गेहूं-चावल के निर्यात बैन का दूसरे देशों ने किया विरोध, भारत ने WTO में दिया ये जवाब
भारत ने इस साल मई में गेहूं और सितंबर में टूटे चावल के निर्यात पर बैन लगा दिया था.

वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) की एक मीटिंग में भारत ने गेंहू और चावल के निर्यात पर रोक लगाने वाले अपने फैसले का बचाव किया है. वहीं कुछ देशों ने भारत के इस फैसले पर चिंता जताई है. सेनेगल, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने भारत के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वैश्विक बाजार में इस फैसले का बुरा असर होगा.
भारत ने क्या सफाई दी?दरअसल, भारत ने इस साल मई में गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी थी. वहीं सितंबर में टूटे चावलों के निर्यात को भी रोक दिया था, और देश के अंदर चावल की सप्लाई बढ़ाने के लिए उबला चावल(PARBOILED RICE) को छोड़ कर गैर-बासमती चावल पर 20% की इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी गई थी. अपने फैसलों का बचाव करते हुए भारत ने कहा कि पॉल्यूटरी में इस्तेमाल किए जाने वाले जिन टूटे चावलों के निर्यात पर रोक लगाई गई है, उनके अधिक निर्यात की वजह से भारतीय बाजार काफी दबाव में था.
भारत ने आगे कहा कि ये फैसला कुछ ही समय के लिए है, और हम लगातार इसपर नजर बनाए हुए हैं. इधर सेनेगल की तरफ से अपील की गई है कि भारत को ऐसे मुश्किल समय में ये रोक नहीं लगानी चाहिए. सेनेगल, भारत से चावल का एक प्रमुख आयातक है.
WTO के सदस्य देशों का क्या कहना है?मीटिंग में थाईलैंड, आस्ट्रेलिया, उरुग्वे, अमेरिका, कनाडा, ब्राजील, न्यूजीलैंड, पैराग्वे और जापान ने पीस क्लॉस के तहत भारत से इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए कहा है, ताकि इस फैसले से किसी भी प्रकार के व्यापारिक मतभेद न हों. अप्रैल में भारत ने धान की खेती करने वाले किसानो के लिए तीसरी बार पीस क्लॉज़ लागू किया था. भारत ने WTO को बताया कि देश में साल 2020-2021 में धान की खेती करने वाले किसानों के ज्यादा फायदे के लिए उन्होंने पीस क्लॉज़ लागू किया था, ताकी देश की गरीब जनता के लिए उचित मात्रा में राशन उपलब्ध हो पाए.
इससे पहले साल 2013 में बाली में हुई WTO की एक मीटिंग में 'पीस क्लॉज़' नाम का एक टेम्पररी समाधान निकाला गया था. जिसके मुताबिक कोई भी विकासशील देश अगर 10 प्रतिशत से ज़्यादा सब्सिडी देता है, तो कोई भी देश इसका विरोध नहीं करेगा.
(ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे आर्यन ने लिखी है.)
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