फारूकी को रेप के आरोप से बचाने में जुटे थे उनके 'ब्रो कोड' वाले दोस्त
पीपली लाइव और दास्तानगोई वाले महमूद फारूकी की और विक्टिम की एक कॉमन फ्रेंड ने पूरी कहानी बयान की है.
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'मैं जानती थी कि दास्तानगोई के फाउंडर और पीपली लाइव के को-डायरेक्टर महमूद फारूकी ने एक साल पहले एक अमेरिकी स्कॉलर का रेप किया था. लेकिन इस मामले में मैं पिछले एक साल से चुप रही. इस मामले में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट का ट्रायल पूरा हो चुका है. अब मैं इस बारे में बात करना चाहती हूं. वो सब बताना चाहती हूं, जो मैं इतने समय से जानती थी. सबसे पहली बात जो मैं बताना चाहती हूं. मैं रेप के आरोपी को भी जानती थी. और उस औरत को भी जिसका रेप हुआ था. मैं महमूद फारूकी को करीब 5-6 सालों से जानती हूं. मैं उनके दास्तानगोई की बहुत बड़ी प्रशंसक थी. मैंने उनसे एक म्यूजियम जर्नल के लिए दास्तानगोई पर एक लेख लिखने की रिक्वेस्ट की थी. जिसमें उनसे इस स्टोरी-टेलिंग के तरीके और उसकी सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानकारी चाही थी. वो एक बहुत ही इंटेलीजेंट आदमी हैं जिसमें क्रिएटिविटी कूट-कूट कर भरी है. उसके बाद मैं अक्सर उनके घर पर हर महीने होने वाले दास्तानगोई सेशन, बैठक में जाने लगी. वहां मैं उनके परिवार और दास्तानगोई की टीम से मिली. पिछले 9 सालों में मैंने दास्तानगोई और उसके स्टेज परफॉरमेंस को बहुत करीब से जाना है.मैं उस लड़की की भी दोस्त हूं, जिसका रेप हुआ है. वो एक अमेरिकन नागरिक है. हम दोनों पहली बार म्यूजियम के बारे में चर्चा करने के लिए मिले थे. रेप की घटना से कुछ महीने पहले. और उसके बाद हम दोनों दोस्त बन गए. और कई बार मिले. वो कई सालों से इंडिया आती रही है. उसे इंडिया से बहुत प्यार है. यहां की भाषा, यहां के शास्त्रों की उसको खूब जानकारी थी.रेप की घटना के दो दिन बाद उसने मुझे मेसेज किया. कहा कि वो मुझसे मिलना चाहती है. मैं अपने ऑफिस में थी. मैं कुछ समझ नहीं पाई. मुझे उस घटना के बारे में कुछ पता नहीं था. वो आई और उसने मुझे उस पूरी घटना के बारे में बताया. करीब दो घंटे तक वो बोलती रही. वो रो रही थी. उसके चेहरे पर गुस्सा था. नफरत थी. शॉक था. वो खुद महमूद फारूकी और उनकी पत्नी की दोस्त थी. वो गोरखपुर पर कोई रीसर्च कर रही थी. फारूकी गोरखपुर से थे. महमूद ने उस रीसर्च में उसकी मदद की थी. उस दिन वो मुझसे मिलने इसलिए नहीं आई थी क्योंकि मैं एक जर्नलिस्ट हूं. बल्कि इसलिए क्योंकि मैं उसकी दोस्त थी. जब वो मेरे सामने रेप की घटना बता रही थी. उसकी बातों में बहुत सारा शॉक और अविश्वास था. इस बात पर कि फारूकी ऐसा कैसे कर सकते हैं. उसने फारूकी को एक मेल लिखा, ये कहते हुए कि जो उन्होंने किया था, वो गलत था. और किसी औरत के साथ ऐसा करके वो अपनी ज़िन्दगी इतने आराम से बिता नहीं सकते. फारूकी ने उसके ईमेल का जवाब दिया था. जिसमें उन्होंने उससे एक छोटी सी माफ़ी मांगी थी. लेकिन इससे उसका गुस्सा और तकलीफ कम नहीं हुई. ये वो माफ़ी नहीं थी, जो वो चाहती थी.वो लड़की वापस अमेरिका चली गई. अपने लोगों के पास. अपने दोस्तों, अपने परिवार और अपनी यूनिवर्सिटी में. उसने यूनिवर्सिटी में शिकायत की. लीगल एक्शन के लिए भी कोशिश की. जब वो घर में अकेली रहती थी. उस पूरी घटना को प्रोसेस करने की कोशिश करती थी. उसने अपनी छोटी सी भतीजी को देखा और खुद से कहा, 'मैं हमेशा उससे खुद के लिए खड़ा होने को कहती हूं. अगर कोई उसको नुक्सान पहुंचाए, मैं उससे हमेशा लड़ने के लिए कहती हूं. अगर आज मैं चुप रह गई तो क्या मैं उससे ये सब फिर कह पाऊंगी?'उसने मुझसे कहा था, 'मैं ऐसी इंसान हूं जो अपने शरीर और अपनी सेक्सुएलिटी की मालिक हूं. लेकिन उस रात जो हुआ, उसने मुझसे मेरे शरीर पर से मेरा हक ही छीन लिया.'करीब दो महीनों बाद वो वापस इंडिया आई. यहां आकर उसने फारूकी के खिलाफ FIR दर्ज करवा दी. लोगों ने सवाल किए कि उसने FIR लिखवाने में इतनी देर क्यों कर दी. उसने कहा कि ये इतना आसान नहीं होता. जब आप हमलावर को जानते हों. अगर रेप करने वाला कोई कैब ड्राइवर हो, कोई अजनबी हो तो आप उसको घसीट कर थाने ले जा सकते हैं. लेकिन जब आप रेपिस्ट को जानते हैं, आप टूट जाते हैं. आप गुस्सा, नफरत, टूटे हुए विश्वास जैसी नेगेटिव फीलिंग से भर जाते हैं.इंडिया में जिस तरह से रेप विक्टिम के साथ बिहेव करते हैं, वो लड़की उससे डर गई थी. हमेशा विक्टिम को ही ब्लेम किया जाता है. ट्रायल के दौरान उसको वो सब फेस करना ही पड़ा. उसने अपनी मां को इंडिया आने से मना कर दिया था. क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि मां को फारूकी के दोस्तों और परिवार की तरफ से धमकियां ना मिलें. उनको कोई नुक्सान ना हो. वो कोर्ट में ट्रायल के दौरान अकेली ही जाती थी.रातों-रात फारूकी के दोस्त उस पर चढ़ गए. उसको धमकियां देने लगे. दोस्तों के ग्रुप में बंटवारा हो गया कि कौन किसकी तरफ है. ग्रुप के सारे आदमी महमूद की तरफ हो गए. क्योंकि उनको कोई ख़ास तरह का 'ब्रो-कोड' यानी दोस्ती का फ़र्ज़ निभाना था.उन्होंने उस लड़की की दोस्तों को भी फ़ोन किया और कहा कि वो अपना केस वापस ले ले. जब हम अखबारों में पढ़ते हैं कि गांव में खाप पंचायत ने कोई रेप केस वापस करवा दिया. हमको कितना गुस्सा आता है. हम उनको पिछड़ा हुआ कहते हैं. लेकिन जब शहर में हमारे दोस्त ऐसा करते हैं, वो 'ब्रो कोड' हो जाता है.'रेप-पीड़ित लड़की ने ट्रायल के नतीजों के बारे में कुछ नहीं सोचा था. उसको ऐसा कोई बदला नहीं चाहिए कि फारूकी को फलां सालों की सजा हो जाए. FIR दर्ज करवाने के पीछे उसका सिर्फ एक कारण था. वो एक कदम उठाना चाहती थी. वो चुप नहीं रहना चाहती थी. वो कानून और व्यवस्था में भरोसा करना चाहती थी. वो एक कदम आगे बढ़ना चाहती थी. केवल उन औरतों के लिए नहीं, जो अपने लिए खड़ी नहीं हो पातीं. बल्कि खुद को अन्दर से बेहतर महसूस करवाने के लिए. मैं महमूद फारूकी को मेरी अपनी पहचान छीनने नहीं दूंगी - उसने कहा था. इस पूरी बात में हम सब के लिए भी सबक है. हम सबको बहुत अच्छे से पता है कि सिस्टम कैसे काम करता है. हम पुलिस की जांच, कोर्ट के मुकदमों, पीड़ितों को ब्लेम करने की खूब बातें करते हैं. लेकिन अगर हम सिस्टम को इसी तरह से धक्के देते रहें. यकीन करें कि सिस्टम अपनी तरफ से पूरा काम कर रहा है. तो शायद धीरे-धीरे सिस्टम बदल जाए. उसके पास खामोश रहने की सुविधा नहीं थी. हमारे पास भविष्य की परेशानियों से लड़ना छोड़ देने की सुविधा नहीं है.क्या था मामला यहां पढ़ें:
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