तीन गुना बढ़ गया धरती पर मौजूद ‘नर्क का द्वार’, वैज्ञानिकों ने दी डराने वाली चेतावनी!
बाटागे क्रेटर असल में गड्ढा नहीं है बल्कि यह पर्माफ्रॉस्ट का एक हिस्सा है, जो तेजी से पिघल रहा है. अब यह 200 एकड़ में फैल गया है और 300 फीट गहरा हो चुका है.
साइबेरिया के बेहद ठंडे और मुश्किल वातावरण में जमीन में एक विशालकाय गड्ढा है. इसे द बाटागे क्रेटर (The Batagay Crater) के नाम से जाना जाता है. इसे बाटागाइका भी कहा जाता है. स्थानीय लोग इसे ‘गेटवे टू हेल’ यानी नर्क का द्वार भी कहते हैं. यह क्रेटर पर्माफ्रॉस्ट इलाके में मौजूद है. पर्माफ्रॉस्ट स्थायी रूप से जमे हुए भूमि-क्षेत्र होते हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से बर्फ पिघलने लगी. जिसके बाद पहली बार इस क्रेटर की तस्वीर सामने आई. लेकिन ये क्रेटर हमेशा से इतना विशालकाय नहीं था. वैज्ञानिकों के मुताबिक 30 सालों में ये गड्ढा तीन गुना बढ़ गया है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, बाटागे क्रेटर असल में गड्ढा नहीं है बल्कि यह पर्माफ्रॉस्ट का एक हिस्सा है, जो तेजी से पिघल रहा है. इसे रेट्रोग्रेसिव थॉ स्लंप कहते हैं. हालांकि, इसके बढ़ते आकार ने वैज्ञानिकों को सकते में डाल दिया है. अब यह 200 एकड़ में फैल गया है और 300 फीट गहरा हो चुका है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण ये क्रेटर अनुमान से अधिक तेजी से बढ़ रहा है. बर्फ के पिघलने के बाद पानी के बहाव के कारण इसका आकर बढ़ता जा रहा है. ये इतना बड़ा हो चुका है कि अब अंतरिक्ष से भी नजर आने लगा है. जबकि, शुरुआत में ये मात्र एक टुकड़े के रूप में दिखाई देता था. जो 1960 के दशक की सैटेलाइट इमेजरी में बमुश्किल दिखाई देता था. इसमें बढ़ोतरी की वजह से आसपास के इलाके की जमीन भी कम होती जा रही है. साथ ही भूस्खलन का खतरा भी बढ़ रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, बाटागे क्रेटर पृथ्वी पर दूसरा सबसे पुराना पर्माफ्रॉस्ट है. लगातार फैलाव की वजह से आसपास की जमीन धंसती जा रही है. जिससे इस क्रेटर के अंदर पहाड़ियां और घाटियां बनती जा रही हैं. वैज्ञानिक इसके बारे में सब कुछ जानने के लिए इसका अध्ययन कर रहे हैं.
रिपोर्ट में वाशिंगटन विश्वविद्यालय के जिओफिजिसिस्ट रोजर माइकलाइड्स से बताया गया,
" हम बाटागाइका से बहुत कुछ सीख सकते हैं. न केवल यह कि समय के साथ बाटागाइका कैसे विकसित होगा. बल्कि यह भी कि आर्कटिक पर इसी तरह की अन्य भौगोलिक संरचनाएं कैसे विकसित हो सकती हैं.”
इस साल की शुरुआत में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि यह क्रेटर गहरा हो रहा है. क्योंकि पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना लगभग नीचे स्थित बेडरॉक चट्टान तक पहुंच गया है. ग्लेशियोलॉजिस्ट अलेक्जेंडर किज़्याकोव ने इस अध्ययन में बताया कि इसका स्लंप प्रति वर्ष लगभग 1 मिलियन क्यूबिक मीटर की दर से बढ़ रहा है.
शोधकर्ताओं ने यह भी नोट किया है कि तेजी से फैल रहे इस क्रेटर से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ा सकता है. क्योंकि पर्माफ्रॉस्ट में मरे पौधे, जानवर होते हैं. ये सदियों से जमे हुए होते हैं. लेकिन, जलवायु परिवर्तन की वजह पर्माफ्रॉस्ट में जमे हुए पोषक तत्व पिघलकर वायुमंडल में जा कर मिल जाते हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 4,000 से 5,000 टन आर्गेनिक कार्बन पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वातावरण में उत्सर्जित हो रहा है. इसका दर हर साल बढ़ने की संभावना है.
अब, चूंकि परमफ्रॉस्ट अभी भी पिघल रहा है ऐसे में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह आस-पास की अधिकांश भूमि को अपनी चपेट में ले सकता है और यह इलाके में मौजूद गांवों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. साथ ही इसके विस्तार से पास में स्थित बटागे नदी के लिए समस्याएं पैदा होंगी. क्योकि इससे नदी के तट पर कटाव बढ़ेगा.
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