ऋतिक स्टारर मुअनजो दड़ो का ट्रेलर आ गया है और चिंतित होने की बात है
सिंधु घाटी सभ्यता जैसे प्राचीन व विशाल विषय की मिट्टी पलीत कर दी गई है. ये आशुतोष गोवारिकर की सबसे कमजोर फिल्म हो सकती है.
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फोटो - thelallantop
हिस्ट्री की बी.सी. और ए.डी. जैसी तारीखों, हुमायूं-बाबर-अकबर के बेटों पिताओं के नामों और सिंधु घाटी सभ्यताओं के अवशेषों को याद रखना स्कूली जीवन में बहुत कष्टकारी रहा है. जरा भी रुचि न थी. लेकिन अब इच्छा होती है कि एक-एक फिर से पढ़ूं और जानूं कि मैं कहां से आया हूं. मेरे पुरखे. इस संसार के पुरखे कहां से आए? कैसे आए? और सबसे खास बात ये कि इस तरह से जानूं कि वो सत्य के बहुत करीब हो. उसमें noise कम से कम हो.
लगान (खेलें हम जी जान से से नहीं पहचानेंगे उन्हें) वाले आशुतोष गोवारिकर ने जब ईसा मसीह और बुद्ध से भी पहले की प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता पर फिल्म बनाने की घोषणा बीते वर्षों में की तो मन प्रफुल्लित हुआ कि बॉलीवुड ने इतना कठिन विषय चुना है. कि लगान के दौरान उन्होंने संतुष्ट किया अपनी प्रोडक्शन वैल्यू से, इसमें भी करेंगे. हालांकि जब उन्होंने हीरो ऋतिक रोशन को चुना तो माथा ठनका. लेकिन फिर उसे फुसलाया कि क्या पता जोधा अकबर से थोड़ा बेहतर तक तो पहुंच ही सकते हैं, इतना भी कठिन नहीं.लेकिन अभी कुछ मिनट पहले जब फिल्म का पहला ट्रेलर आया तो तीन-चार बार देखने के बाद चिंता हो उठी है. चीजें बहुत बेहतर नहीं लग रही हैं. इतनी जल्दी किसी फिल्म के बारे में टिप्पणी करना ठीक नहीं, वो भी निर्णायक ढंग से लेकिन जो है, वो है. फिर भी एक बार थियेटर में जाकर फिल्म देखनी ही है, ये भी तय है. लेकिन हालात चिंताजनक है. हम अपनी छोटी छोटी फिल्मों की प्रोडक्शन वैल्यू को कहां से कहां ले जा रहे हैं और इस फिल्म के जरिए हम फिर से उसी फिल्ममेकिंग की ओर लौटने वाले हैं जहां गुफा में हीरो की बहन और मां को विलेन उठाकर बंदी बना लेता था और हीरो बचाने आता था. सबको आ भिशुम आ भिशुम करके मार-पीटता था.




2. इतना गरिष्ठ संदर्भ मिला, मार दिया: मौत का दड़ा/टीला, इतिहास का ऐसा दफन सच जिसमें न जाने कितनी विस्मयकारी कहानी छुपी है. इस पूरे ट्रेलर में कहीं भी वो संस्पेंस, थ्रिल, गरिष्ठता, रेफरेंस के पीछे छिपी कहानियों की लेयर और जिज्ञासाओं की शांति नहीं है जो इस नाम से उभरनी चाहिए. इसमें मौत की तो कहीं कोई विवेचना है ही नहीं. जो सबसे केंद्रीय थीम है.


4. दो गुंडे हैं: एक हैं अरुणोदय सिंह जो शायद नगर में किसानों से सामान खरीदते हैं लेकिन कम दामों पर और उनका शोषण करते हैं. ऋतिक का पात्र किसी दूसरी जगह से आता है अपना सामान बेचने शायद और वो एक हीरो बनकर उभरता है, हक की बात करता है. 'मोहनजो दारो' की सेवा करना चाहता है. दूसरा गुंडा है नगर का शासक महम. ये रोल कबीर बेदी ने किया है, अपनी उसी आइकॉनिक आवाज में वे डायलॉग बोलते हैं जिसमें यहां बदलाव की जरूरत थी.



6. जोधा अकबर जैसा ही लगता है: ऋतिक के कपड़े और मैदान में दूसरे लड़ाकों से भिड़ने के दृश्य और प्रस्तुति में वैसा ही फील आता है जैसा जोधा अकबर वाले पीरियड में आया था. नगर की दीवारें हों, मिट्टी, बाजार और अन्य ब्यौरों में कहीं कुछ breathtaking नहीं है. जो इतनी प्राचीन फिल्म में सबसे पहली आवश्यकता होती है.

