जम्मू-कश्मीर के DDC चुनाव यानी डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल में डाले गए वोटों की गिनती अभी जारी है. अभी तक 280 में से 278 सीटों के रुझान आ चुके हैं. बीजेपी 73 सीटों पर आगे चल रही है वहीं गुपकार गठबंधन 97 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. कांग्रेस पार्टी भी 25 सीटों पर आगे है. इसके अलावा अपनी पार्टी 12 सीटों पर और अन्य उम्मीदवार 71 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं.
जम्मू के 10 में से 6 जिलों में BJP बहुमत का आंकड़ा पार कर चुकी है. कश्मीर में भी पार्टी तीन सीट जीतने में कामयाब रही है. पुलवामा की काकपुरा सीट से मिन्हा लतीफ, श्रीनगर की खांमोह सीट से इंजीनियर ऐजाज और बांदीपुरा की तुलेल सीट से ऐजाज अहमद खान ने चुनाव जीता है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना ने कहा कि कश्मीर में जो निर्दलीय जीते हैं वे भी बीजेपी द्वारा समर्थन प्राप्त हैं.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहली बार डीडीसी चुनाव हुए हैं. 28 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच आठ चरणों में 280 सीटों पर वोटिंग हुई. 4184 उम्मीदवार मैदान में थे. इनमें से 450 औरतें थीं. मतदान में करीब 51 फीसद वोटर्स ने हिस्सा लिया था.
राजनेताओं को हिरासत में लिया गया!
डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल (DDC) के चुनावों की मतगणना के पहले ही घाटी से राजनेताओं को हिरासत में लिए जाने की खबरें सामने आईं. 'इंडिया टुडे' के शुला-उल-हक की रिपोर्ट के मुताबिक, 20 राजनेताओं को स्थानीय प्रशासन ने हिरासत में लिया है.
PDP ने दावा किया है कि उनकी पार्टी के भी सीनियर लीडर्स को हिरासत में लिया गया है. पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर ये आरोप लगाए कि उनके अंकल सरताज मदनी, उनके पूर्व राजनीतिक सलाहकार पीरज़ादा मंसूर हुसैन और पूर्व मंत्री नईम अख्तर को DDC चुनाव के नतीजों से ठीक एक दिन पहले हिरासत में ले लिया गया है. महबूबा ने इसे 'गुंडा राज' करार दिया है.
पुलिस का दावा, पुंछ में बड़ी कार्रवाई रोकी
वहीं जम्मू डिविज़न में पुंछ पुलिस का कहना है कि उन्होंने DDC चुनाव नतीजों के दौरान 'शांति भंग करने' की बड़ी साजिश को रोका है. पुलिस का कहना है कि उन्होंने 21 दिसंबर को करीब 1800 लोहे और लकड़ी के डंडे और बल्लों को ज़ब्त किया है. इनका इस्तेमाल 'शांति भंग' करने के लिए किया जाना था. रिपोर्ट्स हैं कि पुलिस ने पुंछ में कई गिरफ्तारियां भी की हैं.
DDC यानी डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल
विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद केन्द्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक ढांचे में जुड़ने वाली नई यूनिट है DDC. इसके लिए भारत सरकार ने 17 अक्टूबर 2020 को एक अधिसूचना (नोटिफ़िकेशन) जारी की थी. इसके जरिए जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम 1989 में संशोधन किया गया. जम्मू-कश्मीर जब पूर्ण राज्य था, तो इसी पंचायती राज अधिनियम के तहत यहां के प्रत्येक जिले में एक जिला योजना और विकास बोर्ड हुआ करता था. इस बोर्ड की अध्यक्षता की जिम्मेदारी राज्य के मंत्रियों को दी जाती थी.
जिले से आने वाले सांसद, विधायक, विधान पार्षद आदि बोर्ड के सदस्य होते थे. एडिशनल डिप्टी कमिश्नर रैंक का एक अधिकारी इसका सदस्य-सचिव (Member Secretary) होता था. इस बोर्ड का काम राज्य की पंचायती राज संस्थाओं जैसे- हलका या ग्राम पंचायत, ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल और जिला पंचायत के कार्यों की मॉनिटरिंग करना और उन्हें विकास योजना बनाने में सहायता देना था. इसी बोर्ड को अब DDC से रिप्लेस कर दिया गया है.
DDC क्या-क्या काम करेगी?
नए नोटिफ़िकेशन के अनुसार, केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अब DDC हलका पंचायतों और ब्लॉक विकास परिषदों (BDC) के कामकाज की निगरानी करेगी. इसके कामों में जिले की योजनाएं तैयार करना, पूंजीगत व्यय का हिसाब लगाना और उन्हें मंजूरी देना भी होगा. मोटा माटी कहें तो DDC के जिम्मे वही सब काम हैं, जो पहले जिला योजना और विकास बोर्डों के पास थे. फर्क सिर्फ इतना है कि पहले इन बोर्डों में मनोनीत और पदेन सदस्य होते थे, जबकि नए बोर्ड में निर्वाचित सदस्य होंगे.
DDC के कारण राज्य सरकार के अधिकार कम हो जाएंगे?
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक हलकों में कुछ लोग DDC के गठन को राज्य सरकार के अधिकारों में कटौती की तरह देख रहे हैं. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि इस प्रकार की आशंकाओं में कितना दम है-
पहली बात तो यह कि जम्मू-कश्मीर अब एक केन्द्र शासित प्रदेश है. यहां फिलहाल उपराज्यपाल के अधीन राज्य की प्रशासनिक मशीनरी काम कर रही है. अभी कोई चुनी हुई विधानसभा काम नहीं कर रही है. लेकिन यदि केन्द्र शासित प्रदेश के अधीन चुनी हुई विधानसभा और सरकार काम करती भी है, तब भी राज्य सरकार के अधिकार कम ही होंगे. बहुत कुछ दिल्ली सरकार की तरह. ऐसे में डीडीसी से राज्य सरकार के अधिकारों पर ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है.
पिछले साल केन्द्र सरकार ने कहा था कि उचित समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा. अगर ऐसा होता है, तो उसके बाद जो विधानसभा गठित होगी और जो निर्वाचित सरकार बनेगी, उसे वही अधिकार प्राप्त होंगे, जो देश के अन्य पूर्ण राज्यों की विधानसभाओं और सरकारों को प्राप्त हैं. तब वहां की सरकार चाहे तो इस DDC को ही खत्म कर सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था (संविधान के 73वें संशोधन, 1992) के अधीन नहीं आता है. यानी DDC कोई संवैधानिक संस्था नही है. इसलिए राज्य सरकार को ऐसे पूरे अधिकार प्राप्त होंगे कि वह चाहे तो DDC को खत्म कर दे.