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साढ़े 7 महीने का गर्भ गिराना चाहती थी नाबालिग रेप पीड़िता, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहकर अनुमति दी?

CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि नाबालिग के लिए हर घंटा महत्वपूर्ण है. उन्होंने ये भी कहा कि कोर्ट की प्रक्रिया के कारण अबॉर्शन में देरी नहीं होनी चाहिए.

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Abortion in India
रेप पीड़िता की उम्र सिर्फ 14 साल है. (सांकेतिक तस्वीर)
22 अप्रैल 2024 (Updated: 22 अप्रैल 2024, 18:13 IST)
Updated: 22 अप्रैल 2024 18:13 IST
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सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को एक नाबालिग रेप पीड़िता को 30 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के बाद गर्भपात कराने की इजाजत दी है. रेप पीड़िता की उम्र सिर्फ 14 साल है. कोर्ट ने ये फैसला अनुच्छेद-142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सुनाया है. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत शादीशुदा महिलाओं के लिए अबॉर्शन की ऊपरी सीमा 24 हफ्ते है. यही कानून विशेष परिस्थितियों में विकलांग, नाबालिग, मानसिक रूप से बीमार, रेप पीड़ित महिलाओं को 24 हफ्तों के भीतर गर्भपात कराने की अनुमति देता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के ये फैसला अहम माना जा रहा है.

'मानसिक स्वास्थ्य को पहुंचेगा नुकसान'

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने मुंबई के सायन अस्पताल को नाबालिग के अबॉर्शन के लिए एक टीम बनाने का आदेश दिया है. इसके साथ ही बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को भी रद्द कर दिया. CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि यह बहुत ही असाधारण मामला है. उन्होंने कहा कि अगर नाबालिग की प्रेग्नेंसी बनी रहती है तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच सकता है.

इससे पहले 19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग की मेडिकल जांच कराने का आदेश दिया था. कोर्ट ने अस्पताल को मेडिकल टीम गठित करने को कहा था. कहा गया था कि नाबालिग के इमोशनल और फिजिकल हेल्थ की जांच की जाए. मेडिकल टीम ने 20 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट जमा की थी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, नाबालिग की मां ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 4 अप्रैल के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली थी. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल जांच रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहते हुए कहा, 

"अबॉर्शन करना कुछ हद तक जोखिम भरा है, लेकिन मेडिकल बोर्ड का कहना है कि प्रेग्नेंसी को बनाए रखना ज्यादा खतरनाक है."

CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि नाबालिग के लिए हर घंटा महत्वपूर्ण है. उन्होंने ये भी बताया कि कोर्ट की प्रक्रिया के कारण अबॉर्शन में देरी नहीं होनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- अविवाहित महिलाओं को अबॉर्शन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने अब क्या कहा?

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, रेप पीड़िता की मां ने बताया कि उनकी बेटी पिछले साल लापता हो गई थी. तीन महीने बाद जब वो राजस्थान में मिली तो पता चला कि उसके साथ एक व्यक्ति ने रेप किया. इसके बाद उस व्यक्ति के खिलाफ IPC की धारा-376 (रेप) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) कानून के तहत केस दर्ज किया गया.

सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को भी आदेश दिया कि वो नाबालिग के अबॉर्शन का पूरा खर्चा उठाए. अबॉर्शन के बाद भी इलाज के दौरान जो खर्च आएगा, वो राज्य सरकार ही उठाएगी.

 

वीडियो: सेहत: प्रेग्नेंसी में हर महिला को कौन से 5 टेस्ट ज़रूर करवाने चाहिए?

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