आपके सामने कोई एक्सीडेंट के बाद तड़प रहा हो, मदद करेंगे या नहीं?
हैदराबाद में एक एक्सीडेंट ने पूरे हिंदुस्तान के लोगों की पोल खोली है.
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हैदराबाद में एक एक्सीडेंट के बाद लोगों की मदद ना मिलने से गई एक पुलिस वाले की जान.
मैंने जवाब दिया कि मैं उसकी मदद करूंगा. बहन ने पूछा क्यों- मैंने कहा क्योंकि एग्जाम तो फिर दे दूंगा. पर मदद नहीं कि जिंदगी भर एक गिल्ट रहेगी कि काश उस आदमी की मदद कर दी होती. सोचूंगा कि वो जिंदा बचा होगा या नहीं. बाद में अफसोस करने से अच्छा उसकी तुरंत मदद कर दूं. ये सवाल आप सबको भी खुद से पूछना चाहिए. मुझे पता है कि आपने भी कोई बढ़िया सा सजाके आदर्शवादी जवाब दे दिया होता जो सामने वाले पर चौकस इंप्रेशन छोड़े, पर असलियत कैसी होती है वो 3 नवंबर को हैदराबाद में देखने को मिली.

हैदराबाद में हुए एक्सीडेंट में ट्रैफिक पुलिसकर्मी लक्ष्मण को अपनी जान गंवानी पड़ी.
यहां एक कार ने मोटरसाइकिल पर जा रहे एक पुलिसकर्मी को पीछे से टक्कर मारी. आदमी वहां पड़ा तड़पता रहा. हादसे के बाद कई लोग वहां से गुजरे, मगर किसी ने उसकी मदद नहीं की. सब देख के निकल लिए. मेरी गारंटी है कि जो लोग निकल गए, उन्होंने भी सवाल पूछने पर मेरी तरह बढ़िया से मदद करने वाला जवाब दिया होता. सुन के लगता कि समाज में कितने अच्छे लोग हैं. मगर असल में होता क्या है, वो इस घटना में दिखता है. वो भी इसलिए दिखता है कि ये कांड पास में लगे एक सीसीटीवी में कैद हो गया. वरना तो हजारों एक्सीडेंट में क्या होता है, वो सिर्फ भुगतने वाला ही जानता होगा. टाइम्स नाउ ने इसका वीडियो शेयर किया है देखिए-
#BREAKING
— TIMES NOW (@TimesNow) November 3, 2017
: Shocking apathy caught on camera as a traffic policeman was hit by a speeding car but no one stopped to help him pic.twitter.com/X1KUzhq8jl
हादसे का शिकार आदमी लक्ष्मण था. वो एक ट्रैफिक पुलिस सिपाही था. था इसलिए क्योंकि अब वो जिंदा नहीं है. वीडियो में साफ दिखता है कि पहले तो टक्कर मारने वाला आदमी भाग निकला. फिर लक्ष्मण के पास से एक के बाद एक तीन मोटरसाइकिल सवार गुजरते हैं, लेकिन कोई भी रुककर उसकी मदद नहीं करता है. शायद किसी ने उसकी मदद की होती. उसे समय से हॉस्पिटल पहुंचा दिया होता तो उसकी जान बच जाती. मगर भइया कष्ट कौन ले. हमारी आत्मीयता तब ही जागती है जब कोई खयाली सवाल पूछे.
अब बात कि आखिर क्या कारण है कि लोग मदद करने से बचते हैं-
1. कौन झंझट ले- पहली सच्चाई तो ये ही है. लोग किसी का एक्सीडेंट होने पर ये सोच कर आगे बढ़ लेते हैं कि कोई ना कोई तो मदद कर ही देगा. उन्हें इस समाज पर इतना भरोसा रहता है कि पूछो मत. पर वो ये भूल जाते हैं कि अगला आदमी भी यही सोच कर जाने वाला है.

हर दिन 400 से ज्यादा मौतें एक्सीडेंट में हो रही हैं.
2.पुलिस का डर- अब मान ल्यो किसी ने मदद करने की सोची भी तो उसे पुलिस का डर सताने लगता है. कि अस्पताल में पुलिस के सवालों का सामना कौन करेगा. तो इसका इलाज भी बताए दे रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2016 में ही एक फैसला दिया था कि सड़क हादसों में घायल की मदद करने वाले से कोई पूछताछ नहीं करेगी और ना उसे रोकेगी.
3.पैसे की दिक्कत - आदमी को लगता है घायल को अस्पताल ले जाएंगे तो इलाज में खर्च होगा. वो कौन देगा. अब हर कोई इतना समर्थ भी नहीं होता है. तो ये थोड़ा वाजिब कारण हो सकता है. केरल सरकार ने 3 नवंबर 2017 को ही इसके लिए एक शानदार नियम बनाया है. इसमें सड़क हादसे में घायल किसी भी शख्स के 48 घंटे तक होने वाले इलाज का पूरा खर्च सरकार देगी. व्यवस्था सरकारी और प्राइवेट दोनों अस्पतालों में लागू होगी. ऐसा नियम हर प्रदेश में बनना चाहिए. कुछ नहीं तो केंद्र सरकार को इसकी पहल करनी चाहिए.

केरल सरकार ने ट्वीट कर 48 घंटे तक इलाज करवाने के अपने फैसले की जानकारी दी है.
तो आपने देखा कि मेन दिक्कत आपके टाल देने और खुद के बच निकलने वाली आदत के कारण ही आती है. अगर लोग थोड़ी सी आदत बदलें तो लाखों जानें हर साल बच सकती हैं. ऐसा नहीं है कि कोई मदद नहीं करता. बहुत से अच्छे लोग हैं. पर जो लोग बचते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि कभी उनके साथ, उनके रिश्तेदार के साथ भी ऐसा हो सकता है.
भारत में सबसे ज्यादा मौतें सड़क हादसों में होती हैं
किसी युद्ध या किसी बीमारी से क्या मौतें होंगी, जितनी अपने देश में सड़क हादसों में हो जाती हैं. सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2015 में 400 लोगों की प्रतिदिन मौत सड़क हादसों में हो रही थी. 2016 में ये आंकड़ा बढ़कर 410 पर पहुंच गया. 2015 में 1.46 लाख लोग सड़क हादसों में खत्म हुए थे, वहीं 1.5 लाख लोगों ने 2016 में सड़क दुर्घटना में अपनी जन गंवाई थी. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री गडकरी ने ही एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बताया गया था कि देश में हर घंटे होने वाली 57 भिड़ंत में 17 मौतें हो जाती हैं. इसमें भी 54 फीसदी से भी ज्यादा 15 से 34 साल तक की उम्र के होते हैं. सबसे ज्यादा सोचने वाली बात ये है कि इसमें से कितने लोग सही समय पर मदद ना मिल पाने के कारण खत्म हो जाते होंगे. सोच ही रहे हैं तो अगली बार कोई घायल दिखे तो उसकी मदद करना, धीरे से निकल मत लेना.
लल्लनटॉप वीडियो देखिए-
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