क्या चीन से डरकर कांग्रेस ने इस पुल को नहीं बनवाया था?
जानिए 9 किलोमीटर से ज्यादा लंबे पुल की सच्चाई...
Advertisement

ढोला-सादिया पुल का ऑफिशल नाम 'भूपेन हजारिका सेतु' है. ये भारत का सबसे बड़ा पुल है. इसकी वजह से अरुणाचल से जुड़ी चीन-भारत सीमा पर हमारी स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है. सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट का दावा है कि कांग्रेस ने चीन के डर से ये पुल नहीं बनवाया था.
हमारा पड़ोसी चीन. ताकत के मामले में उसको अमेरिका के बराबर ही समझिए. हथियारों, मिसाइलों और संसाधनों के मामले में हम उसका पसंगाभर भी नहीं हैं. तो क्या इसकी वजह से पहले की कांग्रेस सरकार चीन से डरती थी? इतना डरती थी कि उसने इस डर की वजह एक जरूरी पुल नहीं बनवाया? एक वायरल हो रहे पोस्ट में तो यही दावा किया जा रहा है.क्या है इस वायरल पोस्ट में? एक तस्वीर है. इसमें एक पुल दिख रहा है. देखने से लगता है किसी नदी के ऊपर बना हुआ है. पुल पर खड़े हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. उनके गले में असमी छाप वाला वो सफेद कपड़े और लाल पार का गमछा डला है. साथ में दो-तीन लोग नजर आ रहे हैं. तस्वीर पर लिखा है-
क्या आप जानते हैं? देश के सबसे लंबे सेतु भूपेन हजारिका सेतु पिछली सरकार ने चीन के डर से नहीं बनाया. लेकिन मोदी सरकार ने इस 9.15 किमी लंबे सेतु का निर्माण पूरा कराकर चीन को उसकी सही जगह दिखाई.

इस पोस्ट में प्रधानमंत्री मोदी की जो तस्वीर इस्तेमाल हुई है, वो इस पुल के उद्घाटन के समय की है.
कांग्रेस पर फैसला सुनाने से पहले पुल का पास्ट-प्रेजेंट देखना होगा ये बताने के लिए हमें आपको इस पुल का थोड़ा इतिहास बताना होगा. ये बात है जून 2003 की. अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे मुकुट मीठी. उन्होंने उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक चिट्ठी भेजी. कहा कि सामरिक नजरिये से अरुणाचल बड़ा संवेदनशील है. 1962 की जंग का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यहां बुनियादी ढांचा मजबूत किए जाने की सख्त जरूरत है. अगस्त 2003 में वाजपेयी सरकार की रोड ऐंड ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री ने वहां एक पुल बनाने का जायज़ा लिया. मकसद था ऐसा पुल बनाना, जो डिफेंस की जरूरतों को पूरा कर सके. भारत की सेना जमीन के रास्ते कम समय में अरुणाचल से जुड़े चीन बॉर्डर तक पहुंच सके. साथ ही, अरुणाचल प्रदेश और असम के लोगों को आने-जाने में ज्यादा सहूलियत भी हो. 2004 में लोकसभा चुनाव हुए. वाजपेयी हार गए, कांग्रेस जीत गई.

ये है ढोला-सादिया पुल की लोकेशन, गूगल मैप पर.
इस पुल से क्या होना था? असम के एकदम पूर्वी छोर पर है ढोला और सादिया. ये पुल इन दोनों जगहों को जोड़ने वाला था. तकरीबन सवा नौ किलोमीटर लंबा ये पुल भारत का सबसे लंबा पुल होता. असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर तेजपुर के पास कोलिया भोमोरा पुल है. इसके बाद करीब 375 किलोमीटर तक कोई पुल ही नहीं था. इस लिहाज से इस पुल की बड़ी अहमियत थी. वैल्यू यूं भी थी कि उस समय अरुणाचल में कोई सिविलियन एयरपोर्ट नहीं था. तो ये नया पुल असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच आने-जाने में लगने वाला वक्त घटाता. अरुणाचल के लोगों को अगर ट्रेन पकड़नी होती, तो वो इस पुल की वजह से अपने सबसे नजदीकी रेलवे लिंक तिनसुकिया तक जल्दी पहुंच सकते थे. ऐसे ही डिब्रूगढ़ के एयरपोर्ट तक पहुंचने में भी ज्यादा सहूलियत होती.
सबसे जरूरी बात. कि इस पुल के बनने से आर्मी के लिए सड़क के रास्ते अरुणाचल पहुंचना ज्यादा आसान हो जाता. यहां से चीन की सीमा हवाई रास्ते से बमुश्किल 100 किलोमीटर ही रह जाती. यानी किसी इमरजेंसी की स्थिति में या फिर जंग के वक्त वहां सेना और बाकी जरूरी सामान पहुंचाने में भी पहले से ज्यादा सहूलियत रहती. इसका डिजाइन भी ऐसा सोचा गया कि पुल 60 टन वजन के सेना के टैंकों की आवाजाही भी आसानी से झेल जाए.

इस पुल का प्रस्ताव पहले-पहल असम गण परिषद के दो नेताओं ने किया था. वाजपेयी सरकार को इस बात का क्रेडिट देना होगा कि उन्होंने प्रस्ताव मिलने के तुरंत बाद ही इस प्रॉजेक्ट को शुरू करने से जुड़े टेस्ट और स्टडी वगैरह करवाना शुरू करवा दिया.
कब शुरू हुआ काम? पुल की शुरुआती लागत आंकी गई 950 करोड़ रुपया. 2011 में काम शुरू हुआ. इसे 2015 में बनकर तैयार हो जाना था. इसे खोल भी दिया जाना था. मगर ऐसा हो नहीं सका. इसकी बड़ी वजह रही जमीन से जुड़े विवाद. साथ ही, असम के पावर ऐंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का रवैया भी थोड़ा ढीला था. जो भी हो, 2015 तक इस पुल का तकरीबन 85 से 90 फीसद काम पूरा हो चुका था. इस लिहाज से देखें, तो जिस वक्त पर पुल शुरू किया जाना तय हुआ था, उस वक्त पर पुल खुल भी जाता. मगर दिक्कत थी पुल तक पहुंचने के लिए जरूरी 19 किलोमीटर के एक रोड में. जहां ये सड़क बननी थी, उसके 10 किलोमीटर के रास्ते में जो जमीन थी, उस पर विवाद था. प्रशासन ने वहां रह रहे लोगों को पैसे दिए. मुआवजा दिया. लेकिन वो लोग और पैसा मांग रहे थे. इसके अलावा 2012 में असम के अंदर जबर्दस्त बाढ़ भी आई थी. इस वजह से भी चार-पांच महीने तक काम रुका रहा. इस बारे में टेलिग्राफ ने 2015 में एक रिपोर्ट छापी थी, जिन्हें ज्यादा दिलचस्पी हो, वो यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

एक तो कांग्रेस ने काम शुरू करवाने में काफी वक्त लगाया. फिर जब काम शुरू हुआ भी, तो खिंचता रहा. जबकि असम और केंद्र, दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार थी. असम में मुख्यमंत्री थे तरुण गोगोई. गोगोई सरकार का पावर ऐंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट काफी सुस्ती दिखाता रहा इस काम में (फोटो: पीटीआई)
असम की कांग्रेस सरकार का रवैया कैसा था? असम में इस समय कांग्रेस के तरुण गोगोई की सरकार थी. उनके पावर ऐंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने बड़ी सुस्ती दिखाई. सड़क बनाने के लिए पेड़ कटवाने हैं. इसकी इजाज़त तो डिपार्टमेंट ही देगा. ऐसी और भी कई चीजें थीं, जिसकी जिम्मेदारी विभाग की थी. विभाग ने खूब लेट-लतीफी दिखाई. इन वजहों से भी काम लटका.

मोदी सरकार ने इस पुल को तेजी से पूरा करवाया. असम में बीजेपी सरकार बनने के एक साल के अंदर पुल बनकर तैयार हो गया (फोटो: narendramodi.in)
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद क्या हुआ? ये सच है कि मोदी सरकार ने पुल का काम पूरा करवाने में मुस्तैदी दिखाई. असम में बीजेपी की सरकार बनने से केंद्र और राज्य के बीच कॉर्डिनेशन भी आसान हुआ. सर्वानंद सोनोवाल की सरकार बनने के एक साल के भीतर मई 2017 में पुल बनकर तैयार हो गया. 26 मई, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन भी कर दिया. उन्होंने असम के मशहूर गायक भूपेन हजारिका के नाम पर इस पुल का नाम 'भूपेन हजारिका सेतु' रखा. शायद इसलिए भी कि सादिया है तिनसुकिया जिले में. और यहीं पर पैदा हुए थे भूपेन हजारिका. उद्घाटन करते हुए मोदी बोले-
अगर 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी दोबारा सत्ता में आते, तो 10 साल पहले ही ये पुल बनकर तैयार हो जाता. पिछले तीन सालों में हमने इस पुल को बनवाने का काम तेज किया. हम अटल जी का सपना पूरा करना चाहते थे.
Hon'ble PM @narendramodi
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) May 26, 2017
dedicated to the nation, Bhupen Hazarika Setu. A landmark infrastructure project across Lohit pic.twitter.com/J6vUbfl9oW

मोदी ने उद्घाटन के समय भाषण देते हुए भी वाजपेयी का जिक्र किया. कहा कि अगर 2004 में बीजेपी हारी नहीं होती, तो पुल 10 साल पहले ही बनकर तैयार हो गया होता (फोटो: narendramodi.in)
मोदी सच बोल रहे थे कि झूठ? मोदी की बात में बहुत हद तक सच्चाई तो थी ही. पुल का प्रस्ताव मिलने के कुछ ही दिनों के भीतर वाजपेयी सरकार ने इस प्रॉजेक्ट की फिज़िबिलिटी स्टडी को हरी झंडी दे दी थी. मगर काम शुरू हुआ 2011 में. इस दौरान केंद्र और राज्य, दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी. इस लिहाज़ से केंद्र और राज्य के बीच बेहतर कॉर्डिनेशन होना चाहिए था. काम तय समय पर पूरा होना चाहिए था. मगर ऐसा हुआ नहीं. बॉर्डर से जुड़े इलाकों में चीन ने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर इतना शानदार काम किया है. ऐसे में भारत इतनी सुस्ती अफॉर्ड नहीं कर सकता. कांग्रेस पर लापरवाही और ढीले-ढालेपन का इल्जाम तो साबित होता है.

ये पेज देखिए. PM मोदी का कोई सपोर्ट पेज है. यहां से भी शेयर किया गया है इसको. मोदी ने भले कांग्रेस की आलोचना की, मगर चीन से डरने वाली बात वो भी नहीं लाए. जबकि कई बार वो खुद भाषण देते समय अति नाटकीय होकर गलत फैक्ट्स दे देते हैं और झूठे इल्जाम लगा जाते हैं. मगर उनके समर्थक उनसे भी दो कदम आगे रहते हैं. अपने मन से फैक्ट्स गढ़ लेते हैं (फोटो: फेसबुक)
मगर चीन से डरने वाली बात कितनी सही है? लापरवाही, सुस्ती इन सब चीजों की दोषी है कांग्रेस. मगर ये चीन से डरने वाली बात गलत है. अरुणाचल में कुछ भी बनाओ, तो चीन धमका देता है. फिर भी प्रॉजेक्ट शुरू तो कांग्रेस ने ही करवाया था. चीन का डर होता तो प्रॉजेक्ट शुरू ही क्यों करते. आप ये देखिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कि खुद इतने बड़बोले हैं, उन्होंने भी खुद कांग्रेस पर चीन से डरने वाला आरोप नहीं लगाया. मगर सोशल मीडिया पर PM मोदी के सपोर्टर उनसे भी आगे हैं. वो ये चीन वाला ऐंगल लेकर आए हैं.
चूंकि बात निकली है, तो गिना देते हैं. सिक्किम में वो एयरपोर्ट बना है न. जिसका प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया
. उसका काम कांग्रेस सरकार ने ही शुरू करवाया था. उसका मकसद भी यही था. सीमांत इलाकों में ट्रांसपोर्ट और इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना. ताकि चीन के खिलाफ खुद को तैयार किया जा सके. ये प्रॉजेक्ट भी नॉर्थ-ईस्ट की सुरक्षा से जुड़ा है. बिल्कुल ढोला-सादिया पुल की तरह. चीन का डर होता, तो ये कांग्रेस ये एयरपोर्ट क्यों बनवाती?
वीडियो: हवाई अड्डे बनाने के नाम पर देश से झूठ बोल गए पीएम नरेंद्र मोदी?
पीएम मोदी ने कहा, उन्होंने एक भी दिन छुट्टी नहीं ली, जान लो मनमोहन सिंह ने कितनी ली?
यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने बजरंगबली को दलित कहा या आदिवासी?