'तारीख पर तारीख' वाले डायलॉग में दम तो है, अब हाई कोर्ट ने भी मान लिया है
बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान हुआ वाकया
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मुंबई हाई कोर्ट में जज ने कहा कि फिल्मी डायलॉग तारीख पर तारीख वाली बात में तथ्य तो है.
क्या है पूरा मामला?
मुंबई हाई कोर्ट में गुरुवार 17 दिसंबर को सुनैना होले नाम की महिला का केस चल रहा था. बार एंड बेंच डॉट कॉम के अनुसार, इस दौरान सुनैना ने कोर्ट में बार-बार मिलती तारीखों पर फिल्मी डायलॉग 'तारीख पर तारीख' ट्वीट कर दिया था. इस ट्वीट पर मुंबई हाई कोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की बेंच ने नाराज होने के बजाय काफी नरम रुख दिखाया. दोनों ही जज इस ट्वीट पर हंसे, और कहा कि हां हम दो लोग ही हैं, जो इस केस को सुन रहे हैं. हमें इस ट्वीट से कोई समस्या नहीं है. जस्टिस शिंदे ने तो यहां तक कह दिया कि सुनैना ने जो ट्वीट किया है, वह असल में तथ्यात्मक बात है. और याचिकाकर्ता के लिहाज से सही भी है. जज ने 'तारीख पर तारीख' वाले ट्वीट के संदर्भ में कहा-
जो आपने कहा, वो सही बात है. हम यह बात समझते हैं कि याचिकाकर्ता के लिए उसका मामला सबसे महत्वपूर्ण होता है. हजारों केसों के बीच हर याची के लिए उसका केस बहुत अहम होता है. इस नाम से तो अब एक टीवी पर प्रोग्राम भी है.

मुंबई हाई कोर्ट ने माना कि हर याचिकाकर्ता के लिए हजारों केसों में उसका केस सबसे महत्वपूर्ण होता है.
सुनैना के खिलाफ उद्धव ठाकरे और सरकार ने किया है केस
असल में सुनैना होले पर महाराष्ट्र सरकार और सीएम उद्धव ठाकरे के खिलाफ अपमानजनक बात सोशल मीडिया पर लिखने का केस चल रहा है. वह अपने खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर को कैंसल करवाने के लिए कोर्ट में मौजूद थीं. जब कोर्ट ने मामले की तारीख बढ़ाई, तो सुनैना ने तारीख पर तारीख का ट्वीट कर दिया. इस ट्वीट की तरफ सरकारी वकील मनोज मोहिते ने कोर्ट का ध्यान दिलाया. सुनैना के वकील ने मामले को संभालने के लिए कोर्ट को बताया कि उनकी मुवक्किल सिर्फ एक मशहूर फिल्मी डायलॉग को ट्वीट कर रही हैं. बचाव पक्ष के वकील ने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल की मंंशा कोर्ट की छवि खराब करने की नहीं है. कोर्ट पहले ही महामारी के वक्त ही रोज 4.30 से 5.30 के बीच मामले की सुनवाई कर रहा है. कोर्ट को ट्वीट में कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा.
यही बेंच कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट केसों को वक्त की बर्बादी बता चुकी है
जस्टिस शिंदे ने कहा कि तारीख पर तारीख का कारण रोज आने वाले हजारों केस हैं. उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली, मद्रास, बम्बई और कोलकाता में बेल और परोल के लिए ही रोज ढेरों केस आते हैं. लेकिन उनकी सुनवाई के लिए संसाधन काफी कम हैं.
आपको बता दें कि जस्टिस शिंदे और कर्णिक की बेंच ने ही 5 दिसंबर को कमेंट में कहा था कि न्यायपालिका को अपना कीमती वक्त अवमानना के केसों की सुनवाई में खराब नहीं करना चाहिए. जस्टिस शिंदे का कहना था कि अवमानना की ताकत का इस्तेमाल कोर्ट को अपने आखिरी रास्ते की तरह करना चाहिए. इसे जजों की आलोचना करने वालों पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.