भाजपा को एक झटका लगा है, तमिलनाडु में. तमिलनाडु की प्रमुख पार्टी AIADMK - ऑल इंडिया अन्ना द्रविड मुनेत्र कड़गम ने भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ दिया है. न ध्यान हो तो ध्यान धरा देते हैं - वही जयललिता वाली पार्टी. और अपडेट्स आएंगी तो और बातें भी करेंगे.
पर बड़ी ख़बर ये कि आज यानी 18 सितंबर को 144 पिलर वाले पुराने संसद भवन के दरवाजे आखिरी बार संसदीय कार्रवाई के लिए खुले. अगले दिन से सभी को संसद की नई बिल्डिंग में बैठना है. पुरानी बिल्डिंग शायद एक अजायबघर में तब्दील होने वाली है, ऐसा आसमान में उड़ने वाले पंछी बताते हैं.
देश के प्रतिनिधि अपना वर्कप्लेस शिफ्ट कर रहे हैं तो ये मौक़ा पुराने भवन से जुड़ी यादों को मुड़कर देखने का भी है. ये वही बिल्डिंग है, जिसने आज़ादी देखी, जिसने सरकारों का गिरना-बनना देखा, महत्वपूर्ण कानूनों पर अभूतपूर्व किस्म की बहसें देखीं. आतंकवादियों की गोलियों के घाव झेले, वीरगति को प्राप्त हुए जवानों का रक्त देखा. भावनात्मक जुड़ाव लाज़िम है. इस दिन संसद में खूब बातें हुई. प्रधानमंत्री के भाषण से कार्रवाई शुरु हुई, विपक्ष भी नहीं चूका. लेकिन इसके अर्थ क्या हैं?
पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सदन के बाहर बोले और फिर सदन के अंदर. बगल में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बैठे हुए थे. अपने भाषण की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने इस इसरार के साथ की कि संसद भवन का निर्माण भले विदेशियों ने कराया, अंग्रेजों ने कराया. लेकिन इस भवन को बनाने में पसीना भारतवासियों का लगा था, मेहनत भारत के लोगों की थी और पैसा भी भारत के लोगों का था. इसके बाद उन्होंने भारत की दो उपलब्धियों की घोषणा की -
1 - चंद्रयान 3
2 - G20 सम्मेलन
फिर पीएम मोदी ने सुनाया अपना किस्सा. संसद में पहली बार आने का किस्सा. जब साल 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में एंट्री ली थीतो उन्होंने अपना माथा टेका था. ऐसा क्यों हुआ था?
लेकिन इसी मौके पर प्रधानमंत्री ने दो-तीन रोचक जानकारियां दीं. जैसे बंगाल से आने वाले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़े इंद्रजीत गुप्ता 43 साल तक सांसद रहे. उन्होंने शफ़ीकुररहमान बर्क का नाम लिया, सपा नेता, पश्चिम यूपी के संभल के सांसद जो 93 साल की उम्र में भी संसद आते हैं. पीएम ने ओडिशा से आने वाली बीजू जनता दल की सांसद चंद्राणी मुर्मू का भी नाम लिया. क्यों? क्योंकि वो सबसे युवा सांसद हैं.
लेकिन जब संसदीय परंपराओं की विरासत पर बात हो रही है..., जब इस परंपरा की वाहक रही एक पुरानी बिल्डिंग से विदा लेने की बात हो रही है.., तो यहाँ पर पीएम के भाषण से एक पॉज़ लेकर पुराने भवन का इतिहास जान लेते हैं.
#पुराने संसद भवन में क्या खास हैपुराने संसद भवन की एक-एक ईंट अपने विशाल और समृद्ध अतीत को समेटे हुए है. बात की शुरुआत नींव से करेंगे.
> 12 फरवरी, 1921 - ड्यूक ऑफ कनॉट ने इस भवन की नींव रखी थी. ये ड्यूक ऑफ कनॉट महारानी विक्टोरिया के बेटे प्रिंस ऑर्थर थे. ड्यूक ब्रिटिश काल में शासकों को दी जाने वाली एक उपाधि थी.
> एडविन लुटियंस, इनका काम था आर्किटेक्ट का. चीजों की डिजाइन बनाते थे. उन्होंने संसद भवन डिज़ाइन किया. डिज़ाइन का आधार चुना मध्य प्रदेश के मुरेना में मौजूद चौसठ योगिनी मंदिर को. हरबर्ट बेकर को इसे बनाने की जिम्मेदारी मिली. मतलब डिजाइन लुटियन्स का, ईंट-गारे का काम हर्बर्ट बेकर का.
> 6 साल तक काम चला. संसद भवन बनकर रेडी हो गया. 18 जनवरी 1927 को तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया.
> बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक भवन के निर्माण में उस वक्त 83 लाख रुपये खर्च हुए थे. इसके निर्माण का कनेक्शन राजस्थान के धौलपुर से भी है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि इसके कंस्ट्रक्शन के लिए धौलपुर से करीब 3 लाख 75 हजार क्यूबिक फीट पत्थर ट्रेन से दिल्ली लाया गया था. जब ये बनकर तैयार हुआ तो इसे आर्किटेक्चर का बेहतरीन नमूना माना गया.
> अंग्रेजों ने दिल्ली में राजधानी बनाने के इरादे से प्रशासनिक ढांचा चलाने के लिए इसे बनाना शुरू किया था.
> साल 1946. देश आज़ादी के करीब था. इसी बिल्डिंग में पहली बार संविधान सभा की बैठक हुई.
> देश आजाद होने के बाद इसे भारतीय संसद बनाया गया.
#जब PM मोदी संसद में क्या बोलेये हुआ इतिहास. फिर से आते हैं पीएम मोदी के भाषण पर. पीएम मोदी जिस समय संसद के महात्म्य का उल्लेख कर रहे थे, बहुत सारी बातें कह रहे थे.., पूर्व सांसदों के उस लगाव पर बोल रहे थे, जो सांसदी जाने के बाद भी उन्हें सेंट्रल हॉल तक खींच लाता है. या संसदीय परंपराओं की बात कर रहे थे. पीएम मोदी उस वक़्त अक्रॉस पार्टी लाइन बात कर रहे थे. बिना किसी तरफदारी के, बिना किसी विरोध के. फिर प्रधानमंत्री मुखातिब हुए उनसे, जो लोकसभा और राज्यसभा के ठीक बीचोबीच बैठकर कागजी काम करते रहते हैं. कभी नोट्स लेते हुए. कभी कागज़ यहां से वहां पहुंचाते हैं.
> जवाहरलाल नेहरू का आज़ादी का भाषण, जो आज भी प्रेरणा देता है
> देश की पहली सरकार का ज़िक्र, इस सरकार में बाबा साहब अंबेडकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की भूमिका
> हरित क्रांति और 65 के युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री का सदन में भाषण और एक्शन
> इंदिरा गांधी के नेतृत्व में बांग्लादेश की मुक्ति का आंदोलन
> इमरजेंसी के वक्त लोकतंत्र पर हमला
> इमरजेंसी के बाद लोकतंत्र की वापसी
> चरण सिंह सरकार में ग्रामीण मंत्रालय का गठन
> जब मतदान की उम्र 21 साल से घटाकर 18 साल तक की गई
> नरसिम्हाराव सरकार में नई आर्थिक नीतियाँ, भारत के बाजार को जब विदेशी निवेशकों के लिए खोलना
> वाजपेयी सरकार में सर्वशिक्षा अभियान, और आदिवासी कार्य मंत्रालय, पूर्वोत्तर मंत्रालय बनाना
> मनमोहन सिंह सरकार में जब भाजपा सांसदों ने नोटों की गड्डी लहराई
फिर पीएम मोदी अपनी सरकार पर आए, ज़िक्र किया जीएसटी का, आर्टिकल 370 हटाए जाने का और वन रैंक वन पेंशन की घटना का.
#खड़गे और धनकड़ के बीच क्या हुआ?पुरानी संसद का आखिरी दिन. इधर लोकसभा में पीएम मोदी बोल रहे थे, तो राज्यसभा में नेता विपक्ष मलिकार्जुन खड़गे. संक्षेप में आपको बताएं तो खड़गे के भाषण में भी नेहरू का ज़िक्र था. और बहाने से निशाने पर थे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार.
खड़गे ने कहा कि नेहरू अपने विपक्षियों को साथ लेकर चलते थे. पहली सरकार में उन्होंने आंबेडकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी को साथ में रखा. लेकिन खड़गे ने मोदी सरकार पर विपक्षियों से दूरी बनाने का आरोप लगाया. मजबूत विपक्ष होने की बात कही तो सही, लेकिन खड़गे ने एक तंज भी कसा. कहा कि यहां विपक्ष मजबूत है तो ED और CBI की मदद से उसे कमजोर किया जा रहा है. फिर विपक्ष को वॉशिंग मशीन की मदद से क्लीन किया जाता है. खड़गे का इशारा ऐसे नेताओं की ओर था, जिन पर ED और CBI की जांच ठीक उस मौके पर बंद हो गई, जब इन नेताओं ने भाजपा ज्वाइन की.
खड़गे ने एक कदम आगे बढ़कर सभापति जगदीप धनखड़ के रोल पर भी सवाल उठाए. कहा कि पहले विधेयकों को स्टैन्डिंग कमिटी के पास भेजा जाता था. अब नहीं भेजा जाता है. खड़गे ने धनखड़ को एक और समझाइश दी. कहा कि सभापति जी, आप हम विपक्षियों को उनकी गलती की सजा देते हैं, कभी उनको - यानी सत्तापक्ष के लोगों को - भी सजा दीजिए.
राज्यसभा में खड़गे और सभापति जगदीप धनखड़ के बीच हंसी मज़ाक भी हुआ. विपक्ष के खेमे से कभी कोई तैश में आकर आवाज देता तो खड़गे बोलते - अरे मत परेशान करो चेयरमैन को. ये एकाध बार होता. एक मौके पर तो धनखड़ ने पलटकर कह दिया
"खड़गे जी, आप ही पहले उकसाते हो, फिर आप ही उनको शांत कराते हो."
ऐसा ही मौका एक बार और आया. खड़गे ने कहा कि हमने मणिपुर हिंसा पर बहस की मांग रखी. प्रधामन्त्री यहां बात करने नहीं आए. धनखड़ तपाक से बोल पड़े -
"अरे, मैंने कोशिश भी की."
खड़गे ने जवाब दिया - अब बताइए, उन्होंने आपकी भी बात नहीं मानी.
सदन के इस सत्र में जो बिल टेबल होने वाले हैं, या जिनकी घोषणा हो चुकी है, क्या कुछ और बिल हैं, जिनके बारे में कुछ ही मंत्रियों को पता है? कयास लगाए जा रहे हैं.
लेकिन जब देश के सांसद कल नये संसद भवन में बैठेंगे, तो उन्हें ध्यान होना चाहिए कि जनता उन्हें देख रही होगी. उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि भवन भले ही बदल रहा हो, पर उस इमारत का लोकतंत्र, उसकी परंपरा, उसका संवाद बना रहना चाहिए. ये देश रहना चाहिए. उसका लोकतंत्र रहना चाहिए.