The Lallantop
Advertisement

मोदी को खुला ख़त लिखने वाले कृष्णा लाए मैग्सेसे

'ब्राह्मणवाद' से नाराज होकर खुद का म्यूजिक फेस्टिवल शुरू कर दिया.

Advertisement
Img The Lallantop
कृष्णा
font-size
Small
Medium
Large
27 जुलाई 2016 (Updated: 27 जुलाई 2016, 15:16 IST)
Updated: 27 जुलाई 2016 15:16 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार इस बार एक ऐसे भारतीय को मिला है जिसने संगीत को 'जाति' के नजरिये से देखने की कोशिश की. हिंदुस्तान में धन-संपत्ति की तरह कला भी जाति से प्रभावित है. इस चीज को स्वीकार कर इस प्रभाव को ख़त्म करने की कोशिश करने वाले संगीतकार का नाम है टीएम कृष्णा. कृष्णा दक्षिण भारत के संगीत (Carnatic Music) में 6 साल की उम्र से ही लगे हुए हैं. हालांकि इकोनॉमिक्स में उनके पास एक डिग्री है पर संगीत ही इनकी जिंदगी में सब कुछ रहा है. 20 साल की उम्र से इन्होंने देश-विदेश में शो किए हैं.

चेन्नई म्यूजिक सीजन को कहा बाय, खुद का शुरू कर दिया मछुआरों के बीच

पर इन सबके दौरान इनकी नज़र गई ऐसी चीज पर जिसको जानते तो सभी हैं, पर उसके बारे में बात नहीं करते. चेन्नई म्यूजिक सीजन में कृष्णा हर साल जाते थे. पर 2015 में इन्होंने वहां जाने से इनकार कर दिया. इसकी वजह थी कि वह आने वालों कलाकारों में सारे ऊंची जाति के 'ब्राह्मण' थे. इस 100 साल पुराने फेस्टिवल में दुनिया भर से संगीतप्रेमी आते थे. कृष्णा के इनकार से सबको ये बात समझ आई. पर किसी ने कुछ किया नहीं. कहा गया कि कलाकार को इन बातों से अलग रहना चाहिए. पर कृष्णा के मन में कुछ और था. t m उन्होंने अपनी बातों और गुस्से के मुताबिक एक नया म्यूजिक फेस्टिवल शुरू किया. एक बीच पर. जहां सदियों से मछुआरे रहते थे. इसमें हर तबके के लोगों को मौका दिया गया. फ़रवरी 2016 में फेस्टिवल करा भी दिया गया. पूरी कोशिश यही रही कि हर तबके में संगीत पहुंचाया जाए.

पूछा था मोदी से कि अमेरिका के प्रेसिडेंट की तरह क्यों नहीं बोलते?

बिहार चुनाव के दौरान कृष्णा ने प्रधानमन्त्री मोदी को एक खुला ख़त भी लिखा था Scroll में. इसमें कहा था कि प्रधानमन्त्री जी, आप सबके एक होने की बात करते हैं. पर दादरी में हत्या और पूरे देश में दलितों पर अत्याचार के बारे में आपने कुछ नहीं बोला. कब बोलेंगे? अमेरिका के प्रेसिडेंट की तरह देश के मुद्दों पर बोलिए तो कम से कम. कृष्णा की 'आर्ट की पॉलिटिक्स' यानी 'कला की राजनीति' को समझने का जो इरादा है, इसने कई लोगों की आंख के पट खोल दिए हैं. ये सच है कि जब समाज में बहुत सारे लोग 'जाति' की वजह से हर जगह प्रताड़ित किए जा रहे हैं तो आप खुद को 'कलाकार' कहकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते. इसी साल भारत से ही मैग्सेसे पुरस्कार पाने वाले दूसरे एक्टिविस्ट बेजवाड़ा विल्सन ने भी जाति के खिलाफ ही जंग छेड़ी है. पढ़िए उनकी कहानी:

फख्र है: गू उठाने वाला ये इंडियन बंदा मैग्सेसे जीत लाया

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

पॉलिटिकल मास्टरक्लास में बात झारखंड की राजनीति पर, पत्रकारों ने क्या-क्या बताया?

लल्लनटॉप चुनाव यात्रा : बेगुसराय में कन्हैया की जगह चुनाव लड़ने वाले नेता ने गिरिराज सिंह के बारे में क्या बता दिया?
राष्ट्रकवि दिनकर के गांव पहुंची लल्लनटॉप टीम, गिरिराज सिंह, PM मोदी पर क्या बोली जनता?
लल्लनटॉप चुनाव यात्रा: एक फैसले के बाद से मुंबई के मूलनिवासी, जो कभी नावों के मालिक थे, अब ऑटो चलाते हैं
मुंबई के मूल निवासी 'आगरी' और 'कोली' समुदाय के लोग अब किस हाल में हैं?
लल्लनटॉप चुनाव यात्रा : बिहार की महादलित महिलाओं ने जातिगत भेदभाव पर जो कहा, सबको सुनना चाहिए

Advertisement

Advertisement

Advertisement