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Puja Khedkar को तो जान लिया, लेकिन क्या मानसिक तौर पर बीमार लोग भी बन सकते हैं IAS?

Trainee IAS Pooja Khedkar: नियम के अनुसार, विकलांगता के आधार पर आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब विकलांगता कम से कम 40 प्रतिशत हो. इस बारे में कई और भी नियम हैं.

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Trainee IAS Pooja Khedkar Disability Certificate Rules Explained
ट्रेनी IAS पूजा खेडकर. (तस्वीर साभार: इंडिया टुडे)
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रवि सुमन
17 जुलाई 2024 (Updated: 17 जुलाई 2024, 03:54 PM IST) कॉमेंट्स
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महाराष्ट्र काडर की ट्रेनी IAS पूजा खेडकर (Puja Khedkar) पर कई आरोप लगे हैं. एक आरोप उनकी विकलांगता प्रमाण पत्र (UPSC Disability Certificates) को लेकर भी लगा. कई रिपोर्ट्स में ऐसा सामने आया कि खेडकर को कई अस्पतालों ने विकलांगता प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया था. UPSC की परीक्षा में उन्होंने PwBD (पर्सन विद बेंचमार्क डिसेबिलिटी) उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया था. उन्होंने दो मेडिकल सर्टिफिकेट लगाए थे. एक मानसिक विकलांगता और दूसरा देखने में होने वाली दिक्कत से जुड़ा था. इस आर्टिकल में विकलांगता सर्टिफिकेट के लिए जरूरी बातों पर चर्चा करेंगे. विकलांगता के प्रकारों की भी बात करेंगे. विकलांग लोगों को मिलने वाले आरक्षण को भी समझेंगे. ये भी बताएंगे कि क्या कोई मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति भी कोटा के जरिए IAS बन सकता है.

किसको मिल सकता PwBD Reservation?

डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनल एंड ट्रेनिंग (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) की आधिकारिक वेबसाइट पर इस बारे में जानकारी उपलब्ध है. इसके अनुसार, सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए जरूरी है कि व्यक्ति की विकलांगता कम से कम 40 प्रतिशत हो. इस आरक्षण के लिए व्यक्ति को सक्षम अधिकारी से विकलांगता का सर्टिफिकेट प्राप्त करना होता है. ये व्यवस्था RPwD (राइट ऑफ पर्सन विथ डिसेबिलिटी) ACT के तहत की गई है.

सिर्फ Disability Certificate काफी नहीं

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूजा खेडकर के मामले में उनकी विकलांगता 7 प्रतिशत बताई जा रही है. हालांकि, इन मामलों में सिर्फ विकलांगता सर्टिफिकेट मिल जाना ही काफी नहीं होता. मुखर्जी नगर में विजन IAS कोचिंग संस्था के श‍िक्षक पुष्पेंद्र श्रीवास्तव ने इंडिया टुडे को इस बारे में जानकारी दी है.

कोई अभ्यर्थी आरक्षण के लिए विकलांगता प्रमाण लगाता है. और मेडिकल बोर्ड ने उसपर 40 प्रतिशत विकलांगता लिखा है, तो शुरूआत में ये मान्य होता है. लेकिन जब UPSC में सेलेक्शन हो जाता है तब इसकी जांच फिर से कराई जाती है. UPSC से मान्यता प्राप्त मेडिकल बोर्ड इस बात की जांच करता है कि अभ्यर्थी की विकलांगता का दावा सही है या नहीं. UPSC इसके लिए तारीख और समय देता है.

Pooja Khedkar की जांच क्यों नहीं हो सकी?

पुष्पेंद्र इस बारे में बताते हैं कि कोरोना के कारण पूजा खेडकर मेडिकल बोर्ड में नहीं गईं. और इस जांच को टालती रहीं. कोरोना का दौर खत्म होने के बाद भी वो बार-बार एक्सटेंशन लेती रहीं. इसी बीच उन्होंने जॉइनिंग ले ली. उन्हें दोबारा बुलाया गया लेकिन वो जा नहीं रही थीं. अगर किसी उम्मीदवार ने कोई कोटा लिया है तो UPSC उसकी जांच जरूर कराता है. सर्ट‍िफिकेट की जांच के बिना किसी भी तरह के कोटे का फायदा नहीं दिया जा सकता.

विकलांगता तय कैसे की जाती है?

RPwD में मूल रूप से 5 तरह की विकलांगता की बात की गई है. 

  • फिजिकल डिसेबिलिटी यानी शारीरिक अपंगता. इसके तहत लोकोमोटर डिसेबिलिटी (चलने-फिरने में दिक्कत), विजुअल इंपेयरमेंट (देखने में दिक्कत), हियरिंग इंपेयरमेंट (सुनने में दिक्कत) के साथ बोलने और भाषा की विकलांगता आती है.
  • इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी यानी बौद्धिक विकलांगता. इसके तहत सीखने की क्षमता की जांच की जाती है.
  • मेंटल बिहेवियर यानी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा मामला.
  • क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल स्थितियां और खून से जुड़ी दिक्कतें.
  • मल्टीपल डिसेबिलिटी. (ऊपर दी विकलांगता में से 1 से ज्यादा).

विकलांगता के इन 5 प्रकारों में कई उप-प्रकार भी हैं. अरूणाचल प्रदेश में पोस्टेड IAS इरा सिंघल ने इस बारे में इंडिया टुडे से जुड़ीं मानसी मिश्रा को जानकारी दी है. इरा ने साल 2014 में UPSC परीक्षा में ऑल इंडिया टॉप किया था. इरा लोकोमोटर डिसेबिलिटी (स्कोलियोसिस) से ग्रस‍ित थीं. उन्होंने बताया कि RPwD में कई बदलाव किए गए हैं. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के साथ एसिड अटैक सर्वाइवर को भी जोड़ा गया है.

PwD कैंडिडेट का IPS में चयन नहीं होता

उन्होंने बताया कि कोटे को लेकर सोशल मीड‍िया में कई तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं. जैसे कोई कह रहा है कि IPS की सर्व‍िस में विकलांगता कोटे से लोग गए हैं, लेकिन ऐसा संभव ही नहीं है. IPS और पुलिस की सर्विस में कोई भी PwD कैंडिडेट जा ही नहीं सकता. उन्होंने कहा कि अगर पूजा खेडकर केस की बात करें तो कोई भी कैंडिडेट दो साल तक प्रोबेशन में होता है, अगर इन दो साल में उसका मेडिकल वेरिफाई नहीं होता है तो 2 साल बाद उसे निकाल दिया जाएगा. नियम बहुत स्पष्ट हैं, जब तक कोटा अप्रूव नहीं होता तब तक पोस्टिंग कंडीशनल होती है.

बाकी की नौकरियों के लिए भी मेडिकल बोर्ड

डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनल एंड ट्रेनिंग की वेबसाइट के मुताबिक, केंद्र सरकार या राज्य सरकार एक मेडिकल बोर्ड का गठन करती हैं. बोर्ड में तीन डॉक्टर नियुक्त किए जाते हैं. तीन में से एक डॉक्टर उस क्षेत्र में स्पेशलिस्ट होना चाहिए, जिसमें विकलांगता की जांच होनी है. अगर बोर्ड ये मान लेता है कि व्यक्ति विकलांग है तभी वो किसी नौकरी का पात्र होता है, इसमें बोर्ड ये भी तय कर सकता है कि विकलांगता कितनी अवधि तक रह सकती है. अगर बोर्ड एक तय अवध‍ि देता है तो उसके बाद उसे विकलांग नहीं माना जाता.

वीडियो: ट्रेनी IAS पूजा खेडकर की उस ऑडी कार का क्या हुआ जिसपर सायरन और VIP प्लेट लगे थे

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