पटना की बाढ़ में जलपरी की इस तस्वीर के बारे में क्या बताया गया, और सच क्या है?
जिस 'नाले के पानी' में खड़ा होना 'जलपरी' को मुश्किल लग रहा है, उसमें लोग रहते आए हैं-पीढ़ी दर पीढ़ी.
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बिहार में भीषण बाढ़ आई हुई है. बाढ़ और जलभराव से जुड़ी तस्वीरें, कई विडियोज़ आ रहे हैं सोशल मीडिया. उनमें ही ये एक तस्वीर भी आई. फटॉग्रफर और मॉडल का कहना है, वो बिहार में बाढ़ की गंभीरता पर अपने तरीके से लोगों का ध्यान खींचना चाहते थे. उनका ये तर्क तस्वीरों में नहीं दिखता. मतलब जस्टिफाई नहीं होता (फोटो: सौरव अनुराज, अदिति सिंह)
ये ख़बर बिहार में आई बाढ़ और उस बाढ़ में खिलखिलाती एक 'जलपरी' की है. मगर वो कहने से पहले मुझे दुनिया में अबतक के सबसे भीषण परमाणु ऐक्सिडेंट की एक कहानी बतानी है.हॉटस्टार पर एक सीरीज़ आई थी- चरनोबिल. सोवियत संघ के चरनोबिल न्यूक्लियर प्लांट में हुए हादसे, उससे हुए रेडियोऐक्टिव लीक पर बनी सीरीज़ है. इसका एक सीन है. चरनोबिल प्लांट में आग लगी है. रंगीन सी आग. शहर में कोई नहीं सोया. किसी को ठीक से कुछ मालूम नहीं कि प्लांट में हुआ क्या है. सिवाय इसके कि कुछ तो हुआ है. प्लांट में काम करने वाले वर्कर्स की फैमिली घर से निकलकर एक पुल पर खड़ी है. सब एक्साइटमेंट में उस आग की तरफ देख रहे हैं. उंगली से इशारे करके, अमेज़्ड हैं सब. कुछ तो हंस भी रहे हैं. प्लांट की आग से निकली राख हवा में मिलकर उनपर बरस रही है. बाद में पता चला- वो रेडियोऐक्टिव राख थी. वो एक्सपोज़्ड हो गए थे. उस पुल पर खड़ा एक भी आदमी नहीं बचा. इसीलिए उस पुल को नाम मिला- ब्रिज़ ऑफ डेथ.

ये Chernobyl सीरीज़ का ही एक सीन है. पुल पर लोग खड़े होकर रिऐक्टर से निकली आग देख रहे हैं. पूरे हादसे के घटनाक्रम के कारण बाद में इस पुल का नाम पड़ गया- ब्रिज़ ऑफ डेथ (फोटो: नेटफ्लिक्स)
पढ़ें: आखिर सितंबर में इतनी बारिश क्यों हो रही है कि यूपी-बिहार में तबाही मच गई है?
'तबाही में जलपरी'
बिहार बह रहा है. आसमान में लगी नल की टोंटी बंद नहीं हो रही. नीचे बाढ़ और जलभराव. दर्जनों शहर बाढ़ में फंसे हैं. सबसे ज़्यादा तस्वीरें आ रही हैं राजधानी पटना से. वहां सड़क पर नावें चल रही हैं. कोई सर्वे नहीं हुआ. मगर चश्मदीद बता रहे हैं कि शहर के करीब 85 फीसद ग्राउंड फ्लोर वालों के घर में पानी भरा है. कई लोगों को घर छोड़ना पड़ा है. कई उसी पानी में फंसे हैं. सोशल मीडिया पर मदद की अपीलें आ रही हैं.
इन बेशुमार तस्वीरों और वीडियोज के बीच आई एक मरमेड यानी जलपरी की तस्वीर. असल की जलपरी नहीं. वैसे असल में जलपरी होती है, इसका कोई सबूत भी नहीं. इस लड़की का नाम है- अदिति सिंह. पेशे से मॉडल. नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलजी (NIFT) में पढ़ती हैं. उन्होंने पटना के एक फटॉग्रफर सौरव अनुराज के साथ मिलकर 28 सितंबर की सुबह एक फोटोशूट किया. बोरिंग रोड है एक पटना में. वहां पानी से भरी सड़कों पर. नाम दिया- मरमेड इन डिज़ास्टर. इसपर बड़ा बवाल हुआ. इसलिए नहीं कि अदिति ने तस्वीर खिंचवाई. इसलिए कि उन्होंने और सौरव ने इस फोटोशूट के पीछे जो वजह गिनाई. उनके कहे का निचोड़ है-
बिहार की दिक्कतों और बिहार की बाढ़ को दूसरे राज्य के लोग गंभीरता से नहीं लेते. इसीलिए उन्होंने फोटोशूट का ये कॉन्सेप्ट सोचा. ताकि लोग इसे देखें और समझें कि पटना की मौजूदा हालत क्या है.बस. दिक्कत इसी जस्टिफिकेशन में है.
Mermaid in disaster.!! Shot during the flood like situation in Patna Nikon D750 with 50mm 1.4 In frame - Aditi...
Posted by Saurav Anuraj
on Saturday, 28 September 2019
आप सोचिए. जलभराव है. बाढ़ है. आपने उसके मुताबिक ड्रेस चुनी. उसके मुताबिक थीम बनाई. अच्छा है. आपकी चॉइस. लेकिन जो मकसद आपने बताया इस सबके पीछे, वो जस्टिफाई नहीं हो रहा. क्योंकि तस्वीरों में, विडियो में अदिति हंस रही हैं. खिलखिला रही हैं. उनके चेहरे पर, हाव-भाव में अपने आसपास की विभीषिका का कोई भाव नहीं. फटॉग्रफर का दावा, दूसरे लोग बिहार की बाढ़ को गंभीरता से नहीं लेते. सॉरी बॉस, आपके फोटोशूट में कहां नज़र आई वो गंभीरता. दिक्कत बस इसी बात से है.

अभिनय के दर्ज़नों तरीके हो सकते हैं. एक ये. जैसा सीन है, वैसा भाव. एक 'आनंद' जैसा भी हो सकता है. विपत्ति में मुस्कुराना. एक ब्लैंक फेस भी होता है. सौरव और अदिति अपने डिफेंस में कह रहे हैं. कि वो अपने प्रफेशन के मुताबिक बिहार की बाढ़ की भीषणता का संदेश दूर-दूर तक पहुंचाना चाहते थे. उन्हें अपने क्राफ्ट पर काम करना चाहिए. क्योंकि जो वो कह रहे हैं, वो तस्वीरों में रत्तीभर भी नहीं आ रहा (फोटो: देवदास, Red Chillies Entertainment)
सॉरी, लेकिन जो कारण बताया वो भाव दिख नहीं रहा
अभिनय क्या है? देवदास के उस आख़िरी सीन में पारो दौड़कर आ रही है. सामने सड़क पर देवदास है. वो मर रहा है. पारो उससे मिलने का अपना वादा नहीं निभा पाती. उसके और देवदास के बीच एक जीवन-मृत्यु जितना लंबा गेट है, जो बंद कर दिया जाता है. ये सीन करते वक़्त न तो शाहरुख मर रहे थे, न ऐश्वर्या पीछे छूट गई विवश प्रेमिका थीं. मगर देखने वाले को पर्दे पर चल रहा दृश्य स्वांग नहीं लगता. यही अभिनय है. मैं किसी महान फिल्म का कोई अमर सीन भी गिना सकती थी यहां. मगर मैंने जान-बूझकर ये वाला सीन चुना. क्योंकि शाहरुख और ऐश्वर्या, मेरी निजी राय में दोनों ही औसत कलाकार हैं.
अपने बताए कारण को जस्टिफाई करने के लिए अदिति अभिनय कर सकती थीं. वो नाटकीय भी होतीं, तो चलता. मगर उन्होंने चेहरे के लिए ऐसा भाव चुना, जिसमें ग़मी नहीं है. क्या ज़रूरी था कि इस फोटोशूट के पीछे इतना बड़ा मकसद गिनाया जाए. जैसे मस्ती-मज़ाक के भाव में तस्वीरें खींची और खिंचवाई गई हैं, वैसा ही रहने दिया गया होता तो बेहतर था.
सरकारी आंकड़ा: अब तक 29 लोगों की मौत
बोरिंग रोड, जहां ये फोटोशूट हुआ है डूबा पड़ा है. बेली रोड, कंकड़बाग, आशियाना, पाटलिपुत्रा, राजेंद्र नगर कोई कॉलोनी, कोई मुहल्ला नहीं छूटा. कंकड़बाग छोड़ दें, तो बाकी सारे इलाके महंगे हैं. इनकी ये हालत है, तो बाकियों का सोच लीजिए. अस्पताल से डरावनी तस्वीरें आ रही हैं. बिस्तर पानी में आकंठ डूबे हैं. बिजली नहीं. पीने का पानी नहीं. सिर छुपाने की जगह नहीं. शौच की जगह नहीं. बूढ़े, बच्चे, गर्भवती महिलाएं. लोग मदद की राह देख रहे हैं. सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि बिहार में इस बाढ़-बारिश से अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि आपदा का दायरा देखकर इन आंकड़ों पर शक़ है मुझे. ये ज़्यादा हो सकता है. मवेशी, जानवर. इनकी मौतों की अलग गिनती.
बाढ़ और आपदा को प्रॉप बनाया
लोगों का अरजा, जोड़ा कितना कुछ बर्बाद चला गया है. गरीबों का, बस्तियों में रहने वालों का हाल और बुरा है. पानी चला जाएगा, पर जीवन ढर्रे पर लौटने में समय लगेगा. जब अगल-बगल इतनी त्रासदी है, उसमें कोई अलग से आपको संवेदनशीलता की कोचिंग नहीं देगा. या तो आप सेंसेटिव होते हैं, या नहीं होते. हैं, तो अच्छी बात है. नहीं हैं, तो आपकी चॉइस. नहीं महसूस हो रही औरों की तकलीफ़, तो भी ठीक है. मगर कुछ करके फिर उसकी लीपापोती के लिए कोई भारी-भरकम नोबल सी वजह तलाश लेना, ये नहीं किया जाना चाहिए. बस यही है हताशा की बात.
meowwala ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर एक कमेंट में लिखा. कि नाले के पानी में खड़ा होना आसान नहीं. वो भी एक मॉडल के लिए. ये कितना एलीट अप्रोच है. इस बात में एहसान का भाव है. कि देखो, हम तो लोगों के भले के लिए नाले के पानी तक में उतर गए और लोग हैं कि हमको ही सुना रहे हैं.नहीं, ईमानदारी की बात तो ये है कि आपने एक आपदा को अपनी सहूलियत के हिसाब से इस्तेमाल किया है. आपको लगा कि ये थीम सही रहेगी. मुझे कुछ दिनों पहले दिखे एक मॉडल के रैंपवॉक की याद आ गई. वो हाथ में वो ग्लूकोज़ वाली बोतल लेकर आई थी वॉक करने. उसके लिए वो प्रॉप था. वैसे ही, जैसे अदिति और सौरव के लिए आपदा एक प्रॉप थी.
बैक टू 'ब्रिज ऑफ डेथ'. उन बेचारों को ये पता नहीं था कि वो क्या देख रहे हैं. उन्हें एक्सपोज़र का परिणाम नहीं मालूम था. चरनोबिल की सबसे बड़ी त्रासदी ही यही थी. कि लोगों से चीजें छुपाई गईं. चीजें दबाई गईं. मगर यहां तो वो इग्नोरेंस वाला मामला भी नहीं है. जो है, सामने है. आपके पैर भी उसी पानी में हैं, जिस पानी में किसी का घर डूबा है.
मॉनसून की बारिश का बिहार और UP के जिलों में सबसे ज्यादा असर पड़ा है.