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सरकार ने PF पर ब्याज बढ़ाकर कर्मचारियों को बड़ा तोहफा दिया है

त्यौहारों से पहले 6 करोड़ लोगों की बल्ले-बल्ले.

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सात महीने से ये फैसला वित्त मंत्रालय से मंजूरी मिलने की बाट जोह रहा था. (सांकेतिक तस्वीर. इंडिया टुडे.)
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25 सितंबर 2019 (Updated: 25 सितंबर 2019, 11:08 IST)
Updated: 25 सितंबर 2019 11:08 IST
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देश के छह करोड़ कर्मचारियों को केंद्र सरकार ने बड़ा तोहफा दिया है. कर्मचारियों के पीएफ पर साल 2018-19 के दौरान अब 8.55 के बजाय 8.65 फीसदी ब्याज मिलेगा. इसी साल फरवरी में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी EPFO ने कर्मचारियों के प्रोविडेंट फंड पर 0.10 फीसदी ब्याज ज्यादा देने का फैसला लिया था. साल 2016 से पीएफ पर 8.55 फीसदी ब्याज मिल रहा था. ब्याज दर बढ़ाने का फैसला फरवरी में केंद्रीय श्रम राज्यमंत्री संतोष गंगवार की अध्यक्षता वाले कर्मचारी भविष्य निधि संगठन न्यासी बोर्ड ने लिया था. ये बोर्ड ही हर साल कर्मचारियों की जमा भविष्य़ निधि की ब्याज दर पर फैसला लेता है. बोर्ड के प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय मंजूरी देता है. इसके बाद ब्याज दर को खाताधारक या अंशधारक के खाते में डाला जाता है. जिस पर सात महीने बाद वित्त मंत्रालय ने मुहर लगा दी है. पहले कितनी ब्याज दर मिल रही थी?
साल 2012-13 में पीएफ पर 8.5 फीसदी ब्याज मिलता था. फिर 2014-15 में ये 8.75 फीसदी हो गई. 2015-16 में ब्याज दर बढ़कर 8.8 फीसदी हो गई थी. फिर 16-17 में इसे 8.55 फीसदी कर दिया गया था. तब से यही ब्याज दर चल रही थी. 2019 के आम चुनाव के मद्देनजर माना जा रहा था कि ये ब्याज दर स्थिर रह सकती है या बढ़ाई जा सकती है. जिसके बाद फरवरी में ईपीएफओ ने इसे बढ़ाने का फैसला किया था.
 कर्मचारी को 58 साल के उम्र के बाद पेंशन मिलती है. इसके लिए 10 साल नौकरी जरूरी है. सांकेतिक तस्वीर. इंडिया टुडे.
कर्मचारी को एक उम्र के बाद पेंशन मिलती है. इसके लिए 10 साल नौकरी जरूरी है. सांकेतिक तस्वीर. रॉयटर्स.


क्या होता है ईपीएफओ? कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ साल 1951 में बना. कर्मचारियों के लिए. इसके ऑफिस में ऐसी सभी कंपनियों को अपना रजिस्ट्रेशन कराना होता है, जहां 20 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं. हर कंपनी के लिए ये ज़रूरी होता है कि वो कर्मचारियों का एक पीएफ खाता खुलवाए. और फिर उसमें कुछ पैसा जमा कराए. इसका मकसद निजी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को एक सामाजिक सुरक्षा देना है. मतलब ये कि इस पैसे से कर्मचारियों के भविष्य की जरूरतों के लिए कुछ पैसों की बचत हो जाती है.
कैसे जमा होता है पैसा? किसी भी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी का हर महीने कुछ पैसा काटा जाता है. ये बेसिक सैलरी का 12 फीसदी होता है. इसमें इतना ही योगदान यानी 12 फीसदी पैसा कंपनी की तरफ से दिया जाता है. कर्मचारी के हिस्से की 12 फीसदी रकम उसके ईपीएफ खाते में जमा हो जाती है. जबकि कंपनी के हिस्से में से केवल 3.67 फीसदी ही कर्मचारी के ईपीएफ खाते में जमा होता है. बाकी 8.33 परसेंट रकम कर्मचारी पेंशन योजना यानी ईपीएस में जमा हो जाती है. कर्मचारी अपनी बेसिक सैलरी में से 12 फीसदी से ज्यादा रकम भी कटा सकता है. इस पर भी टैक्स छूट मिलती है. मगर कंपनी केवल 12 फीसदी का ही योगदान करती है. ईपीएफ में बैंक की तरह नामांकन की भी सहूलियत होती है. कर्मचारी के साथ कैजुअल्टी की दशा में नॉमिनी को सारा पैसा मिल जाता है.
कितनी पेंशन मिलती है? जैसा पहले बताया कि कंपनी के हिस्से की 8.33 फीसदी रकम पेंशन स्कीम में जाती है. कर्मचारी को 58 साल के उम्र के बाद पेंशन मिलती है. इसके लिए 10 साल नौकरी ज़रूरी है. पेंशन 1000 रुपए से 3250 रुपए महीने तक हो सकती है. ये पेंशन खाताधारक को आजीवन मिलती है.
एडवांस पैसा निकालने का क्या तरीका है? पीएफ खाते से पैसा निकाला भी जा सकता है. कर्मचारी खुद की या परिवार में किसी की बीमारी पर सैलरी का छह गुना पैसा निकाल सकते हैं. कर्मचारी अपनी शादी में या परिवार में किसी की शादी या पढ़ाई के लिए जमा रकम का 50 फीसदी निकाल सकता है. होम लोन चुकाने के लिए सैलरी का 36 गुना पैसा पीएफ से मिल जाता है. घर की मरम्मत के लिए सैलरी का 12 गुना और घर खरीदने के लिए भी पैसा निकाल सकते हैं.

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