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आखिर क्यों गिराया गया Noida Twin Tower?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अवैध टावर्स का निर्माण नोएडा प्राधिकारण के अधिकारियों और रियल एस्टेट कंपनी के बीच सांठ-गांठ से किया गया.

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Noida Twin Tower demolition
विस्फोट के दौरान सुपरटेक टावर की तस्वीर.(फोटो- इंडिया टुडे)
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साकेत आनंद
28 अगस्त 2022 (Updated: 28 अगस्त 2022, 03:54 PM IST) कॉमेंट्स
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नोएडा में मौजूद सुपरटेक के 'ट्विन टावर' (Twin Tower) को ढहा दिया गया. बिल्डिंग नोएडा के सेक्टर-93 में स्थित थी जिसमें करीब 850 फ्लैट थे. सालों की मेहनत और करोड़ों खर्च से बनी इमारत, धमाकों के बाद महज कुछ सेकंडों में ढहा दी गई. आखिर क्या वजह है कि कुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊंचाई की इन दोनों बिल्डिंग को गिराना पड़ा. दोनों बिल्डिंग की हाइट करीब 100 मीटर थी.

ट्विन टावर की पूरी कहानी

2000 के दशक की शुरुआत में रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक लिमिटेड ने एक हाउसिंग प्रोजेक्ट शुरू किया. नाम दिया गया 'एमराल्ड कोर्ट'. 23 नवंबर 2004 को नोएडा प्राधिकरण ने इस प्रोजेक्ट के लिए सुपरटेक को जमीन आवंटित की. नोएडा प्राधिकरण की मंजूरी के तहत शुरुआत में बिल्डर को 9 मंजिल के 14 टावर बनाने थे. मार्च 2005 में इसकी लीज़ फाइनल हुई. बाद में योजना में बदलाव करके कंपनी ने 11 मंजिल के 15 टावर्स बना लिए.

फिर साल 2009 में प्रोजेक्ट को बड़े स्तर पर रिवाइज किया गया. मंजूरी के वक्त प्रोजेक्ट में जहां पार्क एरिया दिखाया गया था वहीं पर इस ट्विन टावर को बनाने का फैसला लिया गया. इसके बावजूद नोएडा प्राधिकरण ने नई योजना को मंजूरी दे दी. यही नहीं, बिल्डिंग को 40 मंजिल तक बढ़ाने की योजना बनी. जिन बिल्डिंग को ढहाया जा रहा है उनके नाम हैं- एपेक्स (32 फ्लोर) और सियान (29 फ्लोर). 

इसके बाद निर्माण में अनियमितता बरते जाने की बात सामने आई. जांच हुई तो पता चला कि दोनों टावर्स का कंस्ट्रक्शन मानकों के मुताबिक नहीं था. नेशनल बिल्डिंग कोड (NBC) के मुताबिक रेसिडेंशियल सोसायटी में दो टावर्स के बीच कम से कम 16 मीटर की दूरी होनी चाहिए. लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टावर नंबर-1 और टावर नंबर-17 (एपेक्स) के बीच 9 मीटर से भी कम गैप है. यह एनबीसी के मानकों का उल्लंघन था.

अवैध बिल्डिंग गिराओ- हाई कोर्ट

साल 2012 में रेसिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी. लंबी सुनवाई के बाद 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों टावर्स को गिराने का आदेश दे दिया. लेकिन जब तक यह आदेश आया तब कई फ्लैट बुक हो चुके थे. हाई कोर्ट ने सुपरटेक को फ्लैट बायर्स को 14 फीसदी ब्याज के साथ पैसे लौटाने का भी आदेश दिया. हाई कोर्ट के इस ऑर्डर को नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया. बाद में और जांच हुईं तो सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत की बात सामने आई. जिनपर कार्रवाई भी हुई. सोसायटी बनाने के लिए ग्रीन बेल्ट की जमीन पर अवैध कब्जे का खुलासा भी हुआ.

इसके बाद पिछले साल 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. और ट्विन टावर्स को गिराने का अंतिम आदेश जारी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि दोनों टावर्स को बिल्डिंग रेग्यूलेशन और फायर सेफ्टी नियमों को ध्यान में रखे बिना बनाया गया. कोर्ट ने कहा था कि दोनों टावर्स गिराए जाएंगे, फ्लैट मालिकों को उनका पैसा वापस दिया जाएगा और सुपरटेक कंपनी टावर्स के गिराने में आने वाला खर्च खुद उठाएगी.

कोर्ट ने कहा कि पार्क एरिया को हटाकर जिन ट्विन टावर्स को बनाया गया, वो फ्लैट मालिकों की सहमति के बिना किया गया. ये उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट एक्ट 2010 का भी उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि अवैध टावर्स का निर्माण नोएडा प्राधिकारण के अधिकारियों और रियल एस्टेट कंपनी के बीच सांठ-गांठ से किया गया.

अधिकारियों पर केस दर्ज

ट्विन टावर्स के निर्माण के लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) जारी करने के आरोप में नोएडा फायर डिपार्टमेंट के तीन पूर्व अधिकारियों के खिलाफ केस भी दर्ज किया गया है. तीन सदस्यों की एक टीम ने जांच की और यूपी सरकार को रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट के आधार पर ही तीनों अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई.

2012 में जब ये केस इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा तो ट्विन टावर सिर्फ 13 मंजिल तक बनी थीं. उधर कोर्ट की लड़ाई चल रही थी, इधर डेढ़ साल के भीतर ही इसे मौजूदा स्थिति तक पहुंचा दिया गया. अगर कोर्ट का आदेश नहीं आता तो इसे 40 मंजिल तक पहुंचा दिया जाता.

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