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पैसे की किल्लत झेल रहे श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने कहा- "सिर्फ भारत हमारी मदद कर रहा है"

धरना दे रहे लोगों से पीएम ने कहा - "फिर हमसे भारत से कुछ मांगने के लिए न कहें"

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Sri Lankan Prime Minister Ranil Wickremesinghe
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)
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धीरज मिश्रा
9 जून 2022 (Updated: 9 जून 2022, 01:31 PM IST) कॉमेंट्स
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श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने बीते बुधवार, 8 जून को कहा कि भारत को छोड़कर कोई भी देश उन्हें ईंधन खरीदने के लिए पैसे नहीं दे रहा है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि भारत से कर्ज लेने की जो सीमा निर्धारित की गई थी, अब वो पूरी होने वाली हैं. श्रीलंका द्वारा इसे बढ़ाने की मांग की जा रही है.

8 जून को संसद को संबोधित करते हुए विक्रमसिंघे ने बताया कि उन्होंने IMF प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा से गुजारिश की है उनके देश को जल्द से जल्द राहत सामग्री मुहैया कराई जाए. आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को अगले छह महीनों के लिए 6 बिलियन डॉलर (46 हजार करोड़ रुपये) की जरूरत है. इस समस्या से उबरने के लिए श्रीलंका ने IMF से मदद मांगी है.

उन्होंने कहा, 

'मैंने उनसे इस प्रक्रिया में तेजी लाने का अनुरोध किया क्योंकि हमें फाइनेंस की जरूरत है. उनसे कर्ज और इस पर आगामी योजना को लेकर चर्चा की गई है.'

श्रीलंका में बिजली जा सकती है!

इस बीच श्रीलंका की सिलोन बिजली बोर्ड (CEB) के इंजीनियर्स ने प्रदर्शन करने की घोषणा की है. इस पर प्रधानमंत्री ने कहा, 'कृपया बिजली न काटें, आप तख्ती लेकर धरना दे सकते हैं.'

उन्होंने आगे कहा, 

'अगर आप ऐसा करते हैं तो फिर भारत से मदद मांगने के लिए मुझसे कुछ न कहें. कोई भी देश ईंधन और कोयला खरीदने के लिए हमें पैसे नहीं दे रहा है. सिर्फ भारत इसमें मदद कर रहा है. भारत से कर्ज लेने की जो सीमा निर्धारित की गई थी, अब वो पूरी होने वाली हैं. हम इसे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.'

इसके साथ ही रानिल विक्रमसिंघे ने यह भी कहा कि भारत हमेशा के लिए मदद नहीं कर सकता है. उन्होंने कहा, 

'भारत में कुछ लोग ये सवाल खड़े करते हैं कि उन्हें हमारी मदद क्यों करनी चाहिए. वे हमसे कहते हैं कि उनकी मदद से पहले हमें अपनी मदद करनी चाहिए.'

सिलोन बिजली बोर्ड के इंजीनियर्स ने बीते बुधवार, 8 जून को अनिश्चितकाल के लिए हड़ताल करने का ऐलान किया था. वे सिलोन बिजली कानून में संशोधन करने का विरोध कर रहे हैं.

इस हड़ताल की घोषणा को लेकर पूरी श्रीलंका प्रशासन चिंता में है. इसके कारण पूरे देश में बिजली जा सकती है, जो पहले से भयावह आर्थिक संकट से गुजर रहा है.

हड़ताल क्यों?

सीईबी इंजीनियरों की यूनियन का कहना है कि नया कानून निजी स्रोतों से बिजली की खरीद में प्रतिस्पर्धी बोली को रोक देगा. सीईबी इंजीनियर्स यूनियन के रंजीत इंदुवारा ने कहा, ‘हम इस संशोधन को रोकने के लिए औद्योगिक कार्रवाई का सहारा लेंगे.’

ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकारा ने संसद को बताया कि नया कानूनी प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया को खत्म नहीं करेगा, बल्कि यह टिकाऊ ऊर्जा परियोजनाओं पर फोकस करेगा.

भारत ने संकटग्रस्त श्रीलंका को भोजन और चिकित्सा आपूर्ति के अलावा हजारों टन डीजल और पेट्रोल की मदद की है. इस बीच पड़ोसी देश ने यूरिया की खरीद के लिए भारत से 55 मिलियन डॉलर (करीब 428 करोड़ रुपये) कर्ज की मांग की है.

वैसे भारत पहले ही अलग-अलग माध्यमों (खाद्यान्न, ईंधन, दवाईयां इत्यादि) से श्रीलंका को 3.5 बिलियन डॉलर (27 हजार करोड़ रुपये) की आर्थिक मदद मुहैया कराई है.

मालूम हो कि श्रीलंका इस समय दीवालिया होने की कगार पर है और वह मूलभूत चीजों जैसे कि खाद्यान्न, दवाईयां, ईंधन, गैस इत्यादि की भारी कमी से जूझ रहा है.

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