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सेना के अफसरों के लिए आए फिटनेस के नए नियम, दौड़ का सुनकर मुंह खुला रह जाएगा!

कार्ड बनवाना होगा. वज़न बढ़ा, तो कार्रवाई की जाएगी.

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अफ़सरों के लिए जारी हुए नए दिशानिर्देश. (फ़ोटो - आजतक)
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सोम शेखर
29 जनवरी 2024 (Published: 09:05 AM IST) कॉमेंट्स
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भारतीय सेना के अफ़सरों का शारीरिक स्तर गिर रहा है. जीवन शैली से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही हैं. इसके मद्देनज़र सेना (Indian Army) में एक नई पॉलिसी लाई जा रही है. इसके तहत, अगर ज़्यादा वज़न वाले अफ़सर 30 दिनों के अंदर अपने में कोई सुधार नहीं करते, तो उनपर कार्रवाई हो सकती है. मासिक या त्रैमासिक तौर पर जो टेस्ट्स करवाने होते हैं, उन्हें बढ़ा दिया गया है और अब से सबको एक आर्मी फ़िज़िकल फ़िटनेस असेसमेंट कार्ड (APAC) बनाना होगा, उसको अपडेट करते रहना होगा.

इंडियन एक्सप्रेस की हिना रोहतकी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सभी कमांड्स को एक पत्र भेजा गया है. इसमें लिखा है कि नई नीति का मक़सद टेस्टिंग की प्रक्रिया में एकरूपता लाना, अफ़सरों को शारीरिक रूप से योग्य और मोटापे से दूर करना, और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को कम करना है.

क्या-क्या नया है?

मौजूदा मानदंडों में हर तीन महीने में दो टेस्ट्स होते हैं - बैटल फ़िज़िकल एफ़िशिएंसी टेस्ट (BPET) और फ़िज़िकल प्रोफ़ीशियंसी टेस्ट (PPT). अलग-अलग शारीरिक गतिविधियां होती हैं. BPET  में जवानों/अफ़सरों को उम्र के आधार पर तय समय के अंदर 5 किलोमीटर की दौड़, 60 मीटर की दौड़, रस्सी पर लटकना, रस्सी से चढ़ना और 9 फीट की खाई को पार करना होता है. वहीं, PPT में 2.4 किलोमीटर की दौड़, पुश-अप्स, चिन-अप्स, सिट-अप्स और 100 मीटर स्प्रिंट जैसी ऐक्टिविटीज़ करवाई जाती हैं. तैराकी का टेस्ट केवल वहीं होता है, जहां पूल हो.

इसके नतीजे हर साल जवानों/अफ़सरों की वार्षिक रिपोर्ट (ACR) में शामिल किए जाते हैं, जो कमांडिंग अफ़सर की देख-रेख में होता था.

नए दिशानिर्देशों के तहत ब्रिगेडियर रैंक तक का अधिकारी बोर्ड की अध्यक्षता करेगा. हर तीसरे महीने मूल्यांकन होगा. BPET और PPT के अलावा, हर साल एक तैराकी टेस्ट और हर छह महीने में 10 किलोमीटर स्पीड मार्च और 32 किलोमीटर रूट मार्च जोड़ा गया है. सभी कर्मियों को एक शारीरिक फिटनेस कार्ड रखना होगा और प्रोग्रेस ट्रैक करने के लिए टेस्ट के नतीजे 24 घंटे के अंदर देने होंगे.

जो लोग शारीरिक मानकों को पूरा करने में सफल नहीं रहते और 'अधिक वज़न' वाली श्रेणी में आते हैं, उन्हें पहले एक लिखित परामर्श दिया जाएगा. फिर 30 दिन की सुधार अवधि दी जाएगी. और 30 दिन में सुधार नहीं हुआ तो दंडात्मक कार्रवाई की जाएगाी.

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