कौन हैं के सुरेश, जो लोकसभा स्पीकर पद के लिए ओम बिरला को चुनौती दे रहे हैं?
दलित समुदाय से आने वाले सुरेश यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुके हैं. साल 2012 में उन्हें श्रम और रोजगार मंत्रालय में जूनियर मिनिस्टर का पद दिया गया था.

लोकसभा स्पीकर पद को लेकर पिछले कई दिनों से जारी अटकलों पर ब्रेक लग गया है. क्योंकि अब स्पीकर पद के लिए चुनाव होने वाला है. परंपरागत रूप से स्पीकर का फैसला अब तक आम सहमति से होता रहा है. विपक्ष कई दिनों से डिप्टी स्पीकर पद की मांग कर रहा था. लेकिन मांग नहीं माने जाने के बाद विपक्ष ने स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. उम्मीदवार हैं केरल के मावेलिकरा से कांग्रेस सांसद कोडिकुनिल सुरेश. लोग उन्हें के सुरेश (K Suresh) के नाम से जानते हैं. 26 जून को होने वाले स्पीकर चुनाव में उनका मुकाबला एनडीए उम्मीदवार ओम बिरला से होना है.
कौन हैं के सुरेश?केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में कोडिकुनिल नाम की एक जगह है. यहीं के सुरेश का जन्म हुआ और उनका नाम इसी जगह पर रख दिया गया. सुरेश आज लोकसभा के सबसे सीनियर सांसदों में एक हैं. आठवीं बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं. दलित समुदाय से आने वाले सुरेश यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुके हैं. साल 2012 में उन्हें श्रम और रोजगार मंत्रालय में जूनियर मिनिस्टर का पद दिया गया था.
सुरेश फिलहाल लोकसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप भी हैं. कई संसदीय समितियों के सदस्य रह चुके हैं. केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. वे कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव रह चुके हैं. पिछले साल उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) का सदस्य बनाया गया था.
उन्होंने तिरुवनंतपुरम के मार इवैनिओस कॉलेज से पढ़ाई की है. बाद में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से LLB की डिग्री भी ली.
सुरेश पहली बार 27 बरस की उम्र में सांसद बने थे. 1989 में अडूर (आरक्षित) सीट से लोकसभा के लिए चुने गए थे. फिर 1991, 1996 और 1999 में यहीं से चुनकर संसद पहुंचे. परिसीमन के बाद अडूर लोकसभा सीट खत्म हो गया. 1998 और 2004 में सुरेश चुनाव हार गए थे. इसके बाद 2009 से मावेलिकरा सीट से जीतते आए हैं. इस चुनाव में उन्हें कड़े मुकाबले में जीत मिली. CPI के अरुण कुमार को उन्होंने 10 हजार वोटों से हराया.
जब विवादों में घिरे के सुरेशसाल 2009 में के सुरेश पहली बार मावेलिकरा से जीत कर संसद पहुंचे थे. मावेलिकरा भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है. तब उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले सीपीआई के उम्मीदवार अनिल कुमार केरल हाई कोर्ट चले गए थे. याचिका लगाई थी वे अनुसूचित जाति से नहीं आते हैं. दावा किया कि उन्होंने फर्जी जाति प्रमाण पत्र दिया है जबकि सुरेश एक ईसाई हैं.
हाई कोर्ट ने के सुरेश को अयोग्य ठहराते हुए फैसला सुनाया कि सुरेश चेरामार समुदाय (अनुसूचित जाति) से नहीं आते हैं. उनके चुनाव को अवैध ठहरा दिया गया. कोर्ट ने तब दो तहसीलदारों से मिले प्रमाणपत्र में गलतियां पाई थीं. कहा था कि नेदुमंगड के तहसीलदार ने उन्हें चेरामार समुदाय का बताया. जबकि कोट्टाराकारा तहसीलदार ने उन्हें अनुसूचित जाति का नहीं पाया.
के सुरेश ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के रूप में उनकी जीत को सही ठहराया. तब जस्टिस अल्तमस कबीर और जस्टिस ए के पटनायक की बेंच ने फैसला दिया था कि इसमें कुछ भी विवादित नहीं हैं. मूल रूप से वे चेरामार समुदाय से ही आते हैं, जो केरल में अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत है.
उनके परिवार के ईसाई धर्म में परिवर्तन को लेकर कोर्ट ने कहा था कि 1978 में सुरेश ने दोबारा हिंदू धर्म स्वीकार किया था. और उसके बाद वे हिंदू धर्म में ही रहे. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि 1979 में उन्हें जो जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया, वे चेरामार समुदाय का ही था. 1989, 1991, 1996 और 1999 में वे अडूर सीट से चुनते आए जो अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित है.
साल 1994 में उन्होंने बिंदू से शादी की. हाई कोर्ट में दिया गया उनका हलफनामा बताता है कि उनकी शादी चेरामार समुदाय के रीति-रिवाजों से हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया कि वे अनुसूचित समुदाय से ही आते हैं.
डिप्टी स्पीकर को लेकर विवाद छिड़ा25 जून को स्पीकर पद के लिए नामाकंन दाखिल करने के बाद सुरेश ने कहा कि ये उनके लिए हार या जीत का मुद्दा नहीं है. उन्होंने उस परंपरा की ओर ध्यान दिलाया कि लोकसभा स्पीकर का पद सत्ता पक्ष और डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष के पास रहता है. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा,
"पिछली दो लोकसभा में उन्होंने डिप्टी स्पीकर का पद हमें नहीं दिया. कहा गया कि आपको विपक्ष के रूप में मान्यता नहीं मिली है. अब हमें विपक्ष के रूप में मान्यता मिली है तो डिप्टी स्पीकर पद पर हमारा अधिकार है. लेकिन वे डिप्टी स्पीकर पद देने को तैयार नहीं हैं. हमने आज तक सरकार के जवाब का इंतजार किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया."
20 जून को जब बीजेपी सांसद भर्तृहरि महताब को लोकसभा का प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया था, तब भी के सुरेश की काफी चर्चा हुई थी. विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया था कि परंपरा के हिसाब से के सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए था. परंपरा ये है कि सबसे सीनियर सांसद को अस्थाई तौर पर स्पीकर बनाया जाता है.
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कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा था कि वर्तमान लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सांसद कांग्रेस के कोडिकुन्निल सुरेश और बीजेपी के वीरेंद्र कुमार हैं. दोनों अब अपना 8वां कार्यकाल पूरा कर रहे हैं. उनका कहना था कि वीरेंद्र कुमार केंद्रीय मंत्री हैं इसलिए के सुरेश को प्रोटेम स्पीकर को नियुक्त किया जाना चाहिए था.
हालांकि, केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस पर जवाब दिया था कि महताब को इसलिए चुना गया क्योंकि वे लगातार लंबे समय तक चुने गए सांसद रहे हैं. उनका कहना था कि के सुरेश बीच में यानी 1998 और 2004 में चुनाव हार गए थे.
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