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हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को उल्टा टांगा, कड़े निर्देश में कहा, 'अगर FIR दर्ज नहीं की तो...'

'राज्य सरकारें हेट स्पीच पर खुद से ऐक्शन लें. शिकायत नहीं मिले तो भी केस दर्ज करें.'

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Supreme Court on Hate speech
पिछले कुछ सालों में हेट स्पीच के मामले बढ़े हैं. (तस्वीरें- इंडिया टुडे और Unsplash.com)
28 अप्रैल 2023 (Updated: 28 अप्रैल 2023, 20:25 IST)
Updated: 28 अप्रैल 2023 20:25 IST
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सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर हेट स्पीच (Supreme Court on hate speech) को लेकर राज्य सरकारों और पुलिस पर सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने हेट स्पीच को "गंभीर अपराध" बताते हुए कहा कि इससे देश का धर्मनिरपेक्ष ढांचा प्रभावित हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया है कि हेट स्पीच के मामलो में स्वत: संज्ञान लें और कोई शिकायत दर्ज नहीं मिलने पर भी केस दर्ज करें. इससे पहले अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार को इस तरह का आदेश दिया था.

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने हेट स्पीच केस से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिया. बेंच ने कहा कि अगर ऐसे मामलों में FIR दर्ज करने में देरी की जाएगी तो उसे कोर्ट की अवमानना के तौर पर देखा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, हेट स्पीच देने वाला व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति या समुदाय का हो, उसे कानून तोड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश वकील निज़ाम पाशा की याचिका पर दिया है. याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि सभी राज्यों में नोडल ऑफिसर की नियुक्ति होनी चाहिए, जो हेट स्पीच के मामलों में कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हो.

29 मार्च को कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से अवमानना की याचिका पर जवाब मांगा था. आरोप था कि राज्य सरकार रैलियों में लग रहे भड़काऊ भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करने में असफल रही है. इसी बेंच ने तब कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था, 

“राज्य (सरकार) नपुंसक और शक्तिहीन है, जो समय पर एक्शन नहीं लेती. जब राज्य ऐसे मामलों में चुप रहेंगे तो उनके होने का क्या मतलब है?”

28 अप्रैल को भी महाराष्ट्र सरकार पर सख्त होते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा, 

"आप हमारे आदेशों को हल्के में नहीं ले सकते."

पिछले साल क्या आदेश दिया था?

अक्टूबर 2022 में याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया था. याचिका में 'मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बढ़ते मामलों' पर जल्द रोक लगाने की मांग की गई थी. तब कोर्ट ने कहा था कि ये एक बेहद गंभीर मामला है कि शिकायत के बावजूद प्रशासन हेट स्पीच के मामलों में कार्रवाई नहीं कर रहा है. तीनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर कहा गया था कि वे रिपोर्ट जमा कर बताएं कि उन्होंने हेट स्पीच मामलों में क्या कार्रवाई की है.

हेट स्पीच के मामले बढ़े

हेट स्पीच के मामले में IPC की धारा-153(A) के तहत तीन साल की सजा हो सकती है. इसके अलावा धारा 153 (बी), 295 (ए) और 506 के तहत भी कार्रवाई होती है. कानून के मुताबिक अगर कोई बोलकर या लिखकर किसी भी तरीके से हिंसा भड़काने या दो समुदायों के बीच सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश करता है तो उसे हेट स्पीच के दायरे में अपराध माना जाएगा.

देश में पिछले सात सालों में हेट स्पीच के मामले काफी बढ़े हैं. NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 में धारा-153(A) के तहत 336 केस दर्ज हुए थे, जो 2020 में बढ़कर 1804 हो गए. हालांकि ऐसे मामलों में सजा की दर काफी कम रही है. साल 2020 में हेट स्पीच के केस में सजा पाने की दर सिर्फ 20 फीसदी थी.

वीडियो: हेट स्पीच पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टीवी चैनल को आईना दिखा दिया

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