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"चुनाव आयुक्त कैसे बनाया? कोई गड़बड़ नहीं तो फ़ाइल दिखाओ" - सुप्रीम कोर्ट का आदेश

"...आप सही हैं और कोई गड़बड़ी नहीं है तो आपको डरने की भी जरूरत नहीं है."

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supreme court election commissioner arun goel file
तस्वीरें- पीटीआई और ट्विटर.
24 नवंबर 2022 (Updated: 24 नवंबर 2022, 23:34 IST)
Updated: 24 नवंबर 2022 23:34 IST
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सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने केंद्र सरकार से चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइल तलब कर ली है. अरुण गोयल हाल ही में चुनाव आयुक्त बनाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयुक्तों की प्रक्रिया पर आपत्ति जताते हुए इसमें सुधार की मांग वाली याचिका दायर की गई थी. शीर्ष अदालत मामले की सुनवाई कर रहा है. इसी बीच अरुण गोयल निर्वाचन आयुक्त नियुक्त कर दिए गए. अब कोर्ट ने ये कहते हुए उनकी नियुक्ति संबंधी फाइल मांग ली है कि वो ये जानना चाहता है कि अपॉइन्टमेंट के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई.

सुप्रीम कोर्ट ने अरुण गोयल की फाइल क्यों मंगवाई?

आजतक से जुड़े संजय शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर ये नियुक्ति कानूनी तौर से सही है तो फिर घबराने की क्या जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि उचित होता अगर अदालत की सुनवाई के दौरान नियुक्ति ना होती. पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस अजय रस्तोगी ने निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हुए एक उदाहरण के साथ सरकार से कहा,

“क्या कभी किसी पीएम पर आरोप लगे तो क्या आयोग ने उनके खिलाफ ऐक्शन लिया है? आप हमें निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया समझाएं. हाल ही में आपने एक आयुक्त की नियुक्ति की है. अभी तो आपको सब याद होगा. किस प्रक्रिया के तहत आपने उनको नियुक्त किया है?”

रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने अपनी एक दलील में निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया की तुलना न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया से की थी. इस पर पीठ ने कहा,

"न्यायपालिका में भी नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव आए. मौजूदा सिस्टम में अगर खामी हो तो उसमें सुधार और बदलाव लाजिमी है. सरकार जब जज और सीजेआई की नियुक्ति करती थी, तब भी महान न्यायाधीश बने. लेकिन प्रक्रिया पर सवालिया निशान थे तो प्रक्रिया बदल गई."

पीठ में शामिल जस्टिस अजय रस्तोगी ने सरकार से दो टूक पूछा कि वो निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करते समय सिर्फ नौकरशाहों तक ही सीमित क्यों रहती है. इसके जवाब में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ये एक अलग बहस हो जाएगी. अगर किसी मामले में कोई घोषणापत्र है तो सरकार उसका पालन कैसे नहीं करेगी? इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने ये भी कहा था कि सरकार ऐसा नहीं करती कि मनपसंद अफसर को उठाकर नियुक्त कर दिया.

सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसफ ने टिप्पणी की,

"हमें मौजूदा दौर में ऐसे सीईसी की आवश्यकता है जो पीएम के खिलाफ भी शिकायत मिलने पर ऐक्शन ले सके. मान लीजिए किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ आरोप लगे हों और निर्वाचन आयुक्त यानी सीईसी को कार्रवाई करनी हो. लेकिन आयोग और सीईसी अगर यस मैन यानी कमजोर घुटने और कंधे वाले हों तो क्या ये मुमकिन होगा? यानी वो उनके खिलाफ ऐक्शन नहीं लेता है. क्या ये सिस्टम का पूर्ण रूप से ब्रेकडाउन नहीं है? 

संविधान और जनविश्वास के मुताबिक सीईसी को राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है. उसे स्वायत्त और स्वतंत्र होना चाहिए. आयुक्तों के चयन के लिए भी एक स्वतंत्र निकाय होना चाहिए. सिर्फ कैबिनेट की मंजूरी ही काफी नहीं है. नियुक्ति कमेटियों का कहना है कि बदलाव की सख्त जरूरत है. राजनेता भी ऊपर से चिल्लाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता."

कोर्ट की टिप्पणी पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर कानून की आवश्यकता है तो अदालत संसद को सुझाव दे सकती है. लेकिन न्यायालय सुप्रीम ऑर्डर जारी नहीं कर सकता. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि न्यायालय ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो संसद को करना चाहिए. यानी कानून के अभाव में अदालत ये नहीं कह सकती कि यही कानून है, इसलिए आप कानून होने तक इसका पालन करें. केंद्र सरकार के वकील ने कहा,

"देश के संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति सर्वोच्च अधिकारी हैं. वही नियुक्ति करते हैं. उनके पास कानून के अभाव में वैकल्पिक तंत्र भी है. अब नियुक्ति को सिर्फ इसलिए अवैध नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस बाबत कोई कानून नहीं है."

हालांकि तुषार मेहता की दलीलों से कोर्ट को फर्क नहीं पड़ा. जस्टिस केएम जोसफ ने फिर नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा,

"कोई भी सरकार अपने किसी हां जी, हां जी यानी जी हुजूरी करने वाले या उन जैसे अधिकारी को ही निर्वाचन आयुक्त बनाती है. सरकार को मनचाहा मिल जाता है और अधिकारी को भविष्य की सुरक्षा. ये सब दोनों पक्षों को सही लगता है. लेकिन ऐसे में बड़ा सवाल है कि गुणवत्ता का क्या होगा जिस पर गंभीर असर पड़ रहा है? उनके ऐक्शन की स्वायत्तता पर सवाल उठते हैं. इस पद के साथ स्वायत्त भी जुड़ा होता है."

वहीं अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि 1991 के बाद से निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में कोई खामी नहीं मिली. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि छोटे कार्यकाल को लेकर भी सरकार क्या कर सकती है क्योंकि 65 साल की उम्र तक ही इस पद पर बना रहा जा सकता है. सरकार ने इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की है. निर्वाचन आयुक्त नियुक्त होते हैं. फिर उनमें वरिष्ठता के आधार पर ही मुख्य आयुक्त बनाए जाते हैं.

इस पर जस्टिस जोसफ ने पूछा कि जब सरकार किसी को निर्वाचन आयुक्त बनाती है तभी उसको पता रहता है कि कौन कब और कब तक सीईसी बनेगा. जस्टिस अजय रस्तोगी ने भी टिप्पणी की कि सरकार जिसे निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करती है वही तो मुख्य आयुक्त बनते हैं. ऐसे में ये कैसे कह सकते हैं कि वह सरकार से स्वायत्त हैं? क्योंकि नियुक्ति की प्रक्रिया स्वायत्तता वाली नहीं है. कोर्ट ने कहा कि एंट्री लेवल से ही स्वतंत्र प्रक्रिया होनी चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर की मानें तो सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि "आप जैसा दावा करते हैं, उस मुताबिक आप सही हैं और कोई गड़बड़ी नहीं है तो आपको डरने की भी जरूरत नहीं है"

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि संविधान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सीधी नियुक्ति की कोई अवधारणा या प्रावधान नहीं है. इस पर जस्टिस केएम जोसफ ने कहा,

"फिर तो हमें देखना होगा की आयुक्तों की नियुक्ति कैसे हो! क्योंकि उन्हीं में से तो सीईसी बनते हैं."

सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर ये सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.

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