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मौर्य के भाजपाई होने की इनसाइड स्टोरी: 6 बातें

जानिए, बसपा छोड़ने के बाद से क्या तिकड़म फिट कर रहे थे मौर्य जी. और कैसे अमित शाह ने उन्हें मजबूर करके अपना बना लिया.

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कुलदीप
8 अगस्त 2016 (Updated: 8 अगस्त 2016, 08:16 AM IST) कॉमेंट्स
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काफी दिनों की अटकल-हलचल के बाद मामला तय. मायावती के पूर्व सिपहसालार स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपाई हो गए. दिल्ली में अमित शाह की मौजूदगी में उन्हें गुलाब की माला और पार्टी का पटका पहनाकर भाजपाई बनाया गया. 22 जून को मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाकर उन्होंने बसपा छोड़ दी थी. मायावती को 'दौलत की बेटी' बताया था. वैसे नेताओं के पार्टी बदलने पर उनके पुराने बयान प्रासंगिक हो जाते हैं. गूगल पर खोजिएगा कि 'गौरी-गणेश' विरोधी स्वामी प्रसाद मौर्य नरेंद्र मोदी पर किस भाषा में बात करते थे. खैर, बीती बातें हैं. बीजेपी ने भुला ही होंगी. https://twitter.com/ANI_news/status/762560035448885248

इसके क्या मायने हैं?

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मौर्या को बीजेपी में लाए हैं, नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र राजस्थान के नेता ओम माथुर. ओम माथुर ने बीते डेढ़ महीने में दो बार मौर्या को अमित शाह से मिलवाया. 11 अशोक रोड के छज्जों पर अकसर बैठने वाले पक्षियों ने बताया कि केशव प्रसाद मौर्य की 'लाख अनिच्छाओं' के बावजूद ओम माथुर इस काम को कर ले गए.

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केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी नाराजगी दिल्ली तक पहुंचा दी है. लेकिन ओम माथुर आलाकमान को ये कनविंस कर ले गए हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य की ओबीसी वोटरों पर पकड़ बेहतर है. वैसे भी केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर कितने ओबीसी वोट मिलेंगे, इसे लेकर बीजेपी श्योर नहीं है.

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मौर्य जिस जाति से ताल्लुक रखते हैं वो यादव और कुर्मियों के बाद यूपी का तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह है. ये गैरयादव ओबीसी पूरे प्रदेश में पसरे हुए हैं और काछी, मौर्य, कुशवाहा, सैनी और शाक्य के उपनामों से जाने जाते हैं. बसपा स्वामी प्रसाद के जरिये इन्हीं लोगों को आकर्षित करती थी, यही काम अब बीजेपी करना चाहती है.

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पुराने लखनऊ के शातिर पक्षियों ने बताया कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने जब दिल्ली की उड़ान ली तो उनके साथ दो-चार 'बसपा बागी' और थे. इन बागियों को वे जितनी संख्या में साथ ला सकेंगे, बीजेपी की बांछें उतनी ही खिलेंगी.

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वैसे बीजेपी में आना स्वामी प्रसाद मौर्य का प्लान-बी था. उनका प्लान था, अपनी पार्टी बनाएंगे और बीजेपी से गठबंधन करके चुनाव लड़ेंगे. लेकिन अमित शाह और ओम माथुर इसके लिए तैयार नहीं हुए. इसके बाद स्वामी प्रसाद ने कांग्रेस और सपा को फोन लगाया, लेकिन बात नहीं बनी. फिर उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा की RLSP (राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी) के साथ चुनाव में जाने का मन बनाया, लेकिन बीजेपी के दबाव में कुशवाहा जी ने हाथ खींच लिया. स्वामी प्रसाद के पास एक ही चारा बचा था. वह भगवा धारण करने को तैयार हो गए.

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बीजेपी ने बढ़िया दांव-पेच से यूपी में एक बड़ा कैच पकड़ा है. लेकिन बिहार की बुरी यादें पीछा नहीं छोड़तीं. जीतन राम मांझी की एंट्री से भी बीजेपी खेमा बड़ा उत्साह में था, लेकिन उसका फायदा कम, नुकसान ज्यादा हुआ. कैच तो पकड़ लिया है. पर यूपी का मैच जीतना इतना सरल नहीं.

गौरी-गणेश का बहिष्कार कर चुके हैं मौर्य

सितंबर 2014 की बात है. मायावती अपने खास सिपहसालार स्वामी प्रसाद मौर्य के एक बयान से असहज हो गई थीं. लखनऊ की एक सभा में वह कह गए थे कि शादियों में गौरी-गणेश की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह दलित-पिछड़ों को गुमराह कर उन्हें मनुवादी सिस्टम का गुलाम बनाने की साजिश है. मौर्य ने कह तो दिया लेकिन समेटने में मायावती को पसीने छूट गए. वह खुद प्रेस के सामने आईं और कहा कि बीएसपी सब धर्मों की प्रतिनिधि है, ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ में यकीन रखती है. इसलिए मौर्य का कमेंट उनका पर्सनल है. पार्टी इससे सहमत नहीं है.’ मौर्य मामूली नेता नहीं थे. उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे. बीएसपी में उनकी हैसियत टॉप-थ्री की थी. लेकिन तब बीएसपी ‘इनको मारो जूते चार’ वाले दौर से आगे बढ़कर ‘हाथी नहीं गणेश है’ के नारे तक आ चुकी थी. बाभन-दलितों का साझा फॉर्मूला काम कर गया था. अंग्रेजी के विश्लेषकों ने इसे ‘सोशल इंजीनियरिंग’ कहकर स्टैटजी के स्तर पर ऊंचा दर्जा दे दियाथा. इसलिए मायावती स्वीकार्यता के मोह में थीं और उनके पास चारा नहीं था. उन्हें पार्टी के हार्डकोर अंबेडकरवादियों को उनके प्रकट ‘हिंदू विरोध’ से रोके रखना था. बीएसपी में माया ही सुप्रीमो रहीं. उनके बाद किसी की बात मायने नहीं रखतीं. लेकिन अब मौर्य चुनाव से ठीक पहले हाथी से उतर चुके हैं, इसलिए जाते-जाते वह माया को ‘दौलत की बेटी’ भी बता गए. उसके बाद वही बोला, जो हर पार्टी छोड़ने वाला पिछले 15 साल से बोल रहा है. बहन जी टिकट बेचती हैं. बहन जी कांशीराम औऱ आंबेडकर के रास्ते से भटक गई हैं. वे दलित नहीं, दौलत की बेटी हैं.

इस्तीफा क्यों दिया था?

मौर्य की विधानसभा सीट बदल दी गई थी. पिछले चुनाव में वह कुशीनगर की पडरौना सीट से जीते थे. इस बार उन्हें रायबरेली की ऊंचाहार सीट से लड़ने को कहा गया. ऊंचाहार से पिछले चुनाव में मौर्य के बेटे उत्कृष्ट चुनाव लड़े थे और सपा कैंडिडेट मनोज कुमार पांडेय से हार गए थे. ऐसा नहीं है कि सिर्फ मौर्य की सीट ही बदली गई है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर को भी ऐसा ही आदेश मिला. उनके बेटे संजय राजभर अंबेडकर नगर की अकबरपुर सीट से टिकट मांग रहे थे. मगर मैडम ने कहा कि नहीं, खुद रामअचल वहां से चुनाव लड़ें. स्वामी प्रसाद के परिवार की बात करें तो उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते बेटी संघमित्रा एटा की अलीगंज सीट से चुनाव लड़ी थीं. इसके बाद बुआ मायावती की गुड बुक में बने रहने के लिए मुलायम के खिलाफ मैनपुरी लोकसभा सीट से शहीद होने को भी तैयार हो गई थीं. इस दौरान उन्होंने एक रैली में ये भी कह दिया था कि चुनाव बाद मुलायम सिंह यादव को फिर से भैंस चराने लायक बना दूंगी. इसे लेकर बाप-बेटी पर मामला भी दर्ज हुआ था.

करियर-शरियर कैसा रहा

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मौर्य चार बार से विधायक हैं. संगठन का काम देखते रहे हैं. मायावती सरकार में मंत्री भी रहे थे. सन 80 में राजनीति में आए. 1996 में जब बीएसपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, तब मौर्य पहली बार विधायक बने. एक साल बाद ही लाल बत्ती मिल गई. क्योंकि बीजेपी और बीएसपी की छह छह महीने मुख्यमंत्री वाली सरकार बन गई.

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2001 में मायावती ने उन्हें विधानसभा में बीएसपी विधायक दल का नेता बनाया. 2003 में बीजेपी के सपोर्ट से मायावती फिर मुख्यमंत्री बनीं और मौर्य फिर मंत्री. और 2007 में जब मायावती अपने दम पर बहुजन के नारे पर सवार हो पूर्ण बहुमत से लौटीं तो मौर्य फिर मंत्री बने. मगर दो साल बाद ही उन्हें संगठन में काम करने को कह दिया गया. इस दौरान वह विधान परिषद के रास्ते सदन में पहुंचे.

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2011 में बाबू सिंह कुशवाहा के बर्खास्त होने के बाद एसपी मौर्य बसपा में ओबीसी का अघोषित चेहरा बन गए थे. गैरयादव ओबीसी को बसपा अपना वोटर मानती है, हालांकि बाद के दौर में उसका प्रभाव इन जातियों पर कम हुआ है. हाल ही में बसपा से 8 विधायक अलग हुए या निकाले गए. इनमें से 4 गैरयादव ओबीसी समाज से ही हैं.

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पैदाइश प्रतापगढ़ की है. पढ़ाई इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से की. वहीं एलएलबी की पढ़ाई की. फिर कांशीराम के मिशन के संपर्क में आए. और शुरुआती दौर में ही मायावती के विश्वासपात्र बन गए. पूर्वांचल में बीएसपी के प्रदर्शन का श्रेय बीते सालों में उन्हीं को दिया गया है.

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स्वामी प्रसाद मौर्य 'बुद्धिज्म' को फॉलो करते हैं. वह अंबेडकरवाद और कांशीराम के सिद्धांतों को मानने वाले नेताओं मे रहे हैं.

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