भारत-कनाडा विवाद: दूसरे देश में टारगेटेड किलिंग साबित हो जाए तो क्या होता है?
ये अंतरराष्ट्रीय कानून क्या है, जिसका जिक्र ऐसे मामलों में बार-बार होता है. अगर आरोप साबित होते हैं तो उन देशों पर क्या एक्शन लिया जाता है?

खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हुई हत्या और कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के दावों पर जो विवाद शुरू हुआ, वो खत्म नहीं हो पाया है. ट्रूडो ने कनाडा की संसद में कहा था कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियों का हाथ हो सकता है. पिछले एक हफ्ते में इस बात को ट्रूडो ने कई बार दोहराया. हालांकि कनाडा ने इस मामले में अब तक कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया है. भारत कनाडा के आरोपों को लगातार खारिज कर रहा है. 18 सितंबर को जब पहली बार ट्रूडो ने आरोप लगाया, उसी दिन भारत ने इसे बेतुका बताया. इन आरोपों और एक-दूसरे के खिलाफ कार्रवाई के बाद दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ गए. लेकिन इस बीच ये सवाल भी आया कि ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय कानून क्या कहते हैं.
भारत ने निज्जर मामले में कनाडा के आरोपों को सिरे से खारिज किया है. लेकिन इस तरह के आरोप पहले कई देशों पर लग चुके हैं. सिर्फ आरोप ही नहीं, अमेरिका जैसे देश ने दूसरे देश की सीमा में घुसकर आतंकियों को मारा है. साल 2011 में अमेरिका ने पाकिस्तान के एबटाबाद में अल-कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन को मारा था. जनवरी 2020 में अमेरिका ने इराक में ईरान के जनरल क़ासिम सुलेमानी को मारा था. इजराइल और रूस पर भी कई बार इस तरह के आरोप लगे है.
लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से इस तरह की कार्रवाई कितना सही है और अगर आरोप साबित होते हैं तो उन देशों पर क्या एक्शन लिया जाता है?
निज्जर जैसी हत्या में सजा क्या?
नियम की बात करें तो अगर कोई देश बिना अनुमति के किसी दूसरे देश की सीमा में जाकर इस तरह की हत्या करवाता है तो ये उस देश की संप्रभुता का उल्लंघन माना जाता है. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर (UN Charter) में भी कहा गया है कि कोई भी सदस्य देश किसी दूसरे देश की क्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ धमकी या ताकत का इस्तेमाल नहीं करेगा.
ये अंतरराष्ट्रीय कानून क्या है, जिसका जिक्र ऐसे मामलों में बार-बार होता है? अगर हम कहें कि ये लिखित रूप से कुछ नहीं होता तो आप अकबका जाएंगे. लेकिन मामला ऐसा ही है.
इसे समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के वकील आशीष कुमार पांडेय से बात की. आशीष कहते हैं कि कई स्कॉलर्स ऐसा मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कानून कोई "असल कानून" नहीं है, क्योंकि इसको लागू कराने के लिए कोई फोर्स नहीं है. यहां जिसके पास ताकत होती है, उसी की चलती है, वही उसको लागू करा पाएगा. हालांकि कुछ लोग अंतरराष्ट्रीय कानून की वैधता को एक हद तक मानते हैं. इसके लिए वे इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) का हवाला देते हैं.
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ICJ, संयुक्त राष्ट्र देशों के बीच विवादों के निपटारे के लिए बनाया गया था और इसके निर्णय अंतिम होते हैं. ये अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय संधियों, कुछ देशों के बीच बने नियम और किसी खास देश के कानून के आधार पर विवादों को निपटाता है. इसके आर्टिकल-38 में ऐसा लिखा है.
हालांकि, कई बार ऐसा हुआ है जब देशों ने इसके फैसलों का उल्लंघन किया. 1999 में विएना कन्वेंशन पर ऐसे ही एक विवाद में ICJ ने अमेरिका को आदेश दिया था कि वह जर्मनी के उस शख्स को मौत की सजा न दे, जिसे काउंसलर मदद नहीं मिली थी. फिर भी अमेरिका ने उस शख्स को फांसी दे दी थी.
आशीष कुमार पांडेय के मुताबिक,
"अंतरराष्ट्रीय कानूनों को लागू कराना हमेशा संदिग्ध तरीके से देखा गया है. अगर कोई देश किसी दूसरे देश में जाकर किसी की हत्या करता है तो ये साफ है उसने संप्रभुता का उल्लंघन किया है. चूंकि ये किसी अंतरराष्ट्रीय लिखित कानून का उल्लंघन नहीं है तो उस देश के पास विकल्प यही रह जाता है कि आप उसे ICJ में लेकर जाएं. ICJ वहीं पर लागू होता है जब दोनों पार्टी उस पर अपनी सहमति दें. भारत इस मामले में कभी अपनी सहमति नहीं देगा, क्योंकि वो पहले से आरोपों को खारिज कर रहा है."
ब्रिटेन में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर मार्को मिलेनोविक ने अलजजीरा से बातचीत में बताया,
“अगर निज्जर की हत्या में भारत के हाथ होने की बात साबित होती है तो ये अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा. लेकिन इस केस के इंटरनेशनल कोर्ट में जाने की संभावना कम है.”
प्रोफेसर मार्को के मुताबिक, इंटरनेशनल कोर्ट में इस तरह के विवादों से जुड़े बहुत कम मामलों में सुनवाई होती है. सैद्धांतिक तरीके से देखें तो इंटरनेशनल कोर्ट किसी सरकार द्वारा किसी व्यक्ति की हत्या हो या कोई और केस, वो किसी भी मुद्दे पर सुनवाई कर सकता है. हालांकि भारत और कनाडा ने पहले से इसकी घोषणा कर रखी है कि कॉमनवेल्थ देशों के बीच विवादों पर इस कोर्ट का न्याय क्षेत्र मान्य नहीं होगा.
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भारत और कनाडा ने इंटरनेशनल कोर्ट को कुछ अपवादों के साथ स्वीकार किया है. उनमें ये भी है कि कॉमनवेल्थ देशों के बीच विवाद ICJ के क्षेत्राधिकार में नहीं होंगे. इसलिए अगर ये मान लें कि कनाडा कोई सबूत पेश करता भी है, तो भी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का मामला नहीं बनेगा. पहला दोनों पार्टी की सहमति वाला. दूसरा, दोनों देश के क्षेत्राधिकार वाला.
एडवोकेट आशीष कुमार पांडेय कहते हैं कि दूसरा पहलू मानवाधिकार उल्लंघन का भी है. भारत-कनाडा का ही उदाहरण लें. अंत में बात यही है कि अगर ये सारे उल्लंघन साबित हो भी जाते हैं तो उसके लिए कोई इंटरनेशनल फोरम नहीं हैं जो भारत की सहमति के बिना कनाडा किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए इस्तेमाल कर पाए. किसी निष्कर्ष पर पहुंचते भी हैं तो उसमें किसी कानून को लागू करने का सवाल हमेशा बना रहेगा.
आशीष के मुताबिक,
"कनाडा के पास एक ही रास्ता है कि वो इस मुद्दे को द्विपक्षीय तरीके से हल करे. इसके लिए उसे भारत को ठोस सबूत देने होंगे और भारत सरकार जो सबूत दे रही है उसका संज्ञान लेना होगा. आप देश के तौर पर बैन लगा सकते हैं या कुछ भी कर सकते हैं. लेकिन इंटरनेशनल लॉ के फ्रेमवर्क में कनाडा के लिए कुछ भी करना संभव नहीं होगा. इसी तरह ईरान और पाकिस्तान भी अमेरिका के खिलाफ कुछ नहीं कर पाया."
बहरहाल, भारत-कनाडा के बीच ये विवाद अभी थमता नहीं दिख रहा है. भारत अपने स्टैंड पर कायम है. वहीं कनाडा निज्जर की हत्या पर अपने आरोपों को दोहरा रहा है.