बिहार में बाढ़ से मची तबाही के बीच ये तस्वीर थोड़ी राहत देती है
नदी के पानी से टूट रहा था तटबंध, कंधे पर बोरा लादकर ठीक करने चल पड़े डीएम
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बाढ़ के पानी से तटबंध के कटने का खतरा था. उससे पानी रिस रहा था, जिसे देखकर डीएम रमण कुमार ने खुद पीठ पर बालू का बोरा लादा और तटबंध ठीक करने लग गए.
देश में एक तरफ सूखे जैसे हालात हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां बाढ़ ने तबाही मचा रखी है. असम, उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे राज्य हैं, जहां पर नदियों ने लाखों घरों को बर्बाद कर दिया है. इनमें भी सबसे ज्यादा तबाही बिहार में हुई है, जहां राज्य के 10 जिले बाढ़ की चपेट में हैं.
तस्वीर आसाम के कामरूप जिले की है, जहां बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई है.
सीतामढ़ी, मोतिहारी, मधुबनी, सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, भागलपुर, कटिहार और पूर्णिया में हर रोज स्थितियां खराब होती जा रही हैं. ये वो जिले हैं, जो सीधे कोसी नदी की चपेट हैं. इस बाढ़ की वजह से अब तक बिहार में 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं करीब एक लाख लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित जगहों पर शरण लेनी पड़ी है. नेपाल से छोड़ा हुआ पानी कोसी और गंडक नदी में मिलकर तबाही को बढ़ाता जा रहा है.
लेकिन इस भयानक स्थिति में एक तस्वीर आई है, जो राहत भरी है. ये तस्वीर है बिहार के पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) के डीएम रमण कुमार की, जो खुद अपनी पीठ पर बालू से भरा हुआ बोरा लादकर तटबंध को बाढ़ के कटाव से बचाने की कोशिश कर रहे हैं. वो खुद फावड़े से बालू उठाकर बोरे में भर रहे हैं. मोतिहारी में इस बार इतनी बारिश हुई है कि पिछले 50 साल का रिकॉर्ड टूट गया है. नेपाल से आ रहे पानी ने तबाही को और भी बढ़ा दिया है और लोगों को इस बात का डर लग रहा है कि कहीं ये बाढ़ 2007 से भी भयंकर न हो.

ये पूर्वी चंपारण जिले के डीएम हैं रमण कुमार, जो खुद अपने कंधे पर बालू से भरा बोरा लादे हुए हैं.
इससे बचने के लिए प्रशासन भी तमाम उपाय अपना रहा है. बारिश से जान-माल का नुकसान कम हो, इसके लिए प्रशासन की ओर से पहले तो पानी भराव वाले इलाके में धारा 144 लगा दी गई. और उसके बाद अधिकारी बाढ़ से बचाव में जुट गए. 12 जुलाई को पूर्वी चंपारण के डीएम रमण कुमार पचपकड़ी के खोड़ीपाकड में पहुंचे. वहां वो लालबकेया नदी पर बने तटबंध को देख रहे थे. उन्होंने देखा कि तटबंध से पानी रिस रहा है. इसके बाद उन्होंने तटबंध के पास ही रखा बालू से भरा बोरा उठाया और उसे अपनी पीठ पर लादकर वहां ले गए, जहां से पानी रिस रहा था. डीएम को ऐसा करते देख और भी अधिकारी पीठ पर बालू के बोरे लादकर घाट पर लेकर जाने लगे. रमण कुमार खुद फावड़े से बालू उठाकर बोरे में भरते रहे.

तस्वीर बिहार के अररिया जिले के फॉरबिसगंज की है.
बालू भरे बोरों को नदी किनारे जमा करने पर पानी की तेज धार मिट्टी का कटाव नहीं करती है. इससे बाढ़ का खतरा कुछ हद तक कम किया जा सकता है. डीएम रमण कुमार इसी की कोशिश कर रहे थे. लेकिन स्थानीय लोगों का ये भी मानना है कि अगर प्रशासन ने ये काम पहले ही कर लिया होता, तो स्थितियां इतनी भयंकर नहीं होतीं. प्रशासन को भी पता था कि पूर्वी चंपारण में बाढ़ आती है. नेपाल से निकलने वाली लालबकेया और बागमति नदी का पानी पूर्वी चंपारण में तबाही लाता है. और जब प्रशासन को इतना पता था तो फिर बाढ़ आने से पहले ही बालू के बोरे नदियों किनारे क्यों नहीं रखे गए, ताकि बाढ़ से नदी का कटाव नहीं होता और हजारों लोगों के घर पानी में नहीं डूबते. लेकिन बाढ़ आई और तबाही मचानी शुरू कर दी. इसके बाद प्रशासन ने बचाव के उपाय शुरू किए.
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