26 अगस्त 2016 (Updated: 29 अगस्त 2016, 07:20 AM IST) कॉमेंट्स
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने जजमेंट दिया कि हाजी अली दरगाह में औरतों के जाने पर कोई पाबंदी नहीं लग सकती. इस्लाम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. किसी भी आयत में ऐसा कुछ नहीं दिया है. पर मौलवी लोगों के अलग तर्क हैं.
वैसे भी 2011 तक कोई पाबन्दी नहीं थी. उसके बाद ही मौलवी लोगों का फरमान आया कि औरतों का दरगाह में जाना इस्लाम के खिलाफ है. इसके खिलाफ ज़किया सोमन और नूरजहां नियाज़ ने कोर्ट में पेटीशन दी थी.
इस पेटीशन के खिलाफ मौलवी लोगों ने कोर्ट में तर्क दिया कि :1. औरतें चौड़ी गर्दन के ब्लाउज पहन कर आती हैं. मज़ार पर झुकेंगी, तो उनके ब्रेस्ट दिखेंगे.
2. औरतों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है. छेड़खानी के कई आरोप सामने आए, तो हमने ये फैसला लिया.
3. पहले शरीअत के बारे में हमको पूरा पता नहीं था. सबसे सलाह ली, तो पता चला कि औरतों का दरगाह में अन्दर तक जाना इस्लाम के खिलाफ है.
ठीक है. पर कुछ सवाल हैं. साधारण जनता के:1. जब झुकती हैं, तो ब्रेस्ट देखने के लिए कौन खड़ा रहता है वहां? मौलवी लोगों के अलावा.
2. औरतों की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य पुलिस की है. अगर मौलवी लोग ऐसा हक़ जताते हैं तो अच्छी बात है. तो इसके लिए क्या घर से निकलना बंद कर देंगे?
3. शरीयत के बारे में इनको अभी भी नहीं पता है. पता नहीं कहां से कान फुंकवा लिए. यार, सीधी बात है. इसके लिए कुरान नहीं पढ़ना पड़ेगा. पैगम्बर मुहम्मद साहब दरगाह के बारे में क्यों बोलेंगे? उस समय तो कोई दरगाह थी नहीं. कहीं उल्लेख नहीं मिलता मज़ार के बारे में.