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सिगरेट की तरह दारू पर भी 'मुकेश' की फ़ोटो होगी? सुप्रीम कोर्ट ने डिसाइड कर दिया

याचिका में मांग की गई थी कि शराब की बोतलों पर दी जाने वाली वैधानिक चेतावनी का आकार बढ़ाकर बोतल के 50 पर्सेंट के बराबर किया जाए ताकि खरीदने वाला उसे साफ देख सके.

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liquor warning size petition supreme court
सांकेतिक तस्वीर. (Unsplash.com)
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दुष्यंत कुमार
23 सितंबर 2022 (Updated: 23 सितंबर 2022, 02:33 PM IST)
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“शराब पीना सेहत के लिए हानिकारक है.”
(Drinking is injurious to health.)
 

"शराब पीकर गाड़ी न चलाएं."
(Don't Drink and Drive.)

हमें पता है कि ये आपको पता है. ये भी पता है कि शराब की बोतल पर ये चेतावनियां छपी होती हैं. लेकिन बहुत छोटे शब्दों में. आंखें फैलाकर न देखो तो पता भी नहीं चलेगा. एक वकील साहब को इससे दिक्कत थी. अश्विनी उपाध्याय नाम है. हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं लगाते रहते हैं. शराब की बोतलों पर छपने वाली हेल्थ वॉर्निंग्स के साइज को वो बढ़वाना चाहते थे. सो PIL डाल दी. बोले कि इन चेतावनियों का साइज बढ़ाइए. फोटो भी लगाइए. ताकि शराब खरीदने वाले इसके दुष्प्रभाव आसानी से पढ़ और देख सकें. खबर ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की इस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है.

आजतक से जुड़े सुरेंद्र शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, PIL में अश्विनी उपाध्याय ने मांग की थी कि शराब की बोतलों पर छपने वाली वैधानिक चेतावनी का आकार बोतल के आधे हिस्से यानी उनके 50 पर्सेंट के बराबर होना चाहिए. अश्विनी उपाध्याय ने मांग की कि बड़े आकार वाली चेतावनी में शब्दों के साथ-साथ तस्वीरों का भी इस्तेमाल किया जाए. जैसा कि सिगरेट और तंबाकू के पैकेटों पर दिखता है.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वकील की याचिका सुनने से इनकार कर दिया. मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने कहा कि ये नीतिगत मामला है, जिसे सरकार को तय करना है. अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से कहा कि वो केवल शराब जैसे उत्पाद के लिए ये मांग कर रहे हैं, शराब पीने पर प्रतिबंध लगाने को नहीं कह रहे. उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि इस मामले में उसके थोड़े से हस्तक्षेप से युवाओं को फायदा होगा, क्योंकि ये (शराब का सेवन) हानिकारक है.

लेकिन CJI ने कहा,

"ये सब व्यक्तिगत विचार हैं. कुछ लोग कहते हैं कि कम मात्रा में ली गई शराब स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, लेकिन सिगरेट के साथ ऐसा नहीं है. आप या तो इसे वापस लें या हम इसे खारिज कर देंगे. ये एक नीतिगत मामला है."

इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट भी इस मामले में अश्विनी उपाध्याय की याचिका खारिज कर चुका है. जुलाई 2022 के अपने एक फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने यही मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि आबकारी नियमों के तहत शराब की बोतलों पर चेतावनी देने का काम पहले से ही किया जा रहा है और किसी व्यक्ति की मांग पर इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता.

डिसक्लेमर- हम ये साफ कर दें कि न्यायालय की पूरी कार्यवाही के ब्योरे देना संभव नहीं होता. संक्षेपण किया जाता है. वकीलों की दलीलों और बेंच की टिप्पणियों का क्रम कई बार बना नहीं रह पाता. बावजूद इसके, दी लल्लनटॉप ने उपलब्ध जानकारियों को समेटने की कोशिश की है. दर्शक जानते ही हैं कि कार्यवाही की भाषा अंग्रेजी होती है. इसीलिए हमने अनुवाद पेश किया है. न्यायालय की कार्यवाही की सटीक जानकारी के लिए न्यायालय से जारी आधिकारिक आदेश को ही देखा जाए.

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