The Lallantop
Advertisement

करवाचौथ वाले विज्ञापन पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने खरी-खरी सुना दी है

समलैंगिक जोड़े को करवाचौथ मनाते हुए दिखाने वाले ऐड को बवाल के बाद वापस लेना पड़ा था.

Advertisement
Img The Lallantop
जस्टिस चंद्रचूड़ ने डाबर के करवा चौथ वाले विज्ञापन को वापस लिए जाने के पीछे जनता की असहिष्णुता को जिम्मेदार बताया है.
font-size
Small
Medium
Large
2 नवंबर 2021 (Updated: 2 नवंबर 2021, 06:19 IST)
Updated: 2 नवंबर 2021 06:19 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
करवाचौथ पर डाबर के एक विज्ञापन को लेकर बवाल मच गया था. इसमें एक लेस्बियन जोड़े को करवाचौथ मनाते दिखाया गया था. मामला इतना बढ़ा कि भावनाओं के आहत होने की बात कही जाने लगी. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मोर्चा संभाल लिया. डाबर को ये विज्ञापन वापस लेना पड़ा. अब इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस धनंजय वी चंद्रचूड़ (Justice Chandrachud) की टिप्पणी सामने आई है. उन्होंने कहा है कि जनता की असहिष्णुता की वजह से वो विज्ञापन हटाना पड़ा. उनका कहना था कि महिलाओं के अधिकारों के लिए कई कानून बने हैं लेकिन वास्तविक स्थिति में अब भी अंतर है. क्या कहा जस्टिस चंद्रचूड़ ने? National Legal Services Authority (NALSA) और राष्ट्रीय महिला आयोग ने 31 अक्टूबर को एक साझा कार्यक्रम आयोजित किया था, महिलाओं में कानूनी जागरूकता बढ़ाने के संदर्भ में. इस वेबिनार में जस्टिस चंद्रचूड़ ने साफगोई से कई मसलों पर अपनी बात रखी. उन्होंने दो टूक कहा कि,
“जैसा कि आप लोग जानते हैं कि अभी एक कंपनी को अपना विज्ञापन वापस लेना पड़ा है. ये विज्ञापन करवाचौथ का था जिसमें समलैंगिक कपल को दिखाया गया था. इसे जनता की असहिष्णुता की वजह से हटाना पड़ा है."
उन्होंने आगे कहा कि,
"कानून के आदर्श प्रावधानों और समाज की सच्चाइयों में काफी फर्क दिखता है. तभी तो जनहित का हवाला देते हुए उस विज्ञापन को वापस लेने के लिए कंपनी को मजबूर होना पड़ा. जबकि महिलाओं के अधिकारों को मजबूती देने के लिए कई कानून बनाए गए हैं. लेकिन कानून और जनता समाज में महिलाओं की वास्तविक स्थिति दोनों में अंतर है."
इंडिया टुडे के मुताबिक, जस्टिस चंद्रचूड़ ने महिलाओं के लिए भी कहा कि वे सिर्फ़ महिला के तौर पर एक पहचान नहीं हैं. अनुसूचित जाति या फिर ट्रांसजेंडर महिला को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कोर्ट के कई फैसलों में भी ये बातें साफ-साफ उजागर होती हैं. भेदभाव के कई मानदंड हैं. जाति, धर्म, विकलांगता या फिर लैंगिक आधार पर भेदभाव. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,
"जब एक महिला से उसकी पहचान के साथ ही जाति, वर्ग, धर्म, विकलांगता और लैंगिक आधार जैसी पहचान जुड़ती हैं तो उसे हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है. मिसाल के तौर पर ट्रांसवुमन को उनकी विषम लैंगिक पहचान के कारण हिंसा का सामना करना पड़ सकता है."
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि महिलाओं के अधिकारों को लेकर सार्थक और सकारात्मक मजबूती तभी संभव होगी जब इस मुद्दे पर पुरुषों में भी जागरूकता आए. ज‌स्टिस चंद्रचूड़ ने हाल में ‌दिए एक फैसले का जिक्र किया जिसमें उन्होंने अनुसूचित जाति की महिलाओं पर हो रहे जुल्म और भेदभाव को देखा था. बता दें कि जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच के अध्यक्ष थे जिसने फरवरी में महिलाओं के आर्मी जॉइन करने पर लैंडमार्क जजमेंट दिया था. इसके जरिए महिला अधिकारी को भी पुरुष अधिकारी के समान परमानेंट कमीशन का अधिकार दिया गया है. वो विज्ञापन, जिस पर बवाल हुआ डाबर का एक ब्यूटी प्रोडक्ट है ‘फेम क्रेम’. चेहरे पर लगाने वाली ब्लीच. डाबर की मार्केटिंग टीम ने करवा चौथ को ध्यान में रखते हुए एक ऐड कैंपेन बनाया था. इस विज्ञापन में एक महिला दूसरी महिला को करवाचौथ पर रिवायती तौर से छलनी के जरिए देखती हैं. विज्ञापन के अंत में एक बैकग्राउंड आवाज आती है जो कहती है, “जब ऐसा हो निखार आपका तो दुनिया की सोच कैसे ना बदले!” डाबर के इस विज्ञापन के आते ही सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ तीखी टिप्पणियों की बाढ़ आ गई. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने चेतावनी दी कि विज्ञापन वापस नहीं लिया गया तो नाराज जनता, डाबर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगी और कंपनी को जनता और कानूनी मुश्किल का सामना करना होगा. इसके बाद कम्पनी ने विज्ञापन वापस लेकर बिना शर्त माफी मांगी.

thumbnail

Advertisement

Advertisement