The Lallantop
Advertisement

असहमति को 'दबाने' के पीछे ट्विटर-फेसबुक और सरकार की सीक्रेट मीटिंग्स? इस रिपोर्ट से हड़कंप

अमेरिकी न्यूज़ संगठन वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट में बताया है कि सालों से अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों के पदाधिकारियों और भारतीय अधिकारियों के बीच हर दूसरे हफ़्ते एक मीटिंग होती थी, जिसमें अफ़सर ये तय करते थे कि ट्विटर, फ़ेसबुक और यूट्यूब पर क्या कहा जा सकता है, क्या नहीं.

Advertisement
modi-govt-internet-censorship
दो साल पहले पकड़ और मज़बूत हो गई. (फ़ोटो - गेटी/AP)
font-size
Small
Medium
Large
10 नवंबर 2023 (Updated: 10 नवंबर 2023, 20:09 IST)
Updated: 10 नवंबर 2023 20:09 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

अमेरिकी न्यूज़ संगठन वॉशिंगटन पोस्ट (WaPo) ने भारत में सोशल मीडिया की 'आज़ादी' को लेकर एक रिपोर्ट छापी है. उसने ‘अंदरूनी सूत्रों’ के हवाले से दावा किया है कि सालों से अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों के पदाधिकारियों और भारतीय अधिकारियों के बीच हर दूसरे हफ़्ते एक मीटिंग होती थी. अखबार के मुताबिक ये लोग तय करते थे कि ट्विटर, फ़ेसबुक और यूट्यूब पर क्या कहा जा सकता है, क्या नहीं.

WaPo के लिए करिश्मा मेहरोत्रा और जोसफ मेन ने रिपोर्ट छापी: How India tamed Twitter and set a global standard for online censorship. माने कैसे भारत ने ट्विटर पर क़ाबू पाया और ऑनलाइन सेंसरशिप के लिए वैश्विक मानक स्थापित किए. 

इस रिपोर्ट के मुताबिक़, इन सीक्रेट मीटिंग्स को अनौपचारिक रूप से '69-ए बैठकें' कहा जाता था. ये नाम भी IT ऐक्ट के सेक्शन 69-A से आया है, जो सरकार को 'विशेष परिस्थितियों में' सूचनाओं को रोकने का अधिकार देता है. इन बैठकों में भारत की सूचना, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों के अफ़सर होते थे और वो सोशल मीडिया पोस्ट्स की एक लिस्ट देते थे, जिन्हें वो हटाना चाहते थे. ये कहते हुए कि इन पोस्ट्स से भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा है. सबसे ज़्यादा पोस्ट ट्विटर से थे.

फिर दो साल पहले, इन मीटिंग्स में एक बड़ा - और तीखा - मोड़ ले लिया. अखबार का कहना है कि मीटिंग्स में भारत सरकार का दख़ल बढ़ने लगा. जो अफ़सर पहले कुछ ट्वीट्स हटाने के लिए कहते थे, अब वो सीधे अकाउंट्स हटाने की बात करने लगे. और एक-दो नहीं, सैकड़ों अकाउंट्स. नए नियम बने, ऐसे कि जो पदाधिकारी सरकार की मांगों को अस्वीकार कर दें, उन्हें जेल का जोख़िम होने लगा. उनकी कंपनियों को भारतीय बाज़ार में बंद किए जाने की धमकियां मिलने लगीं.

ये भी पढ़ें - सरकार ने ट्विटर को ‘आख़िरी’ नोटिस भेज किस बात की चेतावनी दे दी है?

कंपनी के पूर्व-कर्मचारियों ने वॉशिंगटन पोस्ट को बताया कि जो सोशल मीडिया कंपनियां इस तरह के सेंसर की मुख़ालफ़त करती थीं, वो सरकार के सेंसर के प्रति और 'सहिष्णु' हो गईं. ये 'सहिष्णुता' ख़ासकर कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की आलोचना वाली पोस्ट्स हटाने' की मांगों के लिए देखने को मिली. WaPo के सूत्रों के मुताबिक़, भारतीय अधिकारी कहते थे कि ये उनका मिशन है कि बात न मानने वाली विदेशी कंपनियों पर क़ानून सख़्त किए जाएं.

ट्विटर की चिड़िया पर शिकंजा?

बड़ी टेक कंपनियों में सबसे ज़्यादा बदला ट्विटर. एक समय दुनिया भर में सरकारों के दबाव से लड़ने वाली कंपनी ने घुटने टेक दिए. रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी में सरकारी आदेश के बाद ट्विटर और यूट्यूब ने नरेंद्र मोदी पर बनी BBC डॉक्यूमेंट्री को हटा लिया. अक्टूबर में दक्षिण एशिया में बहुलवाद (pluralism) और धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत करने वाले दो अमेरिकी ग्रुप्स के खातों को ब्लॉक कर दिया गया. इसके इतर कथित तौर पर ट्विटर ने PM मोदी और उनके प्रशासन की आलोचना करने वाले पोस्ट और पत्रकारों के अकाउंट हटाए हैं.

रिपोर्ट कहती है कि एलन मस्क के कंपनी ख़रीदने से एक साल पहले ही प्लेटफॉर्म पर भारत सरकार की पकड़ मज़बूत हो गई थी. मस्क के आने के बाद अपेक्षा थी कि वो अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए लड़ेंगे, लेकिन वो भी कुछ ख़ास मज़बूत साबित हुए नहीं. WaPo ने 50 से ज़्यादा वर्तमान और पूर्व पदाधिकारियों के इंटरव्यू किए. उन्होंने बताया, कैसे सरकार ने नए नियमों के ज़रिए ट्विटर के प्रतिरोध को तोड़ा. अमेरिका के एक पूर्व ट्विटर नीति कर्मचारी ने कहा,

"भारत में जो कुछ हो रहा है, उससे हर किसी को डर लगना चाहिए."

मार्केट के लिहाज़ से देखें, तो एक तरफ़ चीन है. लेकिन चीन के बहुत बड़े बाज़ार के बावजूद, ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियां चीन से दूर रहीं. क्योंकि चीनी सरकार तो बिल्कुल ही पारदर्शी नहीं है और वो उनके डेटा का इस्तेमाल अपने ही नागरिकों पर जासूसी करने के लिए कर सकती है. फिर दक्षिण-एशिया में सबसे बड़ा मार्केट बचा भारत. 

ये भी पढ़ें - सोशल मीडिया कंपनियों को मानना ही पड़ेगा सरकारी कानून

डिजिटल और मानवाधिकार अधिवक्ताओं ने चेताया है कि भारत ने ‘असहमति को दबाने में महारत’ हासिल कर ली है. और, इससे नाइजीरिया और म्यांमार जैसे देशों की सरकारों को भी हौसला मिला है कि वो अपने देश में इस तरह के क़ानून बनाएं. इंटरनेट स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले संगठन ‘इंटरनेट सोसाइटी’ की एक शोधकर्ता नीति बियानी कहती हैं,

"दक्षिण एशिया और एशिया-प्रशांत में सबसे मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के नाते, भारत को इंटरनेट प्रतिबंधों के अगुआ के रूप में देखा जा रहा है. और अन्य देश भारत की नक़ल कर रहे हैं. मिसाल के लिए, बांग्लादेश ने 2022 में इंटरनेट रेगुलेशन के लिए भारत जैसे ही नियम बनाए."

भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने एक इंटरव्यू में कहा था,

"बदलाव बहुत सीधा सा है. हमने क़ानून तय किए, नियम बनाए और हमने कहा है कि हम नियमों के बाहर कुछ भी कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. आपको कानून पसंद नहीं है? भारत में काम बंद कर दीजिए."

वॉशिंगटन पोस्ट ने बताया कि उसने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ ट्विटर और मस्क को कुछ लिखित सवाल दिए. लेकिन न मंत्रालय से जवाब आया, न ट्विटर से. जब आएगा तब उसकी भी जानकारी दी जाएगी.

thumbnail

Advertisement

Advertisement