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क्रीम की नीली डिब्बी पर Nivea और Ponds वाले भिड़े, पता है हाई कोर्ट ने किसके पक्ष में सुनाया फैसला?

Delhi हाई कोर्ट में Ponds की दलीलें काम नहीं आईं और Nivea के पक्ष में फैसला सुनाया गया. Delhi High Court ने फैसले में क्या कहा है और आखिर ये मामला है क्या?

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Nivea Vs Ponds
कोर्ट ने Nivea के पक्ष में फैसला सुनाया है. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)
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15 मई 2024 (Updated: 15 मई 2024, 13:11 IST)
Updated: 15 मई 2024 13:11 IST
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दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) मे ‘पॉन्ड्स’ प्रोडक्ट्स की तुलना ‘निविया’ (Nivea Vs Ponds) प्रोडक्ट्स से करने पर रोक लगा दी है. दिल्ली और गुरूग्राम के कई मॉल में दोनों प्रोडक्ट्स की तुलना करके ‘पॉन्ड्स’ को बेचा जा रहा था. कोर्ट ने इस मार्केटिंग तकनीक या विज्ञापन गतिविधि पर रोक लगा दी है. ‘पॉन्ड्स’ बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) से कोर्ट ने कहा है कि ये गतिविधि दूसरे पक्ष के प्रोडक्ट्स या बिजनेस का अपमान करने के बराबर है.

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अनीश दयाल ने कहा,

"Nivea उत्पादों की तुलना करने वाली विवादित गतिविधि प्रथम दृष्टया भ्रामक है और अपमानजनक है."

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Nivea प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी Beiersdorf AG (बियर्सडॉर्फ एजी) ने 2021 में अंतरिम निषेधाज्ञा आवेदन दायर किया था. बियर्सडॉर्फ एजी ने दावा किया कि उसने 1925 में एक विशेष नीले रंग को विकसित किया था. कंपनी ने 'Nivea Creme' के लिए इसे विकसित किया था. वर्तमान घटना में यानी पॉन्ड्स वाले इसी रंग की डिब्बी को दिखाकर अपने उत्पाद बेच रहे हैं.

बियर्सडॉर्फ एजी ने कोर्ट में बताया कि 2021 के आसपास कंपनी को इस गतिविधि के बारे में पता चला. जानकारी मिली कि दिल्ली और गुरूग्राम के कई मॉल में HUL के प्रतिनिधि Nivea क्रीम के जैसी दिखने वाली क्रीम की डिब्बी और 'पॉन्ड्स सुपरलाइट जेल' की तुलना कर रहे थे. इसके लिए नीले रंग की डिब्बी पर कोई स्टिकर या कंपनी का नाम नहीं लगा होता था.

HUL के कर्मचारी कस्टमर के एक हाथ पर ‘ब्लू टब’ (नीली डिब्बी) से निकालकर क्रीम लगाते थे और दूसरे हाथ पर पॉन्ड्स सुपर लाइट जेल लगाते थे. इसके बाद एक मैग्नीफाइंग ग्लास के जरिए दोनों की तुलना करते थे. ग्राहकों से कहा जाता कि ‘पॉन्ड्स सुपर लाइट जेल’ की तुलना में ‘ब्लू टब’ वाली क्रीम त्वचा पर ज्यादा तैलीय अवशेष छोड़ता है.

पॉन्ड्स वालों ने क्या दलील दी?

पॉन्ड्स ने कोर्ट में कहा कि Nivea की ब्रांडिंग के बिना वे केवल एक ‘ब्लू टब’ का उपयोग कर रहे थे. उन्होंने तर्क दिया कि Nivea का नीले रंग पर एकाधिकार नहीं है और उन्होंने तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं किया है. कंपनी ने दावा किया कि पॉन्ड्स क्रीम ‘ब्लू टब’ वाली क्रीम की तुलना में ‘कम चिपचिपी’ थी.

Nivea ने जबाव दिया कि Ponds ने दो अलग-अलग कैटेगरी की क्रीमों के बीच गलत तुलना की. Nivea ने जोर देकर कहा कि उनके 'भारी श्रेणी के उत्पाद' जिसमें 25 प्रतिशत फैट वाला पदार्थ है, उसकी तुलना पॉन्ड्स के उत्पाद से की जा रही थी. जबकि पॉन्ड्स के उस उत्पाद में 10 प्रतिशत वसा वाला पदार्थ था. 

हालांकि, कोर्ट में पॉन्ड्स की दलीलें काम नहीं आईं और Nivea के पक्ष में फैसला सुनाया गया.

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