'केदारनाथ-बद्रीनाथ बौद्ध मठ थे, तोड़कर मंदिर बने', स्वामी प्रसाद को मायावती ने क्या जवाब दिया?
स्वामी के मुताबिक सातवीं शताब्दी तक उस जगह पर बौद्ध मठ था जहां आज केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम मौजूद हैं.

समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्या के एक और बयान पर विवाद हो गया है. विवाद है धर्मस्थलों को लेकर. स्वामी प्रसाद मौर्या ने दावा किया है कि केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम ‘बौद्ध मठ’ थे जिन्हें आठवीं शताब्दी में तोड़ कर हिन्दू मंदिर बनाए गए. उन्होंने दावा किया कि सातवीं शताब्दी तक उस जगह पर बौद्ध मठ था जहां आज केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम मौजूद हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर में ASI सर्वे की मांग का विरोध कर रहे हैं. ऐसे में बयान जारी कर उन्होंने कहा कि अगर जांच इस बात की हो रही है कि मस्ज़िद से पहले क्या था तो फिर इसकी भी जांच होनी चाहिए कि मंदिर से पहले क्या था. सपा नेता ने आगे दावा किया कि उत्तराखंड में जिस स्थान पर केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर स्थित हैं, वहां सातवीं शताब्दी तक बौद्ध मठ हुआ करते थे. आठवीं शताब्दी में बौद्ध मठ तोड़कर वहां मंदिर बना दिए गए.
ज्ञानवापी विवाद क्या है?वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में स्थित ज्ञानवापी परिसर में ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया गया था. शुरुआत श्रंगार गौरी की पूजा की अनुमति से हुई और अदालती मामला आगे बढ़ गया. श्रंगार गौरी के इतिहास के लिए कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर में एक सर्वे कराया गया तो वहां एक आकृति मिली. इस आकृति को हिन्दू पक्ष शिवलिंग बता रहा है तो मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये एक फव्वारा है. कोर्ट ने विवादित स्थल को सील कर दिया. उसने कहा कि वजूखाने वाली जगह को सील रखा जाएगा.
हिन्दू पक्ष ने सील की हुई जगह को छोड़कर बाकी परिसर का सर्वे कराने की मांग वाराणसी कोर्ट में रख दी. वाराणसी कोर्ट ने इसकी मंज़ूरी भी दे दी तो मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे के काम पर अंतरिम रोक लगाते हुए मुस्लिम पक्ष को हाई कोर्ट जाने को कह दिया. हाई कोर्ट में सर्वे कराने को लेकर जिरह पूरी हो चुकी है और फ़ैसला 3 अगस्त को आ सकता है.
उत्तराखंड के सीएम ने की निंदालेकिन कोर्ट के फैसले से पहले स्वामी प्रसाद मौर्या का बयान आ गया. इस पर बीजेपी नेताओं की तरफ से पलटवार हुए. सबसे पहले विरोध दर्ज कराने सामने आए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी. उन्होंने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने भावनाओं को आहत करने का काम किया है. धामी ने कहा,
धामी को स्वामी ने दिया जवाब“उत्तराखंड में स्थित चार धाम दुनियाभर के लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र हैं और स्वामी प्रसाद मौर्य की तरफ से दिया गया बयान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. वो जिस गठबंधन का हिस्सा हैं, उनके लिए ऐसे बयान देना स्वाभाविक है.”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के इस बयान के बाद स्वामी प्रसाद मौर्या ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि उनकी मंशा भावनाएं आहत करने की नहीं थीं. हालांकि उन्होंने अपना बयान वापस नहीं लिया. सिर्फ सफाई दी. फेसबुक पर लिखे एक पोस्ट में स्वामी प्रसाद ने लिखा है,
"आखिर मिर्ची लगी न, अब आस्था याद आ रही है. क्या औरों की आस्था, आस्था नहीं है? इसलिए तो हमने कहा था किसी की आस्था पर चोट न पहुंचे इसलिए 15 अगस्त, 1947 के दिन जिस भी धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी, उसे यथास्थिति मानकर किसी भी विवाद से बचा जा सकता है. अन्यथा ऐतिहासिक सच स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए. 8वीं शताब्दी तक बद्रीनाथ बौद्ध मठ था उसके बाद यह बद्रीनाथ धाम हिन्दू तीर्थ स्थल बनाया गया, यही सच है."
मायावती ने भी स्वामी प्रसाद पर तंज किया
बयान पर बीजेपी के अलावा बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी स्वामी प्रसाद को घेर लिया. कभी अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत बसपा से करने वाले स्वामी को मायावती से ये सुनने को मिला,
“स्वामी प्रसाद का बयान विशुद्ध राजनीतिक बयान है. वो लंबे समय तक बीजेपी में रहे, तब क्यों नहीं पार्टी और सरकार पर इस तरह का दबाव बनाया? अब चुनाव नज़दीक है तो बयान जारी कर घिनौनी राजनीति कर रहे हैं. मुस्लिम और बौद्ध स्वामी प्रसाद के बहकावे में आने वाले नहीं हैं.”
स्वामी का विवादों से पुराना नाता
सपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने कोई पहली बार विवादित बयान नहीं दिया है. इससे पहले रामचरितमानस को लेकर भी उन्होंने सवाल खड़े किए थे. ‘ढोल गंवार शुद्र पशु नारी…’ वाली चौपाई का विरोध करते हुए उन्होंने महिलाओं, दलितों और पिछड़ों का मुद्दा उठाया था. कोरोना में उन्होंने मज़दूरों को मौत का सौदागर बताया था. हिन्दू रीति रिवाज से होने वाली शादियों से लेकर कई अलग अलग मुद्दों पर स्वामी प्रसाद के बयानों पर बवाल होते रहे हैं.
वीडियो: बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री को सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने क्या करने का चैलेंज दिया?