बेहमई हत्याकांड: 20 लोगों को लाइन लगाकर गोलियों से भूना था, फिर भी फैसला आने में 43 साल लगे
Phoolan Devi के इस अपराध ने घरों-गलियों को सूना किया, एक मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनी. लेकिन क्या इंसाफ हो पाया? 33 आरोपियों का तो सुनवाई के दौरान ही देहांत हो गया था.

43 साल पहले घटा उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात का चर्चित Bhemai case. 14 फरवरी 1981 बेहमई गांव में Phoolan Devi और उसके साथियों ने 20 लोगों को गोलियों से भूनकर मार डाला था. इनमें से अधिकांश क्षत्रिय समाज के थे. इस जघन्य हत्याकांड में आज कोर्ट का फैसला आया है (Court ruling on Kanpur Dehat Bhemai massacre). मामले में कोर्ट ने एक आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई है. एक दूसरे आरोपी को बरी कर दिया गया है. मामले के 36 आरोपियों में से फूलन देवी सहित 33 की मौत फैसला आने से पहले ही हो गई थी.
इंडिया टुडे से जुड़े सूरज सिंह की रिपोर्ट के अनुसार बेहमई मामले में 14 फरवरी को कानपुर देहात की एंटी डकैती कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने आरोपी श्याम बाबू को उम्रकैद की सजा दी और 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. वहीं कोर्ट ने विश्वनाथ को बरी कर दिया. विश्वनाथ वारदात के वक्त नाबालिग थे. इस कांड में वादी के साथ मुख्य आरोपी फूलन देवी सहित कई आरोपियों की पहले ही मौत हो चुकी है. घटना में कुल 36 लोगों को आरोपी बनाया गया था.
क्या था बेहमई हत्याकांड?14 फरवरी 1981 का दिन. दोपहर के दो से ढाई बजे के बीच गांव को घेरा गया. फूलनदेवी और उसके साथी डकैत मुस्तकीम, रामप्रकाश और लल्लू गैंग के करीब 36 लोगों ने बेहमई गांव को घेर लिया था. गांव के घरों में लूटपाट की गई. घर के पुरुषों को घर से बाहर खींचकर लाया गया. गांव के एक टीले के पास 26 लोगों को इकट्ठा किया गया. इन्हें एक लाइन में खड़ा होने के लिए कहा गया.
फूलनदेवी और उसके साथियों ने इन लोगों पर 4-5 मिनट तक गोलियां बरसाईं. घटना में 20 लोगों की मौत हो गई. छह लोग घायल हुए, लेकिन जीवित बच गए. कांड के बाद फूलनदेवी और उसके साथी फरार हो गए. गांव के ठाकुर राजाराम ने घटना के बारे में पुलिस को सूचित किया. 3-4 घंटे बाद पुलिस अधिकारी गांव पहुंचे. गांव में दूर-दूर तक औरतों और बच्चों की चीख पुकार सुनाई दे रही थी. पुलिस ने फूलनदेवी, मुस्तकीम, राम प्रकाश और लल्लू समेत 36 डकैतों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.
इस हत्याकांड के बाद यूपी के तत्कालीन सीएम वीपी सिंह की आलोचना होने लगी. कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए. मामला इतना बढ़ा कि सिंह ने इस्तीफा दे दिया. सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों की सबसे काबिल टुकड़ियों को मैदान में उतारा. फूलनदेवी गैंग के कई सदस्य मारे गए. लेकिन एक सदस्य पकड़ में नहीं आया. वो थी फूलनदेवी. इस दौरान फूलनदेवी ने कई और लोगों को अपना निशाना बनाया.
बेहमई हत्याकांड से पहले क्या हुआ था?फूलन का बचपन मुश्किलों से भरा था. चचेरे भाई मायादीन ने उनके पिता की जमीन हड़पी थी. दस साल की फूलन ने चचेरे भाई के खिलाफ लड़ाई लड़ी. 11 साल की उम्र में फूलन की बीस वर्ष बड़े व्यक्ति से शादी कर दी गई. फूलन ने आगे चलकर वो रिश्ता तोड़ दिया. वो अपना गांव छोड़कर अपनी बहन के घर चली गईं. इस बीच उनके चचेरे भाई मायादीन ने उन्हें डकैती के झूठे मामले में फंसा दिया.
पुलिस मामले की जांच के लिए गांव पहुंची. फूलन और उनके पिता को पुलिसकर्मियों ने एक कोठरी में बंद कर दिया था. आउटलुक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर फूलन के साथ बलात्कार किया था. फूलन ने इस घटना के बाद एक बड़ा फैसला किया. वो डाकुओं के एक समूह में शामिल होने के लिए घर से निकल गईं. बाबू गुज्जर के गिरोह में पनाह ली. यहां फूलन के साथ एक और व्यथित करने वाली घटना हुई. बाबू गुज्जर ने तीन दिनों तक उनके साथ बलात्कार किया. जिसके बाद फूलन को मदद मिली. गिरोह के सदस्य विक्रम मल्लाह से.
मल्लाह ने फूलन को मुक्त कराने के लिए बाबू गुज्जर की हत्या कर दी. और खुद गिरोह का मुखिया बन गया. फूलन उसकी प्रेमिका बन गई. बाबू गुज्जर के बाद मल्लाह और फूलन ने अपने गिरोह के साथ खूब लूटपाट की. अपहरण किए. कई लोगों की हत्या की. यहां तक दोनों फूलन के पति के गांव भी पहुंचे. वहां लूटपाट और लोगों की हत्या की.
जातियों के संघर्ष में फूलन पिसने लगीआटलुट की रिपोर्ट ये भी बताती है कि उन दिनों बीहड़ में डकैतों के बीच जाति का खेल भी चल रहा था. बाबू गुज्जर के दो अनुयायी श्री राम और लल्ला राम अब भी गैंग में थे. दोनों राजपूत समाज से आते थे. ये दोनों मल्लाह के नेतृत्व से असंतुष्ट थे. कारण - विक्रम मल्लाह का कथित छोटी/पिछड़ी जाति से आना. श्री राम और लल्ला राम ने बाबू गुज्जर की हत्या का बदला लेने के लिए मल्लाह की हत्या कर दी और फूलन को बंधक बना लिया गया.
इस घटना के बाद कानपुर देहात का बेहमई गांव सीन में आया. फूलन को क्षत्रियों के वर्चस्व वाले इस गांव ले जाया गया. वहां उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. फूलन के साथ क्रूरता यहीं नहीं थमी. उन्हें गांव में निर्वस्त्र घुमाया गया.
लगातार प्रताड़ना झेल रही फूलन अंतत: बेहमई से भागने में सफल रहीं. उन्होंने अपना एक गिरोह बनाया. इस गिरोह में केवल निषाद समुदाय के सदस्यों को शामिल किया गया. कई महीनों बाद फूलन बेहमई लौटीं. क्षत्रिय समाज से आने वाले 26 लोगों को एक लाइन में खड़ा करके गोलियां बरसाई गईं. 20 लोगों की मौके पर ही मृत्यु हो गई. 6 घायल हुए. ये इतनी बड़ी घटना थी कि बेहमई के नाम के साथ हमेशा हमेशा के लिए ‘कांड’ जुड़ गया.
फूलन का क्या हुआ?1983 का साल आया. मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह की सरकार थी. सरकार ने फूलनदेवी से सरेंडर करने को कहा. फूलनदेवी ने अपने गैंग के 10 लोगों के साथ सरेंडर कर दिया. उन्हें 11 साल की जेल हुई. 1994 में वो रिहा हुईं. 2 बार मिर्जापुर से सांसद रहीं. 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में फूलनदेवी के बंगले के गेट पर शेर सिंह राणा नाम के शख्स ने दो अन्य साथियों के साथ मिलकर उन पर हमला कर दिया. फूलनदेवी को 5 गोलियां लगीं. जिससे उनकी मौत हो गई.
वीडियो: तारीख: जब फूलन देवी के लिए यूपी और मध्यप्रदेश पुलिस आपस में भिड़ गई थीं