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Nowruz 2023 : क्या है नवरोज? क्यों मनाते हैं? कौन मनाता है? गूगल ने डूडल भी बना दिया

अंडों को क्यों रंगते हैं इस दिन?

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Nowruz Persian New Year festival to welcome springs international holiday Iran
नवरोज त्योहार (फोटो- विकिमीडिया कॉमन्स/ट्विटर)
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ज्योति जोशी
21 मार्च 2023 (Updated: 21 मार्च 2023, 04:03 PM IST) कॉमेंट्स
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आज यानी 21 मार्च को दुनिया के कई हिस्सों में नवरोज त्योहार मनाया जा रहा है. इसे वसंत मौसम के स्वागत के तौर पर पिछले 3000 सालों से खूब धूमधाम के साथ मनाया जाता है (Nowruz Persian New Year Festival). लोग अलग-अलग तरह के पकवान बनाते हैं और परिवार के सदस्य साथ मिलकर मिलकर दावत मनाते हैं. एक और दिलचस्प एक्टिविटी होती है. अंडों को रंगने की. तरह के रंगों से सुंदर-सुंदर डिजाइन अंडो पर बनाए जाते हैं.

गूगल का डूडल
क्यों मनाते हैं?

नवरोज उत्तरी गोलार्ध में वसंत की शुरुआत का प्रतीक है यानी जब सूर्य आकाशीय भूमध्य रेखा को पार करता है जिसके बाद से पूरे साल रात और दिन बराबर होते हैं.

ये त्योहार वसंत मौसम की शुरुआत और सर्दियों के अंत को दर्शाता है. इसे ईरानी और फारसियों में नव वर्ष की शुरूआत मानते हैं. इस बार गूगल ने अपना डूडल इस त्योहार को डेडिकेट किया है. आज गूगल के लोगो को वसंत के फूलों- ट्यूलिप, जलकुंभी, डैफोडिल्‍स और ऑर्किड के साथ सजाया गया है.

कैसे मनाते हैं? 

जिस तरह भारत में दिवाली पर लोग घरों की साफ सफाई करते हैं शॉपिंग करते हैं वैसे ही इसमें भी होता है. लोग नया साल मनाने के लिए घर सजाते हैं, नए कपड़े और फूल खरीदते हैं. ईरान, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के अलग अलग हिस्सों में महिलाएं और लड़कियां समानु नाम का पकवान बनाती हैं. इसे पकाते समय यादगार गीत गाए जाते हैं. टेबल पर खाना सजाकर सभी साथ में खाते हैं. 

UN ने नवरोज को इंटरनेशनल हॉलिडे के रूप में मान्यता दी हुई है. दुनिया भर में लगभग 300 मिलियन लोग खुशियों वाले इस त्योहार कोे मनाते हैं. ये त्योहार ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 21 मार्च या उसके आस-पास आता है. नवरोज की जड़ें ईरान में हैं. कई इस्लामिक देशों में भी इसे मनाया जाता है, जिनमें से अधिकांश मध्य पूर्व में आते हैं.

ये तो थी नवरोज़ की कहानी. ऐसी रोचक कहानियों के लिए पढ़ते रहिए दी लल्लनटॉप. 

वीडियो: कर्नाटक के इस मंदिर ने कुरान के पाठ से शुरु किया त्योहार, विरोध के बाद भी बनी रही परंपरा

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