The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Supreme Court asks Rahul Gandhi to choose between two choices over his remark about involvement of RSS in Gandhi's assassination

क्या गांधी के मरने पर RSS ने मिठाई बंटवाई थी?

क्या उस दिन RSS सदस्यों को रेडियो ऑन रखने को कहा गया था. क्योंकि उनके मुताबिक 'अच्छी खबर' आने वाली थी?

Advertisement
Img The Lallantop
ऊपर गांधीजी का शव, नीचे नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और गंगाधर दंडवते
pic
ऋषभ
24 अगस्त 2016 (Updated: 24 अगस्त 2016, 10:27 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
एक RSS कार्यकर्ता की अर्जी पर राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट में खड़े थे. आरोप है कि उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव के अपने भाषण में RSS को गांधी का हत्यारा बताया था.
राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनके कहने का ये मतलब नहीं था कि इसके पीछे पूरा RSS संगठन था. उन्होंने RSS के कुछ लोगों पर आरोप लगाया था, पूरे संगठन पर नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल के इस बयान को केस बंद करने के लिए काफी माना है. हालांकि राहुल के खिलाफ अर्जी डालने वाले के वकील ने 1 सितंबर तक का समय मांगा है.
लेकिन सच क्या है? क्या सच में इस हत्या में RSS शामिल थी? अगर नहीं तो उसे बाद में बैन क्यों किया गया. इसके लिए हमें तमाम रिपोर्ट और देश की बदलती राजनीति को मिला-जुलाकर देखना होगा.
26 फ़रवरी 2003 को बीजेपी की सरकार ने पार्लियामेंट हाउस में विनायक दामोदर सावरकर का पोर्ट्रेट लगाया जहां गांधी का पोर्ट्रेट भी बरसों से लगा हुआ है.
30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या हुई थी. खाकी पैंट पहने नाथूराम गोडसे ने गोली चलाई थी. माना गया कि ये एक आदमी का काम नहीं था. जांच शुरू हुई बड़े लेवल पर. उसके बाद मुक़दमा चला. कई लोगों पर. इनमें विनायक सावरकर का नाम भी था. कई लोगों की गवाही हुई. पर सावरकर के बॉडीगार्ड और सेक्रेटरी की गवाही नहीं हुई. सावरकर को दोषी नहीं पाया गया. यही माना गया कि नाथूराम गोडसे और उसके साथी ही इस अपराध के जिम्मेदार थे.

गांधी की हत्या पर पूरे सबूत कोर्ट में नहीं गए थे! 17 साल बाद नया कमीशन बैठा. सावरकर पर गंभीर आरोप लगे.

नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी हुई. 6 लोगों को आजीवन कारावास. 1964 में वो लोग सजा काटकर बाहर आये. उस वक़्त बाल गंगाधर तिलक के नाती जी वी केटकर ने ऐलान किया: मुझे नाथूराम गोडसे के गांधी मर्डर प्लान के बारे में पता था. जनता एकदम अवाक रह गई. गांधी की हत्या में हमेशा किसी भी तरह के बड़े षड़यंत्र से इनकार किया जाता था. सरकार को तुरंत एक्शन लेना पड़ा. एक सांसद की अध्यक्षता में 'पाठक कमीशन' बनाया गया. पर वो मंत्री बन गए. तो 1966 में एक नया 'कपूर कमीशन' बनाया गया, सिर्फ एक आदमी को लेकर. जीवनलाल कपूर, जज जो सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे. 3 साल तक कमीशन की जांच चली. 101 गवाहों के बयान लिए गए. 162 बैठकें हुईं. दिल्ली, बम्बई से लेकर चंडीगढ़, पुणे, नागपुर और बड़ौदा तक जांच हुई. सबसे पहली पूछ-ताछ केटकर से ही हुई. फिर गांधीजी की हत्या की जांच करनेवाले DCP नागरवाला और उस वक़्त के बॉम्बे एस्टेट के चीफ मिनिस्टर मोरारजी देसाई से. बाद में सावरकर के बॉडीगार्ड और सेक्रेटरी से भी. इन लोगों ने कहा: हां, गांधीजी की हत्या के दो दिन पहले 28 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे और आप्टे सावरकर के घर आये थे. वो पहले भी आते रहते थे. उस दिन सावरकर ने उनको 'यशस्वी हो के आने' का आशीर्वाद दिया था.
“अगर मुझे किसी आदमी की गोली से मरना है तो मैं मुस्कुरा के मरूँगा. उस वक़्त ईश्वर का नाम मेरे दिल और जबान पर होंगे. और ऐसा कुछ होता है तो आप में से कोई एक आंसू भी नहीं गिराएगा.- गांधीजी, जनवरी 28, 1948
विनायक सावरकर
विनायक सावरकर

पूरी जांच के दौरान बहुत से ऐसे डाक्यूमेंट्स आये जो पहले की जांच में सबमिट ही नहीं किए गए थे. कमीशन ने ऐसी बहुत सारी गड़बड़ियों को उजागर किया. उस वक़्त के दिल्ली पुलिस के IG संजीवी के काम पर भी सवाल किए.
अंत में जस्टिस कपूर ने अपनी रिपोर्ट में कहा: "All these facts taken together were destructive of any theory other than the conspiracy to murder by Savarkar and his group."
सरदार पटेल ने नेहरू से कहा था: गांधीजी की हत्या के षड़यंत्र में सावरकर के अंडर हिंदूसभा का एक ग्रुप मौजूद था.

नाथूराम गोडसे की स्पीच जो एक आम आदमी तैयार नहीं कर सकता था, जड़ें कहीं और थीं

अगर आप ट्रायल के दौरान नाथूराम गोडसे की स्पीच सुनेंगे, तो आप पाएंगे कि उसका काम एक क्षण का पागलपन नहीं था. वो अपने काम के प्रति पूरी तरह आश्वस्त और डेडिकेटेड था. वो बहुत ही तार्किक ढंग से अपना पक्ष रखता है. वो कहता है कि अहिंसा वाले गांधीजी का 'अनशन' खुद के प्रति की गई हिंसा है. इसीलिए मैं उनकी अहिंसा वाली थ्योरी को नहीं मानता. मेरे अलावा ऐसे बहुत से लोग हैं जो गांधीजी की पॉलिटिक्स को पसंद नहीं करते पर वो लोग उनके सामने अपना सर झुका देते हैं. मुझे पता था कि जो मैं करने जा रहा हूं, उससे मैं बर्बाद हो जाऊंगा. इस काम के बदले में मुझे सिर्फ नफरत मिलेगी. पर ये भी होगा कि भारत की पॉलिटिक्स में गांधी नहीं रहेंगे. और ये देश के लिए अच्छा रहेगा.
nathuram-godse-in-court-3
जब ट्रायल चल रहा था

और यहीं पर पता चलता है कि इतना डिटेल में सोचना एक व्यक्ति के लिए आसान नहीं है. एक बड़े नेता, राष्ट्रपिता, की हत्या करने के लिए किसी के पास कोई बहुत बड़ी वजह होनी चाहिए. किसी भी राजनीतिक हत्या में ये वजह दी जाती है. हत्यारों के दिमाग में ये वजह डाली जाती है. फिर पुरस्कार भी गिनाये जाते हैं. त्याग, राष्ट्रप्रेम, महानता और अमरता. जिसको ब्रेनवॉश कहा जाता है. क्योंकि ये तर्क सिर्फ हिंसा की तरफ ही ले जाते हैं.
नाथूराम गोडसे की जड़ें उस वक़्त के हिंदूवादी संगठन हिन्दू महासभा और आरएसएस से जुड़ी थीं. पर ऐसा कोई सबूत नहीं मिल पाया था जिससे दोनों संगठनों पर क्रिमिनल चार्ज लगाया जा सके. पर इनको राजनीति से दूर रहना पड़ा. सरदार पटेल ने आरएसएस से लिखित में लिया था कि वो मात्र एक सांस्कृतिक संगठन बन के रहेंगे. राजनीति में नहीं आयेंगे.

नाथूराम गोडसे का भूत जो आरएसएस का पीछा नहीं छोड़ता

वक़्त गुजरा. भाषा, देश-प्रेम, इमरजेंसी, मंडल, कमंडल और गठबंधन की यात्रा की भारतीय राजनीति ने. उसी के साथ आरएसएस राजनीति में आई. पीछे से. बीजेपी के रूप में. और एक समय का आरएसएस प्रचारक भारत का प्रधानमन्त्री बना. श्री नरेन्द्र मोदी. बहुमत से.
'कल्चरल नेशनलिज्म' का खाका तैयार करने का मौका मिला. कोशिश भी शुरू हो गई. पर इससे आरएसएस की एक मुश्किल ख़त्म नहीं हुई. आरएसएस के लिए गोडसे के भूत से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो रहा था. कोर्ट और कमीशन ने कहीं से आरएसएस को सीधे कटघरे में खड़ा नहीं किया गांधीजी की हत्या को लेकर. जब नेहरू आरएसएस को पूरी तरह ख़त्म करना चाहते थे, तब सरदार पटेल ने कहा था: "इनके गुनाह कम नहीं हैं पर गांधीजी की हत्या वाले में ये लोग दोषी नहीं हैं. इनके कुछ काम सही, कुछ गलत हैं. मैं इनको रास्ते पर लाऊंगा." पर इतना कह देने से बात ख़त्म हो जाती तो फिर वो बात कैसी.
2014 के चुनाव प्रचार में राहुल गांधी ने ठाणे के अपने भाषण में कहा: RSS के लोगों ने गांधीजी को मारा था. और आज BJP गांधी की बात कर रही है.
RAHUL

इस बात पर राहुल गांधी के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. कहा गया कि एक आदमी के अपराध के लिए पूरे संगठन को क्यों बदनाम किया जा रहा है? आरएसएस बना ही था 1925 में. नाथूराम तो 1930 के आस-पास ही आरएसएस छोड़ चुका था. तो फिर बीस साल बाद की घटना के लिए संघ कैसे जिम्मेदार हुआ?
सुनवाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची. माननीय कोर्ट ने 19 जुलाई को कहा: 'राहुल, या तो आप अपने बयान के लिए माफी मांगिये या फिर डिफेमेशन ट्रायल के लिए तैयार रहिये'.
राहुल गांधी के काउंसल ने कहा: ये हिस्टोरिकल फैक्ट है. सभी कहते हैं.
कोर्ट ने कहा: ये हिस्टोरिकल फैक्ट हो सकता है, पर इससे पब्लिक को क्या फायदा है? फ्री स्पीच स्वीकार है पर ये हिस्टोरिकल फैक्ट गलत है. ये हेट स्पीच के दायरे में आता है.

आरएसएस की बाइबिल कुछ और ही कहती है!

कांग्रेस इस बात को लेकर आरएसएस को हमेशा कटघरे में खड़ा करती रही है. कांग्रेस में मंत्री रहे अर्जुन सिंह ने कहा था: आरएसएस की एकमात्र उपलब्धि गांधीजी की हत्या है. इस बात के सपोर्ट में गांधीजी के अनुयायी प्यारेलाल की किताब Mahatma Gandhi: The Last Phase में दो घटनाओं का भी जिक्र होता है: 'उस दिन आरएसएस के सदस्यों को रेडियो ऑन रखने को कहा गया था. क्योंकि 'अच्छी खबर' आने वाली थी. गांधीजी की हत्या के बाद आरएसएस के सदस्यों ने मिठाइयाँ भी बांटीं थीं.'
 
Volunteers of RSS take part in a drill during a training camp in Bhopal

बीजेपी हमेशा अपना बचाव करती है: आरएसएस का गांधीजी से कुछ मुद्दों पर मतभेद था पर संघ ने हमेशा गांधीजी को बहुत ऊंचे स्थान पर रखा है.
पर आरएसएस की बाइबिल, गोलवलकर की लिखी Bunch Of Thoughts में गांधी और उनके नेतृत्व की कांग्रेस दोनों के प्रति जहर उगला गया है. उसमें हिन्दुओं की 1200 सालों की गुलामी का जिक्र है. इसके साथ ही गांधी की अहिंसा को नपुंसकता बताया गया है.
1961 में दीन दयाल उपाध्याय ने कहा था: गांधीजी की इज्जत करते हैं पर अब उनको राष्ट्रपिता कहना बंद कर देना चाहिए.
लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है : 1933 में नाथूराम गोडसे ने आरएसएस से नाता तोड़ लिया था. और आरएसएस के खिलाफ हो गया था.
पर 1993 में गोडसे के भाई गोपाल की किताब आई थी. उसमें लिखा था: 'हम दोनों भाई आरएसएस के एक्टिव मेम्बर रहे थे. हमेशा. मैं, नाथूराम, दत्तात्रेय, गोविन्द सब. मतलब इतना कि घर के बजाय हम लोग आरएसएस में ही बड़े हुए. वो हमारा परिवार था. नाथूराम आरएसएस का 'बौद्धिक कार्यवाह' था. गांधी की हत्या के बाद गोलवलकर और आरएसएस एकदम परेशानी में थे. इसीलिए नाथूराम ने कभी कुछ नहीं बताया. पर हमने आरएसएस छोड़ा नहीं था. हां, आप ये कह सकते हैं कि आरएसएस ने ये ऑर्डर नहीं निकला था कि जाओ गांधी को मार दो. पर हम संघ से बाहर नहीं थे.'

ये क्लियर है कि आरएसएस हत्या में नहीं था पर आइडियोलॉजी कटघरे में थी

लोग कहते हैं कि आरएसएस के इसी डर ने जनसंघ को जन्म दिया. सावरकर के शिष्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने गांधी की हत्या के बाद अपने ख़त्म होते जनाधार को बचाने के लिए नई पार्टी बनाई.
ये बात बिल्कुल क्लियर है कि नाथूराम गोडसे गांधीजी की हत्या में आरएसएस का आदमी बन के नहीं गया था. पर आइडियोलॉजी से वो आरएसएस का आदमी रह चुका था. इसमें भी संदेह नहीं है.
इसके अलावा विनायक सावरकर ने ही सबसे पहले 'हिंदुत्व' शब्द गढ़ा था. जो बाद में जनसंघ और फिर बीजेपी की आइडियोलॉजी बन गई. हिंदुत्व ने बहुत आसानी से इस्लाम और क्रिश्चियनिटी को बाहरी बना दिया. बिना ये सोचे कि बाकी धर्मों को मानने वाले भी कई शताब्दियों से इंडिया में रह रहे थे.
अब सवाल ये नहीं है कि गांधीजी की हत्या में कौन शामिल था. उसका फैसला तो कोर्ट और कमीशन ने कर ही दिया है. 2015 में एक याचिका दाखिल की गई थी कि गांधीजी की हत्या की फिर से जांच हो. कोर्ट ने इसे नकार दिया था. अब सवाल ये उठता है कि क्या आइडियोलॉजी पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता? कल को राहुल गांधी भी बीजेपी पर डिफेमेशन केस फाइल कर सकते हैं. क्योंकि बीजेपी भी कहती रही है कि कांग्रेस ने 70 सालों में कुछ नहीं किया है, सिर्फ देश को लूटा है. ये सही है कि गांधीजी की हत्या एक ऐसा मुद्दा है जिससे कोई खुद को किसी तरह से नहीं जोड़ना चाहेगा. दुनिया में भारत को अभी भी गांधी के देश से ही जाना जाता है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने हर विदेश दौरे में गांधीजी का ही नाम लिया है. तो आरएसएस की चिढ़ बिल्कुल जायज है. पर ये चिढ़ सिर्फ दूसरे के वक्तव्यों पर ही नहीं होनी चाहिए. क्योंकि अगर देश में अभी भी दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति जहर उगला जाता है तो ये गांधी की बार-बार हत्या हो रही है. चाहे जो कर रहा हो.

Advertisement