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जिस समलैंगिक वक़ील को लेकर कोर्ट और मोदी सरकार में ठनाठनी हुई, उसने क्या कहा है?

सरकार ने नियुक्ति को लेकर खुफिया रिपोर्ट जारी नहीं की.

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Advocate Saurabh Kirpal
एडवोकेट सौरभ कृपाल (फोटो- आज तक)
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प्रशांत सिंह
25 जनवरी 2023 (Updated: 25 जनवरी 2023, 01:23 PM IST) कॉमेंट्स
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केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) के बीच विवाद जारी है. मंगलवार, 24 जनवरी को सरकार ने सीनियर एडवोकेट नीला केदार गोखले को बॉम्बे हाई कोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किए जाने का नोटिस जारी कर दिया. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि जिन नामों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली है उसमें सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल (Saurabh Kirpal) का नाम शामिल नहीं है.

आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने नीला गोखले के नाम के अलावा पी वेंकट ज्योतिर्मयी और वी गोपाल कृष्ण राव को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया है. लेकिन केंद्र सरकार ने कॉलेजियम के सुझाव पांच नामों पर अभी तक चुप्पी साध रखी है. कॉलेजियम की ओर से इन नामों की सिफारिश दोबारा की गई थी.

# सौरभ कृपाल ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट के जज के तौर पर समलैंगिक एडवोकेट सौरभ कृपाल के नाम की सिफारिश को केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया है. सरकार का तर्क है कि सौरभ कृपाल समलैंगिक हैं और पक्षपाती हो सकते हैं. इसको लेकर सौरभ का बयान भी सामने आया. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, सौरभ कृपाल ने कहा है,

“हर जज का अपना दृष्टिकोण होता है, ये पक्षपात नहीं है.”

सौरभ कृपाल ने कहा कि आपकी एक विशेष विचारधारा है, इसलिए आप पक्षपाती हैं. इस वजह से जजों की नियुक्ति को पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता. हर एक जज का, जहां से वो आते हैं उसके हिसाब से किसी न किसी तरह का दृष्टिकोण होता है.    

# खुफिया रिपोर्ट जारी करने को लेकर सरकार को आपत्ति

आज तक की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों की नियुक्ति न किए जाने को लेकर खुफिया रिपोर्ट जारी करने पर सरकार ने आपत्ति जताई है. केंद्रीय कानून मंत्री ने इस मामले को गंभीर मानते हुए चीफ जस्टिस के साथ इस बात पर चर्चा करने की बात भी कही थी.

इससे पहले कॉलेजियम ने जजों की नियुक्ति के लिए दोबारा नाम भेजने के सिलसिले में संविधान के आर्टिकल 19(1)(ए) का हवाला दिया था. कॉलेजियम ने कहा था कि संविधान के इस प्रावधान के तहत सभी नागरिकों को बोलने और अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है. 

वीडियो: वकील और जजों के वो बयान, जिन पर बवाल मचा, फायदा भी हुआ?

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