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राजस्थान में धर्मांतरण विरोधी बिल पेश, केंद्र और बाकी राज्यों में इस कानून का क्या हाल है?

देश की आज़ादी के बाद, भारत में संसद ने कई बार धर्मांतरण को रोकने के लिए विधेयक पेश किए, लेकिन वे पारित नहीं हो सके. एक-एक करके देखते हैं केंद्र की तरफ से इस दिशा में कब-कब कोशिशें की गईं.

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Anti conversion law
सांकेतिक तस्वीर. (Aaj Tak)
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सौरभ
3 फ़रवरी 2025 (Published: 08:37 PM IST) कॉमेंट्स
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राजस्थान विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश कर दिया गया है. मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की ओर से पेश किए गए इस विधेयक में धर्मांतरण पर कठोर सजा का प्रावधान हैं. नए कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर तीन से दस साल की सजा हो सकती है. अगर अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करना है, तो 60 दिन पहले कलेक्टर को इसकी सूचना देनी होगी.

बिल पास होने के बाद राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. वहां से मुहर लगने के बाद राजस्थान भी उन राज्यों में शामिल हो जाएगा जहां धर्मांतरण विरोधी कानून लागू है. हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से ऐसा कानून अब तक पास नहीं हो पाया. क्या है धर्मांतरण कानून पर केंद्र सरकार की राय और जिन राज्यों में यह कानून लागू है वहां क्या स्थिति है, इस पर एक नज़र डालते हैं.

धर्मांतरण विरोधी कानूनों का इतिहास

देश के संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है- ‘प्रत्येक नागरिक को अपने विवेक के अनुसार किसी भी धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता दी गई है.’ हालांकि, यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य जैसी शर्तों के अधीन है. देश की आज़ादी के बाद, भारत में संसद ने कई बार धर्मांतरण को रोकने के लिए विधेयक पेश किए, लेकिन वे पारित नहीं हो सके. एक-एक करके देखते हैं केंद्र की तरफ से इस दिशा में कब-कब कोशिशें की गईं.

- 1954 में भारतीय धर्मांतरण (नियमन और पंजीकरण) विधेयक लाया गया था, लेकिन यह संसद में बहुमत नहीं जुटा सका.
- 1960 में "पिछड़ा समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक" पेश किया गया, जिसका उद्देश्य हिंदुओं को गैर-भारतीय धर्मों (इस्लाम, ईसाई धर्म, यहूदी और पारसी धर्म) में धर्मांतरण से रोकना था.
- 1979 में धर्म की स्वतंत्रता विधेयक आया, जिसमें अंतर-धार्मिक धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया.

हालांकि, इन विधेयकों को संसद की मंजूरी नहीं मिली. इस पर केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 2015 में एक सुझाव भी दिया. मंत्रालय ने कहा दिया कि जबरन और धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कानून नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है.

राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानून

- सबसे पहले ये कानून ओडिशा में 1967 में लागू हुआ. यहां जबरन धर्मांतरण करने पर एक साल की सजा और 5000 रुपये का जुर्माना लगता है. 

- ओडिशा के बाद मध्य प्रदेश में 1968 में धर्मांतरण पर कानून बना. इसके बाद अरुणाचल प्रदेश में 1978 में ये कानून बना.

- छत्तीसगढ़ में साल 2000 में कानून लाया गया जिसे 2006 में संशोधित किया गया. इसके तहत जबरन धर्मांतरण कराने पर 10 साल की जेल हो सकती है और 20 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. 

- वहीं गुजरात में 2003 में धार्मिक स्वतंत्रता पर कानून बना. इस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे. गुजरात में जबरन धर्मांतरण पर 3 साल की सजा और धर्मांतरण के लिए शादी करने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है. 

- हिमाचल प्रदेश में 2006 में कानून बना जिसे 2019 में जयराम ठाकुर के कार्यकाल में संशोधित किया गया. यहां भी 10 साल का प्रावधान है और धर्मांतरण के लिए शादी करने पर शादी को अवैध करार दिया जाएगा.

- इसके बाद झारखंड में 2017 में धर्मांतरण विरोधी कानून बना. यहां जबरन धर्मांतरण करने पर तीन साल तक की जेल या 50,000 रुपये का जुर्माना. और अगर अपराध किसी नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति के साथ किया गया है, तो जेल की सज़ा चार साल का प्रावधान है. 

- उत्तराखंड में 2018 मे ऐसा कानून पास किया गया. इसके तहत 10 साल तक की सजा का प्रावधान है. उत्तराखंड और हिमाचल के कानून यह भी कहते हैं कि यदि कोई विवाह केवल धर्मांतरण के उद्देश्य से किया गया है, तो वह अमान्य होगा.

- तमिलनाडु में 2002 में ऐसा ही एक कानून लाया गया था, लेकिन 2006 में ईसाई समुदाय के विरोध के बाद इसे हटा दिया गया.

- उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी बिल 2021 में पारित हुआ जिसे 2024 में संशोधित किया गया. बाद में उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया गया, जिससे कानून को और सख्त बना दिया गया है. इसके तहत किसी महिला को धोखा देकर उससे शादी करने और अवैध रूप से उसका धर्म परिवर्तन करने के दोषी पाए जाने वालों के लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है.

- और राजस्थान में भी इस तरह का कानून पहली बार नहीं लाया गया है. इससे पहले 2006 और 2008 में भी ऐसा विधेयक पारित हुआ था. लेकिन इसे राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली.

मगर सबसे बड़ा सवाल है कि इन कानूनों को लागू करने के बाद क्या कार्रवाई की गई. क्योंकि कई राज्यों में इस मामले पर US कमीशन ऑन इंटरनेशल रिलीजियस फ्रीडम की रिपोर्ट कहती है,

- 2017 में मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में तीन ईसाइयों को धर्म परिवर्तन के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
- 2022 में बेंगलुरु में 24 वर्षीय व्यक्ति को कर्नाटक धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया.
- फरवरी 2023 में उत्तर प्रदेश के मुरादपुर कोटिला गांव में 16 लोगों को ईसाई धर्मांतरण कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
- मई 2023 में उत्तर प्रदेश में 18 लोगों को इस्लाम में धर्मांतरण के लिए पैसे देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

आंकड़ों की बात करें तो उत्तर प्रदेश के सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1 जनवरी 2021 से 30 अप्रैल 2023 के बीच धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत 427 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 833 लोगों की गिरफ्तारी हुई. विस्तृत डेटा की जानकारी उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में नहीं देखने को मिलती. कई राज्यों ने कानून तो बना दिया, लेकिन कानून के तहत केस कितने दर्ज हुए यह जहमत उठाने की कोशिश भी नहीं की.

वीडियो: हिंदू से इस्लाम में धर्मांतरण की ये कहानी सबको जाननी चाहिए

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