The Lallantop
Advertisement

मुलायम सिंह यादव ने ऑर्डर दिया, अयोध्या में कारसेवकों को गोली मार दी गई!

मुलायम सिंह ने बयान दिया- "बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता"

Advertisement
karsevak police firing 1990 ayodhya uttar pradesh mulayam singh yadav
जब बाबरी मस्जिद को तोड़ने वालों पर मुलायम सिंह ने चलवाई थी गोली (फाइल फोटो- आजतक)
10 अक्तूबर 2022 (Updated: 10 अक्तूबर 2022, 13:13 IST)
Updated: 10 अक्तूबर 2022 13:13 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर 2022 को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने कई बुलंदियां हासिल की. और इसी दौरान उनके हिस्से आए कई ऐसे किस्से और कार्रवाईयां, जिनकी उनके राजनीतिक जीवन में बार-बार पुनरावृत्ति होती रही. ऐसी ही एक घटना थी कारसेवक गोली कांड.

90 के दशक में बाबरी मस्जिद विवाद अपने चरम पर था. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा शुरू कर दी थी. तैयारी पूरी थी. उस समय यूपी की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर मुलायम सिंह यादव के पास ही थी. मुलायम सिंह ने बयान दिया था - “बाबरी मस्जिद पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता.” ये साल 1992 में हुए निर्णायक विध्वंस के दो साल पहले की बात थी.

बेकाबू हुई कारसेवकों की भीड़

तारीख थी 30 अक्टूबर 1990. कारसेवकों के साथ साधु-संतों की भीड़ भी हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ने का प्रयास कर रही थी. एहतियातन अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया गया था. इसके बावजूद अयोध्या में इतनी भीड़ जमा हो चुकी थी कि उन्हें काबू में नहीं किया जा सकता था.

पुलिस ने बाबरी मस्जिद के आसपास के 1.5 किलोमीटर के इलाके में बैरकेडिंग कर रखी थी. किसी को प्रवेश नहीं दिया जा रहा था. सुबह 10 बजे तक हनुमानगढ़ी के इलाके में भीड़ बढ़ चुकी थी. पुलिस का जत्था लगातार आगे बढ़ रहे कारसेवकों से पीछे हटने का आग्रह कर रहा था. लेकिन भीड़ भी उन्माद में थी. खबरों के मुताबिक, कारसेवकों का एक गुट पहुंच गया बैरकेडिंग के पास. कहा ये भी जाता है कि उन्होंने पुलिस की वैन के जरिए बैरकेडिंग के एक हिस्से को तोड़ दिया था. और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे. इसी समय पुलिसवालों को लखनऊ से ग्रीन सिग्नल दिया गया. गोली दागने का. 

पुलिस ने आदेश का पालन किया. गोलियां चलाई गईं. कई कारवसेवकों की मौत हुई. लेकिन बस गोली लगने से ही नहीं. सरयू नदी पर बने पुल के जरिए भाग रहे लोगों के बीच भगदड़ हो गई, उसमें भी कई लोगों की मौत हुई. मृतकों की सही संख्या का अंदाज कभी नहीं लगाया जा सका.

लेकिन ये पूरे घटनाक्रम का एक छोटा-सा अध्याय था. अभी और रक्तपात होना था. 1 नवंबर 1990. इस दिन मृतकों का अंतिम संस्कार किया गया. लेकिन 2 नवंबर को एक बार फिर से प्रतिरोध मार्च का आयोजन किया गया. इस मार्च में कारसेवक थे, उमा भारती और अशोक सिंघल जैसे नेता इस भीड़ की अगुआई कर रहे थे. हनुमान गढ़ी के पास लाल कोठी में मौजूद संकरी गली में ये भीड़ दाखिल हुई. सामने पुलिस मौजूद थी. पुलिस ने शुरुआत में लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया. भीड़ आगे बढ़ चुकी थी. 

फिर से आदेश आया - फायर! 48 घंटों के भीतर अयोध्या में पुलिस दूसरी बार कारसेवकों पर गोली चला रही थी. फिर से कई मौतें हुईं. 2 नवंबर 1990 को ही कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई. कई लोग घायल भी हुए और कारसेवा रद्द कर दी गई.

ये वीडियो देखें -

इस घटना के 2 साल बाद 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को भीड़ ने गिरा दिया.

उस वक्त मुलायम सिंह ने इस फैसले से बाबरी मस्जिद को तो बचा लिया लेकिन उनकी एक खास छवि बन गई. हिंदूवादी संगठनों उन्हें उपमाएं देने लगे, उन पर मुस्लिमपरस्त होने के आरोप लगने लगे. उनकी बहुत आलोचना हुई. और इस 1990 के इस कांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने अपनी कुर्सी गंवा दी. फिर कुर्सी पर बैठे कल्याण सिंह. 

ये वीडियो देखें -

2016 में अपने एक भाषण के दौरान मुलायम सिंह यादव ने कारसेवक गोलीकांड को लेकर कहा था कि अगर मस्जिद को गिर जाने देते तो हिंदुस्तान का मुसलमान महसूस करता कि हमारे धर्मिक स्थल भी नहीं रहेंगे तो इस देश की एकता के लिए वो खतरा होता. मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अगर 16 जानें तो कम थी अगर 30 भी जानें जाती देश की एकता के लिए तो भी मैं अपना फैसला वापस ना लेता.  

देखें वीडियो- PM मोदी ने कांग्रेस का नान ले मुलायम को यह याद दिलाया

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement