एक और स्वर्ण पदक घर आया है, लाने वाली ये लड़की है
ये सिर्फ 'खूबसूरत' नहीं, बेहद खूबसूरत है.
फोटो - thelallantop
बीती रात 'मिस इंडिया' कॉन्टेस्ट हुआ. हरियाणा की मानुषी ने खिताब पाया. जाने कितने लेवल और स्क्रीनिंग पार कर ये लड़कियां यहां तक पहुंचती हैं. फिर महीने भर की ट्रेनिंग. ये न खाओ, वो न पहनो. ऐसी दिखो. मिस इंडिया हमारे यहां सिर्फ एक खिताब नहीं, एक रूपक है, एक मानक है. किसी लड़की की खूबसूरती की तारीफ करनी हो तो लोग कहते हैं, आज तो मिस इंडिया लग रही हो.
मिस इंडिया लगना, माने दुबला सा छरहरा बदन होना. युवा होना. सही 'कर्व्स' होना. ऐसा शरीर होना कि जब आप बिकिनी पहनकर निकलें, लोग आपकी टांगें देखते रह जाएं. ये मिस इंडिया की असल परिभाषा तो नहीं, लेकिन आम मान्यता है. ये वो मानक हैं जो एक लड़की की खूबसूरती तय करते हैं.
खूबसूरत लड़कियां नाजुक होती हैं. इसलिए तो कविताओं से लेकर फ़िल्मी गीतों तक में उन्हें फूलों की उपमा दी जाती रही है. उनके 'अन्नपूर्णा' हाथ बड़े ही नर्म होते हैं. बेटियां पैदा होती हैं तो उन्हें परियों की तरह रखते हैं. बाहर के काम करने लड़कों के भेजते हैं. सौदा लाना हो या आटा पिसाना हो. गांवों में तो औरतों मजबूत होती हैं, शहर की बेटियों को तो लोग पानी की बाल्टियां तक नहीं उठाने देते. और इसी तरह शहरी, मिडिल क्लास घरों में लड़कियां 'पापा की परी' बन जाती हैं. ये उनका सबसे प्यारा रूप माना जाता है.
लेकिन इस प्यारे रूप को ठेंगा दिखा रही है ये मिस वर्ल्ड. खूबसूरती वाली मिस वर्ल्ड नहीं, बॉडी बिल्डिंग की मिस वर्ल्ड. और इस तरह इंडिया की औरतों के लिए एक तरह की मिसाल बनकर आई हैं देहरादून की भूमिका शर्मा.

वेनिस में चल रहे बॉडी बिल्डिंग के खिताब में भूमिका ने ढेर सारे पॉइंट बटोरे. 'इंडिविजुअल पोजिंग', 'बॉडी पोजिंग' और 'फॉल इन' नाम की तीनों केटेगरी में भूमिका ने टॉप किया. और सबसे ज्यादा पॉइंट लाकर मिस वर्ल्ड बन गईं.
हमारे समाज में जहां औरतों को छुई-मुई होना सिखाया जाता है, भूमिका ने ये बड़े-बड़े डोले बना रक्खे हैं. किसी मनचले को एक रहपट दे दें, तो वो बहरा हो जाए, इन्हें देखकर ऐसा लगता है. हालांकि बॉडी बिल्डिंग हिंसा के लिए नहीं की जाती. बल्कि अपने लिए की जाती है.

भूमिका पहले शूटर थीं. उसमें भी निपुण. एक दिन शूटिंग के किसी टूर्नामेंट में एक बॉडी बिल्डिंग कोच से मुलाकात हुई. बस फिर क्या, इंटरेस्ट बदल गया. उन्होंने डोले बनाने चालू कर दिए. पहले तो घर वालों ने मना किया. की अच्छा ख़ासा शूटिंग कर रही थी. ये क्या नया फितूर पाल लिया. लेकिन लड़की तब तक हो चुकी थी दीवानी. घर वालों ने कहा, अच्छा चलो जो करना है वो करो. भूमिका ने उसके बाद झंडे गाड़ दिए.

मैंने कहीं पढ़ा था कि जिस दिन लड़की लोहे को हाथ लगा लेती है, उसी दिन वो बहुत कुछ बदल देती है. हालांकि ये ओवररेटेड बात है. हमारे गांवों में औरतें जाने कितना कितना वजन उठाती हैं. मगर भरपूर पोषण न मिलने के कारण कमजोर रह जाती हैं. लेकिन आज की युवा लड़कियों, खासकर जो डेस्क जॉब में होती हैं, उनके लिए भूमिका बहुत बड़ी सीख हैं. अरे आप डोले मत बनाओ, मगर कम से कम अपनी फिटनेस पर इतना ध्यान तो दो कि टुच्ची बीमारियां छू भी न पाएं.
एक बात और बताएं, दिसंबर में बॉडी बिल्डिंग का 'मिस यूनिवर्स' खिताब होने वाला है. भूमिका तैयारी में लगी हुई हैं. लगता है कुछ ही महीनों में एक और खिताब घर आने वाला है.
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