राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में बड़ी गिरावट हुई, लेकिन किसी गलतफहमी में मत आइएगा!
जानकार मानते हैं कि चुनाव आयोग की रिपोर्ट ने एक बार फिर इस बात को पुख्ता कर दिया है कि मोटी कमाई वाले लोग, कॉरपोरेट्स और कंपनियां इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल कर रही हैं.

31 मई 2022. चुनाव आयोग ने एक रिपोर्ट सार्वजनिक की. राजनीतिक पार्टियों को चंदे की रिपोर्ट. और इस रिपोर्ट में पता चला है कि राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये से ऊपर दिए जा रहे चंदे में गिरावट आई है. 41.5 प्रतिशत की गिरावट. इसको पार्टीवार देखेंगे तो शायद बात आसानी से समझ में आएगा.
वित्त वर्ष 2019-20. बात 20 हजार से ऊपर वाले चंदे की.
बीजेपी - 785.7 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
कांग्रेस- 139 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
एनसीपी- 59.9 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
सीपीएम- 19.7 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
तृणमूल कांग्रेस- 8.08 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
सीपीआई- 1.29 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
अब देश की बड़ी पार्टियों के संदर्भ में बात करें और महज वित्त वर्ष बदल दें तो साल 2020-21 में,
बीजेपी- 477.5 करोड़ रुपये का चंदा मिला (गिरावट 39 फीसदी की).
कांग्रेस- 74.5 करोड़ रुपये का चंदा मिला(46 फीसद की गिरावट).
एनसीपी- 26.2 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
सीपीएम- 12.8 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
तृणमूल कांग्रेस- 42.5 लाख रुपये का चंदा मिला.
सीपीआई- 1.49 करोड़ रुपये का चंदा मिला.
रिपोर्ट के मुताबिक बसपा ने हमेशा की तरह अपनी अनुदान रिपोर्ट में 20 हजार रुपये से अधिक का शून्य चंदा दिखाया है.
कैसे होती है राजनीतिक दलों की कमाई?ध्यान रहे कि ये राशि राजनीतिक दलों को मिला पूरा चंदा नहीं है. कई लोग या कंपनियां 20 हजार रुपये या इससे कम राशि का चंदा देते हैं. और इस आंकड़े को देखें तो समझ में आता है कि 20 हजार रुपये से ऊपर के चंदे के संदर्भ में सीपीआई को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों के चंदे में गिरावट हुई है. और मिलाकर ये गिरावट लगभग 41.5 फीसद की है.
यानी पार्टियों को चंदा कम दिया गया? चंदा देने वाले अब 20 हजार से कम चंदा दे रहे हैं?
नहीं. इस उलझन का जवाब है इलेक्टोरल बॉन्ड. यानी पार्टियों को चंदा देने का ऐसा तरीका जिसे जानकार कई मौकों पर अपारदर्शी कहते हैं. और ऐसे में जानिए इलेक्टोरल बॉन्ड क्या हैं?
पिछले कुछ सालों में पार्टियों को जिस माध्यम से सबसे ज्यादा चंदा मिल रहा है, वो है इलेक्टोरल बॉन्ड यानी कि चुनावी बॉन्ड. ये मोदी सरकार द्वारा लाई गई एक गोपनीय व्यवस्था है, जो चंदा देने वालों को उनकी पहचान छिपाने की सुविधा प्रदान करता है. इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनावी फंडिंग की पारदर्शिता में एक बड़ा खतरा बताया गया है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिस पर सुनवाई होनी अभी बाकी है
अब ये बवाल कहां से उठा?दरअसल, चुनाव नियमों के तहत सभी राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये से अधिक की राशि वाले चंदों का विवरण निर्वाचन आयोग को देना होता है. इसमें व्यक्ति, कंपनी या इलेक्टोरल ट्रस्ट के नाम, उनके द्वारा दी गई चंदा राशि, उनका पता, पैन नंबर, चेक/डीडी नंबर, बैंक का नाम और पता मुहैया कराना होता है.
राजनीतिक दलों की इन अनुदान रिपोर्ट्स में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिले चंदे का विवरण नहीं होता है. इसकी जानकारी पार्टियों की ऑडिट रिपोर्ट से पता चलती है.
यानी इलेक्टोरल बॉन्ड से ज्यादा चंदा मिल रहा?
जानकार मानते हैं कि चुनाव आयोग द्वारा जारी अनुदान रिपोर्ट के इन हालिया आंकड़ों ने एक बार फिर से इस बात को पुख्ता कर दिया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड आने के बाद से मोटी कमाई करने वाले लोग, कॉरपोरेट्स और कंपनियां चंदा देने के लिए इस गोपनीय रास्ते का इस्तेमाल कर रही हैं. चुनाव सुधार और चुनावी फंडिंग की पादर्शिता की दिशा में काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने एक बार फिर से इस मुद्दे को उठाया है.
इस संस्था के प्रमुख मेजर जनरल अनिल वर्मा (रिटायर्ड) ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया,
"मैं ये कहता रहा हूं कि अब राजनीतिक दलों की कमाई का बड़ा जरिया इलेक्टोरल बॉन्ड है. ये राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों दोनों के साथ हो रहा है. ये राजनीतिक दलों और चंदा देने वालों दोनों के लिए सुविधाजनक है, ये उन्हें गोपनीयता देता है."
वहीं एडीआर के संस्थापक जगदीप छोकर ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया,
इलेक्टोरल बॉन्ड से किसको कितना चंदा?"बिल्कुल सत्ताधारी पार्टी को ज्यादा चंदा मिला है. लेकिन ये सिर्फ बहुत छोटा सा हिस्सा (टिप ऑफ आइसबर्ग) है. राजनीतिक दलों की असली कमाई इससे काफी ज्यादा है. हालांकि ये रिपोर्ट पार्टियों की कमाई का आभास जरूर कराती है."
वित्त वर्ष 2019-20 में बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये सर्वाधिक 2 हजार 555 करोड़ रुपये का चंदा मिला था. इससे पहले 2018-19 में पार्टी को इससे 1450 करोड़ रुपये का चंदा मिला था. वर्ष 2020-21 के आंकड़े अभी जारी नहीं हुए हैं. वहीं कांग्रेस को 2019-20 में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये 317.8 करोड़ रुपये का चंदा मिला था. हालांकि 2020-21 में ये काफी घटकर महज 10 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.
अगस्त 2021 में एडीआर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि साल 2019-20 में राजनीतिक दलों ने कुल 3 हजार 429.56 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड को भुनाया था. इसमें से 76 फीसदी राशि अकेले बीजेपी के खाते में गई थी. वहीं कांग्रेस को सिर्फ 9 फीसदी राशि प्राप्त हुई थी.
वर्ष 2019-20 में राष्ट्रीय पार्टियों (बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, बीएसपी, टीएमसी और सीपीआई) ने अलग-अलग माध्यमों को मिलाकर कुल 4 हजार 758 करोड़ रुपये की कमाई की थी, जिसमें से 3 हजार 623.28 करोड़ रुपये (76.15%) की आय अकेले बीजेपी को हुई थी. इस दौरान कांग्रेस की कमाई 682.21 करोड़ रुपये और सीपीआई को सबसे कम 6.58 करोड़ रुपये थी.
वित्त वर्ष 2018-19 से 2019-20 के बीच महज एक साल में भाजपा की आय में 50.34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. वहीं इस दौरान कांग्रेस की आय 25.69 फीसदी घट गई थी.
एडीआर के मुताबिक बीजेपी की 70 फीसदी से अधिक की कमाई इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये होती है. वहीं कांग्रेस की कमाई में 46.59 फीसदी, तृणमूल कांग्रेस की कमाई में 69.92 फीसदी और एनसीपी की कमाई में 23.95 फीसदी हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का है.
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