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क्या है झारखंड की तैमारा घाटी का रहस्य, जहां समय और तारीख बदल जाते हैं?

स्थानीय लोगों का दावा है कि कभी-कभी यहां मोबाइल में डेट और टाइम अचानक से बदल जाता है.

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Taimara ghati on Ranchi Jamshedpur road
स्क्रीनशॉट्स: झारखंड लाइव के फेसबुक अकाउंट से साभार.
6 जुलाई 2022 (Updated: 6 जुलाई 2022, 16:41 IST)
Updated: 6 जुलाई 2022 16:41 IST
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झारखंड के रांची-जमशेदपुर रोड पर एक घाटी है, जिसका नाम है 'तैमारा'. इस समय यह अपनी कुछ कथित ‘रहस्यमय घटनाओं' को लेकर चर्चा में है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां मोबाइल में अचानक से समय और साल बदल जाता है. यानी कि साल 2022 की जगह साल 2023 या 2024 दिखने लगता है.

झारखंड लाइव की रिपोर्ट के मुताबिक रांची-जमशेदपुर हाईवे पर रामपुर से लेकर जरिया बयानडीह के बीच 14 किलोमीटर के क्षेत्र में प्रवेश करने पर समय और साल अचानक से बदल जाता है. ऐसे में इंटरनेट में भी दिक्कत आने लगती है. हालांकि ऐसा हमेशा नहीं होता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें कई बार इसके चलते समस्या भी आती है.

इस क्षेत्र में ही कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय है, जहां के टीचर्स का कहना है कि साल में परिवर्तन होने के चलते उन्हें अटेंडेंस और टाइम-टेबल अपडेट करने में परेशानी होती है. वे अंटेंडेंस आज का लगाते हैं लेकिन अपडेट में एक साल या दो साल के बाद का दिखने लगता है. यानी कि साल 2022 का अटेंडेंस मार्क करने पर साल 2023 या 2024 का दिखने लगता है.

झारखंड लाइव की रिपोर्ट में एक टीचर ने बताया कि उन्हें पहली बार साल 2020 में पता चला कि उस क्षेत्र में समय और साल में अचानक से परिवर्तन आ जा रहा है. उन्होंने बताया कि ऐसा होने पर न तो फोन में वॉट्सऐप काम करता है और न ही कोई न्यूज चैनल चलता है. लेकिन दीवार पर लगी घड़ी में ऐसा नहीं होता है. इंटरनेट में समस्या आती है और कॉल करने पर भी साल बदल जाता है.

कस्तूरबा बालिका विद्यालय की प्रिंसिपल स्वर्णिमा टोप्पो ने बताया, 

‘हमारा अटेंडेस मैनुअल नहीं होता है. हमें बायोमेट्रिक तरीके से अटेंडेंस अपडेट करनी होती है, यानी कि अंटेंडेस लगाने पर ये दिखाता है कि आपने किस तारीख पर और कितने बजकर कितने मिनट पर अटेंडेंस लगाई है. शिक्षा परियोजना के जिला कार्यालय से लोग बोलते हैं कि हम 2023 में अटेंडेंस बना रहे हैं. ये अक्सर होता रहता है.’

हालांकि स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि यदि फोन में डेट और टाइम की सेटिंग ‘ऑटोमैटिक’ है, तभी ऐसी दिक्कत आती है. अगर इसे मैनुअल कर दिया जाए, तब ऐसा नहीं होगा.

रांची प्रोफेसर ने भी यही कहानी बताई

रांची विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर नितीश प्रियदर्शी ने इसे लेकर एक फेसबुक पोस्ट लिखा है. इसमें उन्होंने कुछ लोगों के अनुभवों को साझा किया है. नितीश प्रियदर्शी ने अपने 26 जून के पोस्ट में लिखा, 

'कुछ दिन पहले मेरे मित्र संजय बोस जी ने एक घटना की जानकारी मुझे दी जो उनके साथ इस घाटी में घटी. उनका कहना था की रांची-टाटा रोड में रामपुर से बुंडू रोड में उनको एक फोन आया. वो कार चला रहे थे इसलिए फोन नहीं उठाया. ये घटना 11 जनवरी 2022 की है. जब वो दुबारा फोन करने के लिए फोन को ऑन किए तो तारीख देख के चौंक गए. उसमे तारीख थी 17 अगस्त, 2023 और समय था शाम काे 3:36. यानी कि डेढ़ साल आगे के समय से ये फोन आया. उसके बाद जितने भी कॉल आए उसमें तारीख सही थी, बस उसी फोन की तारीख 2023 की थी. आज भी मिस कॉल में वो नंबर सब से ऊपर ही रहता है.'

उन्होंने आगे लिखा, 

'दूसरी घटना दो दिन पहले की है, जो एक एनजीओ में काम करने वाले कमल किशोर सिंह ने मुझे सुनाई थी. उसका कहना था जब वो बुंडू टोल ब्रिज पार कर के रात को 8 बजे रांची आ रहे थे तो तैमारा घाटी में उनके फोन पर एक मैसेज आया कि मोबाइल के समय और तारीख को ठीक कीजिए. वो मैसेज देख के चौंक गए. तारीख था 25 जनवरी 2024 और समय था सुबह का 9:06 मिनट. यहां भी लगभग डेढ़ साल का अंतर. ये गड़बड़ी सिर्फ दो मिनट तक रही, फिर समय और तारीख अपने आप ठीक हो गई. जब तक और लोग अपना फोन चेक करते, वो स्पॉट पार कर चुके थे. ये भी पता चला कि जहां यह घटना हुई वहां की स्ट्रीट लाइट हमेशा फ्लिकर यानी कांपती रहती है. इन लोगों की कार की स्पीड भी ज्यादा नहीं थी. अगर हम लोग ये मान भी लें कि ये फोन की गड़बड़ी थी तो ये हर जगह होनी चाहिए, सिर्फ उसी स्पॉट पर क्यों? क्या वहां कोई चुम्बकीय विकिरण है जो मोबाइल को प्रभावित करती है? या फिर कोई कॉल और समय का मामला है?

हालांकि अभी तक ये नहीं पता चल पाया है कि ऐसा क्यों हो रहा है. अभी किसी सरकारी एजेंसी ने इसकी जांच नहीं की है.

अभी तक कोई रिसर्च नहीं!

रिपोर्ट के मुताबिक प्रोफेसर नितीश प्रियदर्शी ने बताया कि अभी तक इस मामले को लेकर कोई आधिकारिक रिसर्च नहीं हुआ है. हालांकि उन्होंने खुद ही व्यक्तिगत स्तर पर इसकी जांच शुरु कर दी है. उन्होंने कहा, 

'वैसे तो इस बारे में कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है. लेकिन ऐसा लगता है कि यह मैग्नेटिक या इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन की वजह से हो रहा है. तैमारा घाटी के करीब 500 मीटर क्षेत्र में ही ये समस्या आ रही है. यहां से 15 किलोमीटर पहले के मेरे पास कुछ स्टोन सैंपल थे, जिसे मैग्नेटाइज्ड रॉक कहते हैं. मैंने देखा कि ये पत्थर लोहे को अपनी ओर खींचता है, यानी कि इसमें चुंबकीय शक्ति है. इस पत्थर के करीब मोबाइल ले जाने पर उसके compass में हल्का डेविएशन भी देखने को मिला है. हो सकता है कि उस विशेष जगह पर मैग्नेटाइज्ड रॉक का भंडार हो.'

प्रोफेसर ने बताया कि कुछ लोगों ने ये भी शिकायत की है कि इस क्षेत्र में पहुंचने पर ऐसा महसूस होता है कि गाड़ी पीछे की तरफ खिंच रही है, जैसा कि लद्दाख के मैग्नेटिक हिल्स में होता है. ये भी दिलचस्प जानकारी दी गई कि उन्हीं लोगों के मोबाइल में इस तरह की समस्या आ रही है, जो बाहर से तैमारा घाटी में आते हैं. इस क्षेत्र में पहले से ही रह रहे लोगों के फोन में ऐसी दिक्कतें नहीं हैं.

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